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आंदोलन

बिहार में विश्वविद्यालय सेवा आयोग का गठन सिर्फ एक छलावा

Janjwar Team
6 Oct 2017 11:10 PM GMT
बिहार में विश्वविद्यालय सेवा आयोग का गठन सिर्फ एक छलावा
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बिहार सरकार एक तरफ यूजीसी नियमावली के तहत बहाली के दावे करती है दूसरी तरफ बीपीएससी ने जो सहायक प्राचार्य बहाली के विज्ञापन निकाले हैं, वह कहीं से यूजीसी गाईडलाईन को फोलो नहीं करते...

मधेपुरा, बिहार। मानववादी जनता पार्टी (माजपा) ने मंसूरीबाग मुरलीगंज के जिला कार्यालय में बिहार के कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर बहाली अविलम्ब करने तथा पी-एचडी 2009 रेगुलेशन पूर्व एवं बाद की बाध्यता को समाप्त कर बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर बहाली को अविलम्ब रद्द करते हुए सभी विसंगतियों को दूर कर फिर से विज्ञापन प्रकाशित कर बहाली किए जाने के मसले पर प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की।

5 अक्तूबर को आयोजित प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए माजपा के प्रदेश अध्यक्ष फिरोज मंसूरी ने कहा कि बिहार सरकार एक तरफ यूजीसी नियमावली के तहत बहाली के दावे करती है दूसरी तरफ बीपीएससी ने जो सहायक प्राचार्य बहाली के विज्ञापन निकाले हैं, वह कहीं से यूजीसी गाईडलाईन को फोलो नहीं करते।

नंबरों के आधार पर इंटरव्यू करा नेट जेआरएफ, पी-एचडी योग्यता धारी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। पहले पी-एचडी नेट जेआरएफ की एकता में पी-एचडी 2009 रेगुलेशन का बहाना बनाकर आपस में फूट डाल दी, बाद में मार्क्स प्रतिशत का बहाना बनाकर नेट जेआरएफ योग्यता वाले को बाहर का रास्ता दिखा दिया।

हजारों गेस्ट फेक्लटी पी-एचडी नेट जेआर एफ योग्यता वाले बिहार के विश्वविद्यालय में अपनी सेवा दे रहे हैं, उनके शिक्षण प्रशिक्षण अनुभव को ताक पर रख कर बीपीएससी ने विसंगतिपूर्ण विज्ञापन निकाला, जो कहीं से संविधानिक नहीं था।

कांफ्रेंस में कहा गया कि बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेज में 23 सितम्बर 2014 तक पी-एचडी योग्यता धारी को माननीय उच्च न्यायालय पटना के LPA 354/16 के आदेश के आलोक में सहायक प्रोफेसर के लिए योग्य मान लिया है। यानी जो अंग्रेजी, भौतकी शास्त्र, रसायन शास्त्र, गणित विज्ञान से पी-एचडी उपाधि प्राप्त हैं उनको इंजीनियरिंग छात्रों को पढाने लिए योग्य मान लिया गया है, परन्तु एक साधारण कॉलेज में पढाने के लिए बीपीएससी और राज्य सरकार अयोग्य मान रही है, जबकी आयोग ने दोनों विज्ञापन मात्र दो दिनो के अन्तर पर प्रकाशित किया था। फिर नियम में इतना भेदभाव क्यों यह सुशासन का यह कैसा न्याय है?

कहा कि आयोग और सरकार ने अपने सगे संबंधियों में नौकरी बांट दी। इससे पहले 2003 के प्रोफेसर नियुक्ति घोटाले की जांच निगरानी को सौंपी गयी थी, जिसकी रिपोर्ट आज तक सामने नहीं आई क्योंकि वे बड़े—बड़े सफेदपोश नेता ब्यरोक्रेट्स के सगे संबंधी हैं।

कहा गया कि नियुक्ति घोटाले से बचने के लिए नीतीश सरकार ने विश्वविद्यालय सेवा आयोग का गठन किया। यह गठन भी एक छलावा है। 2003 के बाद राज्य सरकार ने असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली नहीं की। पी-एचडी उपाधि इन वर्षों में यूजीसी नियम के तहत मिलती रही, फिर 2009 पी-एचडी रेगुलेशन का बहाना बनाकर 2014 के बीपीएससी ने असिस्टेंट प्रोफेसर बहाली से रेगुलेशन पूर्व योग्यताधारी को निकाल बाहर किया। यह केन्द्र और राज्य सरकार की मनमानी है।

मंसूरी ने राज्य सरकार को सचैत करते हुए कहा कि अगर बिहार के मेरिट का सम्मान नही हुआ तो मानववादी जनता पार्टी 28 अक्टूबर को विधानसभा का घेराव करेगी।

इस अवसर पर बोलते हुए प्रभाकर ने कहा, असिस्टेंट प्रोफेसर बहाली में डोमिसाईल को अनिवार्य बनाया जाय, बिहार के अभ्यर्थियों को अधिक मौका मिले, ऎसे नियम बनने चाहिए। दिल्ली विधानसभा की तर्ज पर गेस्ट फेक्लटी को कॉलेज में स्थाई करने की तरफ कदम बढ़ाया जाए।

माजपा बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष विनोद मंडल ने कहा की बेरोजगारों‌ गाके साथ मजाक केन्द्र व राज्य सरकार को महंगा पड़ेगा। नीतीश कुमार पी-एचडी नेट वालों को बिहार के कॉलेजों में बहाल करें, वरना उनकी गद्दी जानी तय है। इस सम्मेलन में संजय कुमार, अजीत कुमार, मो करीम, नगर अध्यक्ष मो आफताब संतोष यादव उर्फ सिन्टू, कलीम अफरोज समेत भारी संख्या में लोग उपस्थित थे।

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