Begin typing your search above and press return to search.
शिक्षा

अब उत्तराखंड के सभी स्कूलों में पढ़ाई जाएंगी एनसीईआरटी की किताबें

Janjwar Team
15 March 2018 7:15 PM GMT
अब उत्तराखंड के सभी स्कूलों में पढ़ाई जाएंगी एनसीईआरटी की किताबें
x

उत्तराखंड में स्कूली कोर्स में एनसीईआरटी की किताबें शामिल होने से अभिभावक और छात्र दोनों खुश, अभिभावकों के जेब का बोझ कम होगा तो छात्रों के पीठ पर ढोया जाने वाला वजन

हल्द्वानी से संजय रावत की रिपोर्ट

उत्तराखण्ड के सभी सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें लागू होने से जहाॅ अभिभावक खुश नजर आ रहे। वहीं पब्लिशर और स्कूल प्रबन्धन क्षुब्ध भी हैं। एनसीईआरटी की सस्ती किताबों ने जितनी राहत अभिभावकों की जेब को दी है, माना जा रहा है उतनी ही राहत बच्चों को बस्ते के बोझ से भी मिलेगी। इसके परिणाम तो अभी स्कूल के परीक्षाफल घोषित होने के बाद आने लगेंगे।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब एनसीईआरटी खुद अपनी प्रैस में किताबें छापता है तो राज्यवार टैण्डर कराने की जरूरत क्यों महसूस हुयी। गैर सरकारी स्कूलों में प्राइवेट पब्लिकेशन की ढेरों किताबों के बोझ से जहां बच्चे जूझ रहे थे, वहीं अभिभावक भी बड़े आर्थिक दबाव से परेशान थे।

भाजपा सरकार आने के बाद माह जुलाई 2017 की केबिनेट में एनसीईआरटी की किताबों को मंजूरी मिलने के बाद माह दिसम्बर में निविदाएं आमंत्रित की गयीं और जनवरी में 'दीपक प्रिंटर्स एवं पब्लिकेशन' नामक फर्म को काम मिल गया। ये काम 242 प्रकार (आर्टिकल्स) की किताबें छापने का है, जो कक्षा 1 से 12वीं तक की कोर्स की किताबें हैं।

जिसमें से कक्षा एक से 2 तक की किताबों पर 7 से 10 प्रतिशत शुल्क वृद्वि हुई है, तो कक्षा 9 से 10वीं तक की किताबों पर 2 प्रतिशत शुल्क कम हुआ है।

बहरहाल, अभिभावकों और बच्चों को भारी दबाब से मुक्ति का रास्ता बन चुका है। एक अनुमान के मुताबिक प्राइवेट पब्लिकेशन उत्तराखण्ड भर की स्कूलों को कुल 30 करोड़ रुपए का कमीशन बांटते थे। उनकी उत्तराखण्ड की किताबों का बजट ही मात्र 30 करोड़ रुपया है। ये खेल कुछ ऐसा होता था कि कोई किताब की लागत यदि 7 रुपए आती है, तो उसका मूल्य 100 रुप्ए अंकित होगा।

इस पर प्रकाशक 25 प्रतिशत स्कूल और 25 प्रतिशत बुकसेलर आदि को कमीशन देकर भी खासा मुनाफा कमाते थे। जिससे पब्लिशर, स्कूल और बुक सेलर के मुनाफे का बोझ अभिभावकों और बच्चों को झेलना पड़ता था। उम्मीद है कि इस बोझ से अब अभिभावकों और छात्रों दोनों को मुक्ति मिल जाएगी।

पर जनता की मुक्ति में शासन और पूंजीपति का भला न हो, ऐसे सवाल अब भी मुंह बाये खड़े हैं। और हों भी क्यों न। चूंकि किताबों की छपाई में कई प्रावधान अभी रिक्त है। मसलन एनसीईआरटी कई महत्वपूर्ण किताबें नहीं छापता आया है, उन किताबों को अब कौन छापेगा। प्राइवेट पब्लिशर या टेण्डर होल्डर।

ये सुविधा भी टेण्डर होल्डर के पक्ष में है कि उसे सारा मेटीरियल सीडी में उपलब्ध कराया जा रहा है। यानी टेण्डर होल्डर को टाइपिंग और डिजायनिंग, पेजीनेशन जैसे कार्यों के लिए मदद की गयी है। ये नियम भी अजीब—सा है कि 322 पेज की किताब 58.79 रूपए की (पहले 400 रुपए की भी कीमत) है। किताबों की रायल्टी कितने प्रतिशत है, ये भी बड़ा सवाल है।

खैर, टेण्डर होल्डर को इतनी कम दरों में क्या और कैसे मुनाफा होगा। ये तो अभी भविष्य के गर्भ में ही है, पर अभिभावकों के लिए ये वाकई बड़ी राहत की बात है।

Janjwar Team

Janjwar Team

    Next Story

    विविध