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आंदोलन

बिड़ला की कंपनी के खिलाफ 12 सौ मजदूर हड़ताल पर

Janjwar Team
20 Oct 2017 11:36 PM GMT
बिड़ला की कंपनी  के खिलाफ 12 सौ मजदूर हड़ताल पर
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कंपनी ने वायदा किया था कि वह मजदूरों को वीआरएस देगी पर कंपनी मजदूरों को वीआरएस देने की बजाय 300 को बाहर निकाल दिया

जनज्वार, खरगोन। मुंबई—आगरा एक्सप्रेस हाईवे पर ग्राम मगरखेड़ी और निमरानी के बीच जिला खरगोन में सेंचुरी (यार्न व डेनिम) मिल के 1200 मजदूरों परिवार समेत अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए हैं। इस धरने को समर्थन देने आज नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर भी पहुंची थीं।

बिरला समूह ने 17 अगस्त को देर रात 2.30 बजे शासकीय अधिकारियों, राजनीतिक नेताओं और मजदूर संगठनों की उपस्थिति में यह वक्तव्य दिया था कि सेंचुरी मिल अपना कारोबार सुचारू रूप से चलाएगी। और अगर लीज या बिक्री कर बिरला समूह किसी और समूंह या कंपनी को सेंचुरी को बेचता है तो कंपनी सबसे पहले मजदूरों को VRS (स्वैच्छिक निवृत्ती योजना) का लाभ देगी।

लेकिन मजदूरों और सेंचुरी यार्न प्रबंधन के बीच हुए समझौते को अभी 5 दिन भी नहीं गुजरा था कि सेंचुरी मिल, वैरीयट ग्लोबल को बेच दी गयी। बेचने के बाद बिरला की कंपनी सेंचुरी ने मजदूरों को VRS देने से नकार कर गयी।

इस बिक्री को मजदूरों ने खुद के साथ गहरा धोखा माना। मजदूरों का कहना है कि वे अब अपनी लड़ाई को संगठित तौर पर आगे ले जाएंगे और कंपनी को इस धोखेबाजी का मोल चुकाना होगा।

नर्मदा बचाओ आन्दोलन से कमला यादव, मुकेश भगोरिया, मेधा पाटकर व नर्मदा घाटी के अन्य बाँध प्रभावितों ने भी इस अन्याय के खिलाफ मजदूरों के संघर्ष का समर्थन किया। संजय चौहान, राजकुमार दुबे, व मजदूर संगठनों के कुछ नेताओं ने अपनी भूमिका स्पष्ट करते हुए संघर्ष को अपना समर्थन प्रकट किया।

हकीकत यह है कि सेंचुरी यार्न व डेनिम जींस की यह बेहतरीन उत्पादन की फैक्ट्री में 1200 श्रमिक कार्यरत है और पिछले कुछ सालों से अचानक इनके कागजात ‘फर्जी’ घोषित करके लगभग 300 मजदूरों को नौकरी से हटाया गया है। यह अन्याय है, कहकर मजदूरों ने आवाज उठाया, जो चार मजदूर संगठन इसमें है, उन्होंने समझौता किया लेकिन आज तक उस पर भी अमल न होने से ये परिवार अभी तक न्याय से वंचित हैं।

बड़ी संख्या में उपस्थित महिला शक्ति को सलाम करते हुए मेधाजी ने कहा, आज देश में बड़ी कंपनियों की दादागिरी का आधार है राजनितिक आशीर्वाद। बिरला समूह ने फैक्ट्री को गैरकानूनी प्रक्रिया द्वारा बेच दी है। वैरीयट कंपनी मजदूरों को स्वीकार है या नहीं, यह तो पूछा ही नहीं गया। श्रमायुक्त के समक्ष दाखिल शिकायत पर भी निर्णय नहीं हुआ तो मिल पर वेयरइट का बैनर केसे टांगा गया? मजदूरों के संघर्ष को कानूनी और मैदानी स्तर पर लड़ेंगे। कंपनी के बाहर सैकड़ों संघर्षशील साथियों का धरना अभी भी जारी है।

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