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राजनीति

सिर्फ जाति पूछो उनकी जो चाहते हैं नीतीश—लालू गठबंधन को तुड़वाना

Janjwar Team
21 July 2017 12:06 PM GMT
सिर्फ जाति पूछो उनकी जो चाहते हैं नीतीश—लालू गठबंधन को तुड़वाना
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शिवानंद तिवारी ने पत्र लिखकर नीतीश को किया आगाह, कहा वही हैं इस दोस्ती के दुश्मन जो आरक्षण के विरोध में सड़कों पर उतरे थे

जनज्वार, पटना। पूर्व सांसद और राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी अपने अक्खड मिजाज और मुंहफट अंदाज के लिए खूब जाने जाते हैं। अपने इसी मिजाज के चलते उनके नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव से खट्टे-मीठे रिश्ते रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले तक शिवानंद तिवारी जनता दल यू में थे लेकिन नीतीश कुमार से मतभेदों के चलते वे जद यू छोडकर राजद में शामिल हो गए।

इन दिनों लालू यादव के बेटे और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर सीबीआई की एफआईआर को लेकर महागठबंधन में आए तनाव से चिंतित तिवारी ने नीतीश कुमार को पिछले दिनों एक पत्र लिखकर उन्हें भाजपा और संघ के इरादों से आगाह किया है। अपने इस पत्र में तिवारी ने नीतीश कुमार को संभावना से युक्त नेता भी बताया है और भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनके बहु प्रचारित 'जीरो टॉलरेंस’ को एक ढोंग भी करार दिया है। नीतीश के नाम शिवानंद तिवारी के इस पत्र को हम यहां जस का तस प्रस्तुत कर रहे हैं-

प्रिय नीतीश,

मैं जानता हूँ कि तुम मुझे पसंद नहीं करते हो। लेकिन हमलोगों के बीच जो कुछ भी बुरा घटित हुआ है उसके बावजूद तुम्हारे प्रति मेरे मन के एक कोने में स्नेह भाव रहता है। तुमने मुझे पार्टी से निकाल दिया।उसके पहले विशेष राज्य के लिए अभियान से अलग कर दिया था। लेकिन इन सब के बावजूद विगत विधान सभा चुनाव में मैंने तुम्हारे गठबंधन का समर्थन किया।बल्कि कहा कि यह चुनाव नीतीश बनाम मोदी के रूप में बदल गया है।अगर मोदी हारते हैं तो भविष्य में मोदी के विरुद्ध अभियान की धुरी नीतीश कुमार होंगे।

आज मेरी वह भविष्यवाणी सफल होती दिखाई दे रही है। लेकिन भाजपा, नरेंद्र मोदी के विरुद्ध तुम्हारा चेहरा देखना नहीं चाहती है।बिहार चुनाव में एक विरोधी के रूप में तुम्हारी क्षमता और प्रतिभा वह देख चुकी है।इसलिए हर तरह का ताल-तिकड़म लगा कर वह इसको असफल करना चाहती है। इन सब मामलों में आर एस एस की क्षमता अकूत है। कुछ अपवाद को छोड़कर मीडिया आँख बंद कर मोदी का समर्थन कर रहा है। बिहार का गठबंधन कैसे जल्दी टूट जाए, इसके पीछे जान-प्राण लगाकर सब ज़ोर लगाए हुए हैं।

अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले तो तो फ़ौजदारी करा देने वाली भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं।

हमारे इर्द-गिर्द वालों में भी ऐसे लोग हैं। तुम टीवी नहीं देखते हो। कभी-कभी देखना चाहिए। अपने लोग किस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं इसकी निगरानी भी कभी-कभी होनी चाहिए। उनकी भाषा और तेवर से लगता है कि अभी, इसी क्षण नीतीश को लालू से वे अलग करा देना चाहते हैं। जब इन सबकी सामाजिक पृष्ठभूमि पर मैंने ग़ौर किया तो आश्चर्य नहीं हुआ। सब समाज के उसी समूह से आते हैं जिसने सड़क पर उतर कर मंडल का विरोध किया था। मन के ज़हर का लहर शायद उनके जीभ पर आ गया होगा। जातीय पूर्वग्रह से मुक्त होना कितना कठिन होता है इसका तजुरबा मुझे है।

राज्यसभा में भाजपा का बहुमत होने वाला है। गठबंधन टूट गया तो बिहार मुफ़्त में उनके हाथ में चला जाएगा।उसके बाद देश में आर एस एस का एजेंडा बेधड़क चलेगा।पहला शिकार शायद आरक्षण हो।संविधान के संघीय ढाँचे का ये लोग प्रारंभ से ही विरोधी हैं। सेना के सेनापति की भाषा भी चिंता पैदा करने वाली है।कुल मिलाकर देश का भविष्य गम्भीर चिंता पैदा करने वाला है।

इसलिए सम्पूर्ण ताक़त से इनको रोकने का प्रयास आज का आपद धर्म है।समय ने तुमको इस धर्म के निर्वहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर दिया है।ऐसी भूमिका का अवसर यदा-कदा किसी को मिलता है।इसमें हार होगी या जीत मैं नहीं कह सकता हूँ।

लेकिन हारजीत की संभावना पर विचार किए बग़ैर इन अँधियारी ताक़तों विरूद्ध युद्ध के मैदान में उतरना ज़्यादा महत्वपूर्ण है। युद्ध के मैदान में पराजित नेपोलियन और महाराणा प्रताप का नाम भी इतिहास ने दर्ज किया है। इतिहास के प्रति तो तुम संवेदनशील हो। आगे आने वाले दिन में आज का इतिहास जब लिखा जाएगा तो सबकी भूमिका का ज़िक्र उसमें होगा।

गांधी-लोहिया की धारा को पलटकर देश में नाथूराम गोडसे की धारा बहाने का प्रयास करने वालों को चुनौती देने की ज़रूरत है।छवि की दुहाई देकर जो लोग भी तुमको धर्मसंकट में डाल रहे हैं वे जाने-अंजाने उसी धारा की मदद कर रहे हैं जिनके विरूद्ध लड़ना है।आजतक जितने लोगों से इस्तीफ़ा लिया गया है उन सभी पर बिहार सरकार की पुलिस या एजेंसी ने मामला दर्ज किया था।इसलिए नैतिक रूप से उनका सरकार में बने रहना उचित नहीं समझा गया।

लालू परिवार पर मोदी सरकार की केंद्रीय एजेंसी ने मामला दर्ज किया है।लंबे अरसे से इन एजेंसियों का राजनीतिक दृष्टिकोण से दुरुपयोग का आरोप लगता रहा है।मोदी राज में तो विरोधियों के विरूद्ध इन एजेंसियों का इस्तेमाल लाज-शर्म छोड़कर होने लगा है।इसलिए किसी मामले में सीबीआई या अन्य केंद्रीय एजेंसी ने तेजस्वी का नाम किसी मामले डाल दिया है इसलिए उसको इस्तीफ़ा देना चाहिए ऐसा मानना मुझे किसी दृष्टिकोण से उचित नहीं लगता है।यह तो नैतिकता की दुहाई देकर उन संघियों के जाल में स्वंय फँस जाने के समान है जिनका नैतिकता से कोई रिश्ता नहीं है।

भविष्य में अगर यह मामला दूसरा रूप लेता है तो वैसी हालत में क्या करना होगा इसपर तुम और लालू आपस में बात कर लो। याद है लालू ने तुमको कहा था- नो रिस्क, नो गेम। तुम आगे बढ़ो हम सब इस लड़ाई तुम्हारे साथ है।

याद है- एक दफा मैंने मज़ाक़ में तुमसे कहा था। तुम प्रधानमंत्री बनोगे तो मुझे गृहमंत्री बनाना। भविष्य के प्रति अशेष मंगलकामनाओं के साथ।

तुम्हारा
शिवानन्द
15 जुलाई 17

यह चिठ्ठी 15 जुलाई की शाम उनके हाथ में पहुँच गई थी। इसके पहले 13 जुलाई को नीतीश से मिलने का समय माँगा था। समय नहीं मिलने की वजह से अपनी बात उन तक पहुँचाने के लिए चिठ्ठी का सहारा लेना पड़ा। इसके बाद भी दो बार मिलने का समय माँगा।लेकिन समय नहीं मिला है। भ्रष्टाचार के विरूद्ध नीतीश का 'ज़ीरो टोलरेंश' एक ढोंग है।लालू से गठबंधन ही इसका प्रमाण है।दरअसल इस ढोंग के बहाने पुन: भाजपा के साथ जाने का रास्ता तलाश रहे हैं नीतीश।क्योंकि वहाँ अपने को 'सहज' महसूस करते हैं !

पुनश्च
शिवानन्द
20 जुलाई 17

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