Begin typing your search above and press return to search.
समाज

बहू को क्या मजा आया होगा सास को जान से मारने में

Janjwar Team
28 Sep 2017 1:08 PM GMT
बहू को क्या मजा आया होगा सास को जान से मारने में
x

अपराध को पढ़ने के दौरान हम दो तरह की मानसिकता से गुजरते हैं। एक मजा लेने की और दूसरी नैतिकता बघारने की। पर अपराध रुके उसके लिए एक तीसरी मानसिकता की जरूरत है, पर हम उस मानसिकता को अपनाने वालों को मूर्ख मानने लगे हैं...

पड़ोस में बढ़ते अपराधों पर एपी मिश्र

पूर्वी दिल्ली के मंडावली इलाके की वारदात आज सभी अखबारों में प्रमुखता से छपी है। एक 29 वर्षीय बहू ने 27 सितंबर को अपनी विकलांग सास को लकड़ी के स्टूल से मार डाला है। आरोप है कि बहू ने स्टूल सास के सिर पर दे मारा, जिससे सास की मौके पर मौत हो गयी।

सास के मर जाने के बाद जब बहू को लगा उसने जाने—अनजाने में बड़ा अपराध कर दिया है तो उसे छुपाने के चक्कर में वह और नृशंस हो गयी। उसने सरसों के तेल से सास को जलाने की कोशिश की जिससे कि वह सास की मौत को हादसा का रूप दे सके। पर यह संभव न हो सका। सास अधजली रह गयी और बहू धरी गयी।

बहू अब पुलिस हिरासत में है, सास इस दुनिया से चली गयी। बच्चे बिना मां के घर में हैं और पति की जो हालत होगी, उसे हम सब समझ सकते हैं।

इस पूरी प्रकिया में किसी को कुछ मिला नहीं। सबने खोया ही। यहां तक कि अपराधी बन चुकी बहू को भी कुछ हासिल नहीं हुआ। बल्कि वह सबसे कड़ी सजा भुगतेगी। वह जब हत्या के जुर्म की सजा काटकर बाहर निकलेगी, तब तक पूरी दुनिया बदल चुकी होगी। बेटे बड़े हो चुके होंगे और पति की भी अपनी एक नई दुनिया बन चुकी होगी।

यह घटना की एक किस्त है। जिसमें एक सास, बहू, बेटे और उसके बच्चे, पुलिस और अदालत है। पर इसकी एक दूसरी किस्त भी है। दूसरी किस्त इसलिए कि सास—बहू का समाज कोई जंगल में तो रहता नहीं था, जहां मनुष्य का कोई अस्तित्व न हो, पड़ोसी न हों, घर वालों के साथी—संघाती न रहे हों।

पर ऐसी वारदातों में सुनने—सुनाने में कहीं भी समाज नहीं आता। इस जघन्य हत्याकांड में भी यह सवाल कहीं नहीं आ रहा कि अगल—बगल वाले नहीं थे क्या, उन्होंने नहीं रोका क्या, समय रहते पुलिस नहीं बुलाई क्या, जिससे बहू हत्यारिन बनने से और सास अपनी जान गंवा बैठने से बच जाती, बच्चे भी दादी हीन और मां विहीन नहीं होते।

अगर आप दिल्ली के मंडावली से परिचित होंगे तो जानते होंगे कि वहां घर कितने नजदीक और गलियां कितनी संकरी हैं। सामने से एक कार आ जाए तो पूरा रास्ता ठप हो जाता है। कार—मोटरसाइकिल खड़ी करने के झगड़ों से लेकर सीढ़ियों पर चप्पल का रेक रखने के झगड़े आम हैं। आबादी इतनी ज्यादा है कि शाम और सुबह सड़क पर लोगों से बिना धक्का खाए आप निकल नहीं सकते। आमतौर पर मकानें चार मंजिला हैं, सब मकानें एक—दूसरे से चिपकी हुई हैं और जगहों का इस्तेमाल इतनी बारीकी से हुआ है कि एक पेड़ उगने तक की जगह नहीं बची है। अगर घर 30 गज बाई 30 गज का भी है तो कमसे कम उसमें पांच परिवार और 30 लोग रहते हैं।

कहने का तात्पर्य यह कि अगर कोई गली में कूड़ा फेंके तो वह जमीन पर गिरने की बजाय किसी के सिर पर ही गिरेगा। मोटे तौर पर शहरी विकास विशेषज्ञ इन्हीं इलाकों को देख 'कंक्रीट के जंगल' शब्द का प्रयोग करते हैं।

ऐसे कंक्रीट के जंगल में अाखिर इतनी बेगानगी और अकेलापन क्यों है कि दो औरतों की लड़ाई में कोई तीसरा नहीं आता है। उसमें भी एक औरत 60 साल की विकलांग और दूसरी 29 वर्ष की जवान है। अरे, मारपीट में हल्ला हुआ होगा, आवाज आई होगी, गाली—गलौज हुई होगी। फिर यह कौन सा दिल्ली का बसंतकुंज हो रहा था जो किसी पड़ोसी को आवाज नहीं गयी, कोई छुड़ाने नहीं गया। सास की हत्या के बाद वह औरत तेल डालकर मारने की कोशिश में लगी रही, पर किसी ने दरवाजा तक नहीं खटखटाया।

आपको नहीं लगता कि दरवाजे की एक खटखटाहट इस हादसे या हत्या को टाल सकती थी। किसी पड़ोसी का यह पूछना ही कि क्या हो रहा है भाई, तनाव और क्रोध के उस क्षण में राहत का काम करता है। यही राहत एक बहू को जेल से और सास को बेमौत मरने से बचा सकती थी। यहां पड़ोसी की एक पहल जेल, पुलिस और अदालत से बड़ी साबित हो सकती थी, पर हम नहीं कर पाते ऐसा।

आपके बच्चे के इधर—उधर जाने पर पुलिस के बजाए पड़ोसी का टोकना ज्यादा कारगर होगा, इसी तरह पड़ोसी के झगड़े में पुलिस के फोन के बजाए मोहल्ले वालों की आपसी बातचीत से हुआ समझौता समझदारी भरा होगा।

मनोवैज्ञानिक, समाजविज्ञानी और अपराध विशेषज्ञों से आप बात करें तो पाएंगे कि जहां अपराध हो जाते हैं और जहां होते—होते रह जाते हैं, वहां पड़ोस, परिवार और बगल वालों की ही भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इसमें पुलिस, सुरक्षा, कड़े कानून और सख्त सजा सिर्फ जुमले बनकर रह जाते हैं।

मैं यह नहीं कहता कि पुलिस, न्याय और अदालत बेमानी है पर एक कहावत तो याद होगी, 'जहां काम आवे सुई, का करि तलवार'। एक सामान्य सा, रोज चिक—चिक करने वाला पड़ोसी, मामूली दिखने वाला, संभव है आपके स्टेटस से मेल न खाता हो, अव्यावहारिक और कंजूस हो वह, लेकिन औरतों पर होने वाली हिंसा, बच्चों के साथ अपराध, लड़कियों की छेड़खानी, यौन हिंसा और आपसी झगड़ों में वह अचूक भूमिका निभा सकता है, जो दुनिया की कोई ताकत नहीं निभा सकती है।

इसलिए सास की हत्या की आरोपी बन चुकी बहू के मामले में सबसे पहले अगर कोई गुनहगार, असंवेनशील और दोषी है तो वह मंडावली मोहल्ले के पड़ोसी, बगलगीर और साथ में चाय—पानी पीने वाले, जिन्होंने एक बार दरवाजा तक नहीं खटखटाया, नहीं निपट पाने की स्थिति में पुलिस का 100 नंबर नहीं लगाया।

ऐसे में चुनौती भी यही है कि पड़ोस को फिर से जीवंत किया जाए, उनके हाल—चाल पूछे जाएं, तमाम मतभेदों के बावजूद फेसबुक और वाट्सअप पर यार—दोस्त बनाने के साथ पड़ोस और आसपास के रिश्तों को जिंदगी में स्पेस दिया जाए।

Janjwar Team

Janjwar Team

    Next Story

    विविध