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राजनीति

लालू नाम की मछली पकड़ने से राजनीतिक तालाब को क्या फर्क पड़ेगा

Janjwar Team
12 July 2017 8:41 AM GMT
लालू नाम की मछली पकड़ने से राजनीतिक तालाब को क्या फर्क पड़ेगा
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लालू की कीमत पर, व्यापमं और माल्या जैसे प्रकरणों पर आँखें मूंदने वाला मोदी गिरोह खुद के लिए ईमानदारी का प्रमाणपत्र बटोरने जुगत में लगा है...

वीएन राय, पूर्व आइपीएस

आपको मोदी शासन का अंध भक्त होना पड़ेगा अगर यह तर्क स्वीकार करना है कि लालू यादव और उनके कुनबे पर सीबीआई के छापों से देश की राजनीति में भ्रष्टाचार निरोधक किसी काल्पनिक मुहिम को बल मिलेगा . दरअसल, इसका जो भी थोड़ा-बहुत असर पड़ेगा वह लालू तक ही सीमित दिखेगा, भारतीय राजनीति में सर्वत्र छाये भ्रष्टाचार पर इसकी छाया भी नहीं पड़ेगी.

लालू पर छापे पहले भी पड़े हैं, यहाँ तक कि वे गिरफ्तार होकर कुछ समय तक जेल में भी रहे हैं. उन पर कायम पुराने चारा घोटाला के कई मुकदमे अभी भी चल रहे हैं, कुछ में उन्हें सजा भी मिल चुकी है जो फिलहाल अपील में लंबित हैं. ऐसी कवायदों की हकीकत क्या है? मनमोहन-सोनिया राज में तो आंध्र के लालू, स्वर्गीय मुख्यमंत्री वाइएसआर के बेटे जगन रेड्डी को सीबीआई के छापों ने वर्षों जेल में रखा पर आंध्र प्रदेश की राजनीति, ज्यों की त्यों भ्रष्टाचार की धुरी पर ही घूमती रही.

हालाँकि, पुरानी कहावत है एक गंदी मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है. लिहाजा गंदी मछली का तालाब से निकाला जाना स्वागत योग्य कहा जाएगा. लेकिन जब सारा तालाब ही लगभग गंदी मछलियों से भरा हो तो एक मछली के निकलने से क्या फर्क पड़ेगा? कौन नहीं जानता कि इन लालू छापों का भी तिलिस्म राजनीतिक सत्ता हथियाना है, राजनीति-जनित भ्रष्टाचार पर नकेल डालना नहीं.

सत्ताधारियों का अपने विरोधियों पर दबाव बनाने के लिए सीबीआई छापे डलवाना एक परंपरा सी बन गयी है. इसी का दूसरा पहलू है सीबीआई मामलों में ढील देकर उनसे मनचाही राजनीति कराना. हाल में, उत्तर प्रदेश चुनाव के समय, मायावती के कभी विश्वासपात्र मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को एनएचआरएम घोटाले में सीबीआई से राहत दिलवाकर, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उनसे मायावती को जमकर खरी-खोटी सुनवाई. इसी अंदाज में अब लालू पर सीबीआई का दबाव बनाकर बिहार की महागठबंधन सरकार को अस्थिर किया जा रहा है.

अन्यथा लालू प्रसाद के जग-जाहिर भ्रष्ट राजनीतिक जीवन को सार्वजनिक करने के लिए क्या किसी सीबीआई छापे की ज़रूरत है? अगर किसी सरकार को वाकई राजनीतिक भ्रष्टाचार को नाथना है तो उसके छापे पड़ने चाहिए सत्ता और संरक्षत्व के केन्द्रों पर. आज के दिन इसका सीधा मतलब हुआ, हजारों-लाखों करोड़ का बजट खपाने वाले मंत्रालयों और उनके प्राधिकरणों, और मुख्यमंत्री कार्यालयों पर. भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम काले धन से अमीर बने राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक दलों पर. आरएसएस जैसे आज के संरक्षण प्रदाता संस्थाओं और मुनाफाखोर क्रोनी कैपिटल के ठिकानों पर।

मोदी शासन की असल नीयत जानना हो तो गांधी परिवार के दामाद रॉबर्ट वाड्रा का उदाहरण सामने है. वाड्रा द्वारा राजनीतिक संरक्षण में किये गए जमीनों के घोटालों में कुछ भी छिपा नहीं है. साफ है कि ‘इस हाथ ले और उस हाथ दे’ का खुला खेल खेला गया था.

वाड्रा के हरियाणा मामलों में तो एक न्यायिक कमीशन की रिपोर्ट भी भाजपाई खट्टर सरकार के पास लगभग साल भर पहले आ चुकी है. उसकी गिरफ्तारी और चालान में देर इसलिए क्योंकि सह-अभियुक्त डीएलएफ़ कंपनी में भाजपाई शीर्षस्थों का काला पैसा भी लगा हुआ है. इसी लिए मोदी शासन उसे अपना दामाद मान कर चल रहा है.

वैसे भी महज पैसों की बेईमानी को ही असल बेईमानी के रूप में पेश करना अपने आप में बड़ी बेईमानी हुयी. असल बेईमानी छिपी होती है सरकार की उन नीतियों में जो बड़े कॉर्पोरेट की लाखों करोड़ की टैक्स चोरी को अनदेखा करती हैं और उन्हें हजारों करोड़ के बैंक कर्जे डकारने देती हैं. असल बेईमानी हुई सरकारी नीतियों को इस तरह लागू करने में कि एक सामान्य नागरिक को उसका लाभ ही न मिले जबकि मुनाफाखोरों की लूट जारी रहे.

ताजातरीन उदाहरण है नए रियल एस्टेट एक्ट का जो कांग्रेस के ज़माने से चलते-चलते संसद से अब पारित हुआ है. इसमें बिल्डर की मनमानी के मुकाबले उपभोक्ता को कई राहत दी गयी हैं. ये राहत मिलनी शुरू क्यों नहीं हो रहीं? क्योंकि किसी भी राज्य सरकार ने, जिनमें तमाम भाजपाई सरकारें भी शामिल हैं, इस एक्ट के तहत नियम ही नहीं बनाये. यह भी तय है कि जब कभी नियम बनेंगे तो बिल्डर के मतलब से न कि उपभोक्ता के.

लालू की कीमत पर, व्यापमं और माल्या जैसे प्रकरणों पर आँखें मूंदने वाला मोदी गिरोह खुद को ईमानदारी का प्रमाणपत्र देने में अकेला नहीं है. स्वयं को सुशासन बाबू का तगमा बाँटते नहीं थकते नीतीश कुमार भी बहती गंगा में हाथ धोने में पीछे नहीं. उनके दल जेडीयू ने प्रस्ताव पारित कर लालू के बेटे और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से आह्वान किया है कि वे जनता में जाकर सीबीआई आरोपों की सफाई दें. यानी वर्तमान लालू प्रहसन का सूत्रधार जो भी हो, बंटाधार किसी का नहीं होगा.

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