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राजनीति

फूलपुर में आसान नहीं कमल का खिलना

Janjwar Team
10 March 2018 10:19 AM GMT
फूलपुर में आसान नहीं कमल का खिलना
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बीजेपी के धर्म आधारित गोलबंदी के खिलाफ सपा ने पिछड़ों-दलितों को गोलबंद करने का खुलेआम किया आह्वान

फूलपुर से बी सिंह की रिपोर्ट

फूलपुर संसदीय उपचुनाव में साइकिल पर हाथी की सवारी ने भाजपा नेताओं को पसीना बहाने को मजबूर कर दिया है। यहां पर 11 मार्च को होने वाला उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी कौशलेंद्र सिंह पटेल (बाहरी) को सपा प्रत्याशी नागेंद्र सिंह पटेल (स्थानीय) कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

इलाहाबाद के फूलपुर ऐतिहासिक संसदीय क्षेत्र की मौजूदा स्थिति देखें तो चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है। दोनों पक्षों में जीत हार का अंतर बहुत कम होने की उम्मीद है। चूंकि 2014 में मोदी लहर से अब तक पिछले चार सालों के दौरान फूलपुर में काफी बदलाव हुआ है, जिसे देखते हुए ऐसा लग रहा है कि इस बार भाजपा प्रत्याशी के लिए यह सीट आसान नहीं है।

इसका अंदाजा हम इसी से लगा सकते हैं कि 20 दिन पहले सपा द्वारा अपने प्रत्याशी की घोषणा करने के बाद उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य पूरी तरह से इलाहाबाद में डेरा जमा चुके हैं। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी पांच चुनावी सभा को संबोधित कर चुके हैं।

पटेल बाहुल्य इस सीट पर पिछले डेढ़ सालों में 4 पटेलों का मर्डर हो गया है। यहां पर चुनाव में सदैव निर्णायक की भूमिका अदा करने वाला पटेल समाज इन हत्याओं से गुस्से में है। लोकसभा चुनाव में पटेलों ने सपा के पटेल प्रत्याशी धर्मराज सिंह पटेल के बजाय केशव प्रसाद मौर्य को एकतरफा वोट दिया था, लेकिन अब तस्वीर बदल गई है। इस चुनाव में सपा और बीजेपी दोनों पटेल प्रत्याशी हैं और इस चुनाव में पटेल मतदाता बंट रहे हैं। अर्थात आधे पटेल मतदाता सपा प्रत्याशी को वोट दे सकते हैं।

इनके अलावा उपमुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद केशव प्रसाद मौर्या की अति व्यवस्तता से भी लोग नाराज हैं। पिछले सप्ताह भाजपा नेता और यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल नंदी द्वारा मुलायम सिंह यादव और मायावती पर की गई विवादित टिप्पणी को भी विपक्ष भुनाने की कोशिश कर रहा है।

चुनाव प्रचार के अंतिम दिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की फूलपुर में रैली और जनसभा ने इस चुनाव को पूरी तरह धर्म और पिछड़ा-दलित गोलबंदी के बीच खड़ा कर दिया है। बीजेपी जहां इसे धर्म और सपा की पूर्ववर्ती सरकार को गुंडाराज बताने की कोशिश कर रही है तो सपा इसे पूरी तरह सवर्ण बनाम पिछड़ों की लड़ाई बनाने की कोशिश कर रही है।

इसी के तहत अखिलेश यादव ने रैली में कहा कि बीजेपी ने यादवों और पटेलों के बीच दूरियां पैदा कीं। उन्होंने योगी आदित्यनाथ पर राजपूतवाद करने का आरोप लगाया। अखिलेश यादव ने अपने भाषण में कई बार खुद को बैकवर्ड कहा और बसपा सुप्रीमो को बुआ बताया।

शहरी मतदाताओं की वजह से केशव को मिला था रिकार्ड वोट
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के दौरान केशव प्रसाद मौर्य को यहां पर 503564 वोट मिले थें। जबकि सपा और बसपा ने मिलकर 358966 वोट पाया, दोनों दलों के कुल मतों से बीजेपी को लगभग डेढ़ लाख ज्यादा वोट मिले थे।

मौर्य की जीत में शहरी मतदाताओं की प्रमुख भूमिका रही। फूलपुर संसदीय क्षेत्र के इलाहाबाद उत्तरी और पश्चिमी विधानसभा में 2 लाख 7 हजार वोट मिलें, जबकि यहां पर सपा-बसपा को कुल वोट महज 96 हजार के करीब मिलें। हालांकि यहां पर कांग्रेस को भी 40 हजार वोट मिलें।

देहात में मजबूत हैं सपा-बसपा
मोदी लहर के बावजूद 2014 में फूलपुर संसदीय क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले तीन विधानसभा क्षेत्रों में सपा-बसपा को पर्याप्त वोट मिले। दोनों दलों को केशव प्रसाद मौर्य से महज 33 हजार कम वोट मिले। बीजेपी को जहां 2.96 लाख वोट मिले, वहीं सपा-बसपा को कुल वोट- 2.62 लाख मिले।

विधानसभा चुनाव 2017 में देहात (फूलपुर, फाफामऊ और सोराव विधानसभा) में बीजेपी को 254965 वोट मिले, जबकि सपा-बसपा और कांग्रेस को कुल 341381 वोट मिले। अर्थात इन तीनों दलों को बीजेपी से लगभग 86416 वोट ज्यादा मिले।

विधानसभा चुनाव में भाजपा से ज्यादा वोट सपा-बसपा-कांग्रेस को मिले
विधानसभा चुनाव 2017 में बीजेपी को फूलपुर के पांचों विधानसभा क्षेत्रों में कुल 429674 वोट मिले थें। जबकि बसपा-सपा और कांग्रेस को कुल 519616 वोट मिले। अर्थात बीजेपी से 90 हजार ज्यादा वोट मिले।

कांग्रेस की स्थिति
लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी मो.कैफ को कुल 58127 वोट मिले थें, इनमें से 40 हजार वोट कांग्रेस को शहरी मतदाताओं ने दिया था। जबकि 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस-सपा का गठबंधन था।

फूलपुर संसदीय क्षेत्र में 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी-गठबंधन को 503564 वोट मिले तो सपा को 195256, बसपा को 163710 और कांग्रेस को कुल 58127 वोट मिले। अर्थात सपा और बसपा ने मिलकर 358966 वोट पाए। दोनों दलों के कुल मतों से बीजेपी को लगभग डेढ़ लाख ज्यादा वोट मिले थे।

शहरी क्षेत्र में दोनों दलों को मात्र 96 हजार वोट मिले, बीजेपी को 2 लाख 7 हजार से ज्यादा वोट मिले, अर्थात 1.11 लाख वोटों का अंतर रहा, कांग्रेस प्रत्याशी मो.कैफ को शहरी क्षेत्र में 40 हजार वोट मिले थे

2017 के विधानसभा चुनाव में पांचों विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी को कुल 429674 वोट मिले बसपा-सपा- कांग्रेस को कुल 519616 वोट मिले। शहरी क्षेत्र में बीजेपी को 174709 वोट मिले, जबकि सपा-बसपा और कांग्रेस को 179235 वोट मिले ग्रामीण क्षेत्र में बीजेपी की वोट संख्या 254965 रही जबकि सपा-बसपा और कांग्रेस को कुल 341381 वोट मिले।

2014 और 2018 के मुख्य अंतरों में एंटी इनकंबेंसी, चार पटेलों की हत्या, नंद गोपाल नंदी का मुलायम और मायावती पर अशोभनीय बयान, कौशलेंद्र सिंह का फूलपुर से बाहर होना माना जा रहा है। इसके अलावा चुनाव प्रचार के अंतिम दिन अखिलेश यादव की रैली और केशव प्रसाद मौर्य का फूलपुर में समय न दे पाने को भी भाजपा की हार के कारण के बतौर देखा जा रहा है।

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