
भूपेंद्र सिंह की कहानी 'कमला'
अच्छा तो तू अब मुझे अपनी कमाई खिलाएगी। तू क्यों मेरी नाक कटवाना चाहती है यार-दोस्तों में? खुद कमाना बस का नहीं तो लुगाई से भी मजदूरी करवानी शुरू कर दी पट्ठे ने। यही तो बोलेंगे लोग मुझे....
भूपेन्द्र सिंह की कहानी
सत्ते ने दो हजार रुपये अपनी पत्नी को हाथ पर रखते हुए कहा- ‘ले कमला इस महीने की तनख्वाह।’
‘बस इतनी ही? आपकी तनख्वाह तो सत्ताइस सौ रुपये है न, बाकी रुपये कहां गए?’ कमला ने सत्ते की बाजू पकड़कर हिलाते हुए पूछा।
‘क्यों तुझे पता नहीं, मैं बीमार था। एक सप्ताह कम्पनी कहां गया। कम्पनी घर बैठे छुट्टियों के रुपये थोड़ी ही देती है।’
‘ अरे! मांगोगे तो देगी न, जुबान तो हिलाते नहीं होंगे?’
सत्ते कमला की इस बात से चिढ़ते हुए बोला- ‘क्यों तेरे बाप की कम्पनी है, जो इस तरह मांगने से पैसे मिल जाएंगे?’
‘देखो जी मेरे बाप तक मत जाओ।’
‘तो फिर तू अपने थोबड़े को चुप कर। जिस काम के बारे में पता न हो, उसके पीछे चकर-बकर नहीं करनी चाहिए।’
कमला थोड़ी देर चुप होकर फिर बोली-‘खर्च कैसे चलेगा? एक हजार तो मकान का किराया ही है और छः सौ रुपये राशन वाले के पिछले महीने का बकाया हैं। अब बचे चार सौ रुपये। साढ़े तीन सौ चन्ना की स्कूल की फीस है। इस छोकरी को पढ़ाना है या नहीं? बिना फीस के इसको कौन खड़ा होने देगा अपने स्कूल में? और पचास-सौ तो तुम्हारे बीड़ी-बंडल में ही निकल जाते हैं।’
सत्ते कमला की बातों को अनसुना करते हुए खाना खाकर सो गया। लेकिन, कमला ने सारी रात चिन्ता में ही बिता दी। अगले दिन सत्ते जब ड्यूटी जाने के लिए तैयार हुआ, तो कमला कहने लगी- ‘देखो जी महंगाई तो बहुत है। जब आपको पूरी तनख्वाह मिलती है, तब भी गुजारे के लिए कम ही पड़ते हैं। क्या खाया क्या बचाया? क्यों न आपके साथ मैं भी नौकरी करूं, अगर दोनों की तनख्वाह मिलाकर पांच-छह हजार हो जाएं, तभी हम कुछ बचा पाएंगे। कम से कम दोनों में से एक की तनख्वाह तो बचेगी न।’
सत्ते कमला को गुस्से से देखते हुए बोला- ‘अच्छा तो तू अब मुझे अपनी कमाई खिलाएगी। तू क्यों मेरी नाक कटवाना चाहती है यार-दोस्तों में? खुद कमाना बस का नहीं तो लुगाई से भी मजदूरी करवानी शुरू कर दी पट्ठे ने। यही तो बोलेंगे लोग मुझे।’
‘आहो! मुझे नहीं पता था, तुम्हारी नाक इतनी लम्बी है। जो तुम्हें इतनी प्यारी है, जाकर बाजार से इस पर लोहे का कवर चढ़वा लो। नहीं तो राशन की दुकान वाला इसे काटकर ले जाएगा। उसके पिछले महीने के भी छह सौ रुपये हैं और इस महीने के पता नहीं कितने निकालेगा। आज कल में वह आ ही जाएगा पैसे मांगने के लिए और मकान मालिक तो घर से निकाल ही देगा। तब तो आपकी नाक बची रहेगी न।’
‘
तू ज्यादा बक-बक
मत कर। मैं तुझे
नौकरी नहीं
करने दूंगा।’
यह कहकर सत्ते
रोटी का डिब्बा
उठाकर ड्यूटी
के लिए चल
दिया।
शाम
को ड्यूटी से
वापस आने के बाद
कमला ने फिर
समझाना चाहा।
‘देखो जी ऐसे
गुस्सा करने से
काम नहीं
चलेगा। बेटी को
भी तो
पढ़ाना-लिखाना
है। अभी तो ये
छोटी है, बड़ी
होने पर इसका
ब्याह भी करना
है। उसके
लत्ते-चावल,
दहेज का सामान,
अटरम-सटरम कहां
से जोड़ेंगे। आप
मेरी बात मानो,
मेरे लिए भी
छोटी-मोटी
नौकरी ढूंढ़
दो।’
लेकिन, सत्ते पर इन सब बातों का कोई असर नहीं पड़ा। कमला उसे जितनी बार समझाने की कोशिश करती, सत्ते उसे उतनी बार डांट-डपट कर चुप कर देता। हर रोज घर में किसी न किसी छोटी-मोटी बात पर झगड़ा हो ही जाता।
इसी तरह एक दिन जब वह कमला से झगड़ा करके घर से बाहर निकला, तो पड़ोस में रहने वाली एक बुढ़िया ने उसे रोक लिया। ‘क्यों रे सत्ते! आजकल तेरे घर में बहुत झगड़ा रहता है। देख तू परदेस में रहता है, इतना झगड़ा अच्छी बात नहीं है।’
‘क्या करूं अम्मा, आप ही समझाओ कमला को वह पगला गई है।’
‘क्यों क्या हुआ उसे?’
‘कह रही है
नौकरी करूंगी,
अब तेरी कमाई से
गुजारा नहीं
चलता। अब आप
बताओ अम्मा जी
बीवी से नौकरी
कराना कहां
अच्छी बात है?
परदे की चीज तो
परदे में ही
अच्छी लगती है
न।'
‘हां
बात तो ठीक है
बेटा, लोगों में
उठते-बैठते
लाज-शर्म तो आवे
है। लेकिन, तू
नौकरी अच्छी
जगह तो करता है,
फिर भी तेरा
गुजारा क्यों
नहीं चलता? कई
सालों से जा रहा
है, अब तो पक्का
भी हो गया
होगा?'
सत्ते चिन्तित
स्वर से बोला,
‘हां अम्मा जी,
काम तो कई सालों
से कर रहा हूं,
लेकिन कम्पनी
ने अभी तक पक्का
नहीं किया है और
रुपये भी नहीं
बढ़ा रही। बीमार
होने पर भी
रुपये काट लेती
है।’
‘देख
सत्ते मैं तुझे
इतने सालों से
जानती हूं। तू
बहुत अच्छा
लड़का है। तेरे
घर में झगड़ा
होता है, तो दुःख
होता है। मैं
तुझे एक सलाह
देती हूं।
मानना न मानना
तेरा काम है।
रांघड़ों के
मोहल्ले में
काले को तो तू
जानता है न। वह
झाड़-फूंक करता
है, उसने कइयों
के काम संवारे
हैं। मैं तो
कहूं एक बार तू
भी जाकर देख ले।
हो सकता है तेरा
भी क्लेश मिट
जावे और नौकरी
भी चंगी भली हो
जावे।’ यह
कहकर बुढ़िया घर
के अंदर चली
गई।
सत्ते
भी उसकी बातों
को अनसुना सा
करके वहां से चल
दिया। थोड़ी देर
बाद जब वह घर
लौटा, तो कमला
उसे अकेले में
बड़बड़ाती हुई
मिली, ‘घर
बसाने का तो कोई
काम है नहीं, कभी
इस यार के पास
बैठा, तो कभी
उसके पास।
यार-दोस्त इसे
खाने को दे
देवेंगे। बीवी
कमाने निकले तो
नाक कटती है।
रसोई तो औरत जात
को ही चलानी
पड़ती है। इतनी
महंगाई में
इतने कम रूपयों
में घर कैसे चले
औरत ही जाने।
मर्द तो सिर्फ
हुक्म बजाना
जाने।’
ये सब बातें
सुनकर सत्ते
बुरी तरह
झुंझलाकर
दरवाजे से ही
वापस चला गया।
वह बुढ़िया की
बताई हुई बातों
पर विचार करता
हुआ घर का
कलह-कलेश खत्म
करने के लिए उसी
झाड़-फूंक वाले
तांत्रिक के
पास पहुंचा।
थोड़ी देर बाद
उसे घर ले आया।
कमला अपने पति
को अनजान आदमी
के साथ देख
आश्चर्य से
देखने लगी।
दोनों में कुछ
धीरे-धीरे
बातें हुई। फिर
वे घर से बाहर
निकल आए।
तांत्रिक ने कहना शुरू किया, ‘देख सत्ते तेरे घर में किसी ने कुछ करवा रखा है। कराए-धराए की बू भी आ रही है। मैं तो घर में कदम रखते ही समझ गया था। कराए-धराए का अंजाम बहुत बुरा होता है। इसका असर तेरी पत्नी पर तो दिख भी रहा है। देखा नहीं तूने, वह कैसे देख रही थी हमें। खैर! तू चिंता मत कर मां काली सब ठीक कर देगी। मैं तुझे कुछ सामान बता रहा हूं। काली मिर्च, लाल कच्चा धागा, थोड़ा तम्बाकू, काली दाल, कलौंजी, सवा सेर मिठाई, एक बोतल शराब और सात कच्चे अंडे, ये सब चीजें सवा गज काले कपड़े में बांधकर रात 10.00 बजे मेरे घर आ जाना। शराब की बोतल और कच्चे अंडे लाना मत भूलना। मां काली को कच्ची भेंट जरूर चढ़ानी पड़ेगी।’
सत्ते
तांत्रिक
द्वारा बताया
गया सारा सामान
लेकर ठीक 10.00 बजे
काले तांत्रिक
के घर पहुंच
गया। तांत्रिक
उसे देख कर खुश
हो गया और बोला,
‘तेरा ही
इंतजार कर रहा
था। सारा सामान
ले आया क्या?
तुम्हारी बीबी
कहां है?’
‘आपने तो उसे
लाने के लिए कहा
नहीं था।’
तांत्रिक उस पर बिगड़ते हुए बोला, ‘तुम मूर्ख हो क्या? मैंने तुम्हें बताया था न कि तुम्हारी पत्नी पर असर दिख रहा है। इधर मैं मां काली का दरबार सजाए बैठा हूं और तुम अकेले ही आ गए। इस सारे सामान को यहां रखो और वापस जाकर उसे भी साथ लेकर आओ।’
सत्ते सामान रख कर वापस घर की तरफ चल दिया। उसने घर जाकर दरवाजा खटखटाया। कमला दरवाजा खोलते हुए बोली, ‘क्यों जी आज तो बड़ी देर लगा दी। कहां थे अब तक? मुझे तो बहुत चिन्ता हो रही थी और वह आदमी कौन था, जो आपके साथ आया था।’
‘तुम सारी बातों को छोड़ो अभी मेरे साथ चलो।’
‘लेकिन कहां?’ कमला ने आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा।
‘तुम्हारा इलाज करवाना है।’
‘क्यों क्या हुआ मुझे? मैं तो चंगी भली हूं और ये किस तरह की बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं आप?’
‘नहीं यह बहकी हुई बात नहीं है। मैं ठीक कह रहा हूं। तुम पर ओपरे-पराए का असर है। वह जो आदमी मेरे साथ आया था, झाड़-फूंक करता है। उसी के पास जाना है।’
यह सब सुन कमला का मुंह फटा का फटा रहा गया।
सत्ते अपनी
धुन में कहता ही
जा रहा था,
‘जल्दी चलो
देर हो रही है,
वहां पर पूजा की
तैयारी हो चुकी
है।’
कमला कठोर
शब्दों से कहने
लगी, ‘नहीं मैं
नहीं जाने वाली
कहीं, तुम्हें
जहां जाना है
जाओ।’
सत्ते भी गुस्से में हो गया और बोला ‘मुझसे ज्यादा बहसबाजी मत करो, तुझे चलना ही पड़ेगा। घर की सुख-शांति का जो सवाल है।’
‘तुझे घर की इतनी ही चिन्ता है, तो मुझे नौकरी क्यों नहीं करने देता? उसके बाद सब ठीक हो जायेगा।’
कमला के यह कहते ही सत्ते का चेहरा गुस्से में तमतमाने लगा और बोला, ‘एक तो मैं इतने रुपये खर्च कर रहा हूं पूजा पाठ पर, ऊपर से तू मुझे ही पाठ पढ़ाने की कोशिश कर रही है।’
‘कितने रुपये खर्च कर रहे हो और कहां से लाए इतने रुपये? जरूर तुमने किसी से कर्जा लिया है।’
सत्ते अब और
ज्यादा गुस्से
में होकर बोला,
‘हां लिया है
कर्जा, बोल तू
क्या करेगी
मेरा? और लगता है
इस तरह नहीं
मानेगी तू, तुझे
जबरदस्ती ले
जाना पड़ेगा।’
इसके बाद सत्ते
कमला का हाथ पकड़
कर खींचने
लगा।
कमला
सत्ते का विरोध
करती हुई बोली,
‘यह क्या कर
रहे हो? लड़की
अकेली सो रही
है। अगर आंख
खुली तो बेचारी
रो-रोकर मर
जाएगी। तुम
कैसे बाप हो, जो
अपनी बेटी को
अन्दर अकेली
छोड़ ताला लगा
दिया है।’
लेकिन सत्ते पर कमला की इन बातों का कोई असर नहीं पड़ा और कमला की उसके सामने एक न चली। उसे सत्ते के साथ जाना ही पड़ा। जब तक वे दोनों तांत्रिक के घर पहुंचते तब तक वह सारे अण्डे खा कर पूरी शराब की बोतल खाली कर चुका था और मां काली की मूर्ति के सामने अगरबत्ती जलाए बैठा था।
सत्ते कमला के साथ जोर-जबरदस्ती करता हुआ तांत्रिक के घर पहुंच गया, ‘चलो-चलो अब और ज्यादा हठ मत पकड़ो, थोड़ी देर ही की तो बात है, पूजा ही तो करवानी है। मुष्किल से आधा घंटा बस।’
‘लेकिन लड़की बेचारी अकेली....।’
सत्ते ने कमला की बीच में ही बात काटी, ‘अरे! कहा न थोड़ी देर में पहुंच जाएंगे। चलो अब अन्दर।’
जैसे ही दोनों अन्दर घुसे तो तांत्रिक ने उन्हें काली मां की मूर्ति के सामने बैठने का इषारा किया और बोला, ‘बोलो जय मां काली।’
कमला सत्ते से कहने लगी, ‘देखो जी मुझे डर लग रहा है।’
‘डरो मत’ और उसे हाथ पकड़ खींचकर अपने पास बैठा लिया।
‘हां-हां डरो मत मां काली सब ठीक कर देगी। बोलो जय मां काली। ये सबके दुःख हरती है।’ तांत्रिक ने कमला की तरफ देखते हुए कहा।
‘लेकिन, मुझे तो कुछ नहीं हुआ है, मैं तो एकदम ठीक हूं, मुझे क्यों बुलाया है?’
‘अरे! औपरा-पराया कोई बुखार, जुकाम नहीं है, जो तुम्हें इतनी आसानी से पता चल जाए। नहीं तो हम क्यों बैठते यहां पर? और खाली बात तुम्हारी ही नहीं है। तुम्हारे पति के काम—धंधे में बढ़ोत्तरी का भी सवाल है। बोलो जय मां काली।’
फिर मूर्ति के सामने रखा हुआ दो गिलास पानी उठाकर उन दोनों को देते हुए कहा, ‘लो पहले माता का अमृत पी लो, थोड़े शुद्ध हो जाओ फिर मंत्र षुरू करते हैं।’
कमला ने पानी पीने से मना किया, तो सत्ते ने उसे डांटते हुए कहा, ‘मर नहीं जाओगी माता के दरबार में हो चुपचाप पी क्यों नहीं लेती। ये लो तुम्हें डर है तो पहले मैं पी लेता हूं।’ और सत्ते ने दो-तीन घूंट में सारा गिलास खाली कर दिया।
फिर बोला, ‘लो अब तो पी लो।’ कमला ने भी डरते-डरते पानी पी लिया।
तांत्रिक फिर बोला, ‘बोलो जय मां काली। मंत्र शुरू करते हैं।’ जब तक तांत्रिक ने दो-तीन मंत्र बोले, तब तक वे दोनों नींद के नशे में वहीं ढेर हो चुके थे। तांत्रिक ने उनके आने से पहले ही पानी में कुछ नशीला पदार्थ मिला दिया था।
सुबह होने
पर जब सत्ते की
आंख खुली तो,
उसने जो दृश्य
देखा उस पर उसे
विश्वास नहीं
हो रहा था,
तांत्रिक वहां
से गायब था।
कमला का रो-रोकर
बुरा हाल था,
उसकी आंखें
पथरा गई थीं। वह
जागते हुए भी
होश में नहीं
थी। सत्ते की
उसे छूने की
हिम्मत नहीं हो
रही थी। उसके
हाथ-पैर ढीले पड़
गए थे। मानो वह
लकवे का शिकार
हो गया हो।
अचानक ही वह
दहाड़ें मार-मार
कर रोने लगा।
रोने का शोर
सुनकर आस-पड़ोस
की महिलाएं
वहां इकट्ठा हो
गई। बात सारे
गांव में आग की
तरह फैल गई।
धीरे-धीरे वहां
भीड़ इकट्ठी हो
गई। लोगों ने
उन्हें ढांढस
बंधाया और उनके
घर पहुंचा
दिया।
घर
पहुंचने पर
कमला पति की
छाती पर सिर रख
फूट-फूट कर रोने
लगी। मां की
रोने की आवाज
सुन अब तक चन्ना
भी जाग गई थी।
एकाएक कमला उठी
और उसने अपनी
बेटी को अपने
आंचल में छुपा
लिया।
अब
कमला के पास
अपनी किस्मत पर
रोने के सिवाय
कुछ नहीं बचा
था। इस समय वह
अपने को
रेगिस्तान के
उस रेतीले टापू
पर बैठी निसहाय
सी महसूस कर रही
थी, जहां मनुष्य
तो क्या दूर-दूर
तक पेड़-पौधे,
पशु-पक्षी तथा
पानी की एक बूंद
भी न हो। जहां
गर्म तपती हुई
हवाएं, जलती रेत
तथा दम घोंट
देने वाले
रेतीले तूफानों
के अलावा और कुछ
न हो।
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