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आंदोलन

गोरखालैंड बंद के 50 दिन पूरे, सरकार ने कराया 400 करोड़ का नुकसान

Janjwar Team
4 Aug 2017 10:13 PM GMT
गोरखालैंड बंद के 50 दिन पूरे, सरकार ने कराया 400 करोड़ का नुकसान
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दार्जिलिंग।पश्चिम बंगाल से अलग गोरखालैंड राज्य की चल रही मांग को लेकर जारी बंद के कारण करीब 4 सौ करोड़ का नुकसान हो चुका है। नुकसान का बड़ा हिस्सा चाय बगानों और पर्यटन क्षेत्र से जुड़ा है।

नुकसान के लिए सीधे तौर पर राज्य और केंद्र सरकार जिम्मेदार हैं, क्योंकि राज्य सरकार राज्य आंदोलनकारियों से दुश्मन सा रवैया रख रही है तो केंद्र की भाजपा सरकार पीछे दरवाजे से गोरखाओं की मांग में आग की घी डालने काम कर रही है। दार्जिलिंग से आकर भाजपा के नेता दिल्ली में आंदोलन को उकसाने और ममता सरकार को संकट में डालने के लॉबिंग कर रहे हैं।

दोनों पार्टियां जानती हैं कि राज्य बंटवारे का यह आंदोलन नहीं है, बल्कि गोरखाओं के बराबरी और सम्मान का आंदोलन है। सरकार गोरखाओं से नेपाली मानकर खराब व्यवहार और व्यवस्था में असंगत हिस्सेदारी बंद कर दे, कल को यह आंदोलन बंद हो जाएगा।

पर राज्य और केंद्र सरकारें इस आंदोलन का मजा ले रही हैं और चाहती हैं कि इसका अंत राजनीतिक फायदे में वोट के रूप में हो।

पश्चिम बंगाल से अलग गोरखालैंड राज्य की चल रही मांग को लेकर जारी बंद के कारण करीब 4 सौ करोड़ का नुकसान हो चुका है। नुकसान का बड़ा हिस्सा चाय बगानों और पर्यटन क्षेत्र से जुड़ा है। नुकसान के लिए सीधे तौर पर राज्य और केंद्र सरकार जिम्मेदार हैं, क्योंकि राज्य सरकार राज्य आंदोलनकारियों से दुश्मन सा रवैया रख रही है तो केंद्र की भाजपा सरकार पीछे दरवाजे से गोरखाओं की मांग में आग की घी डालने काम कर रही है। दार्जिलिंग से आकर भाजपा के नेता दिल्ली में आंदोलन को उकसाने और ममता सरकार को संकट में डालने के लॉबिंग कर रहे हैं।

पृथक गोर्खालैंड की मांग के लिए जारी बेमियादी बंद के कल 3 अगस्त को 50 दिन पूर्ण हो गए हैं। इस अवसर पर पृथक गोर्खालैंड के अगुवा गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) की अगवानी में राज्य के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन किए गए और गोजमुमो समेत कई अन्य संगठनों के आंदोलनकारियों ने दार्जिलिंग के विभिन्न इलाकों में विरोधस्वरूप रैली निकाली।

इस दौरान आंदोलनकारियों ने हाथों में काले झंडे व तख्तियां लेकर ममता सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। गौरतलब है कि दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र के रहने वाले निवासियों की अपनी एक अलग भाषा, संस्कार और संस्कृति होने के कारण वे अपने को भिन्न समझते हैं। वे अपनी पहचान को लेकर वर्षों से आंदोलनरत हैं। उनका मानना है कि इस राज्य में उनकी अपनी कोई पहचान नहीं है। यहां से बाहर जाने पर हमें बंगाली नहीं समझा जाता है। सभी नेपाली समझते हैं। इससे ऐसा लगता है कि हम भारतीय नहीं, नेपाल के रहने वाले हैं। एक तरह से हमारी राष्ट्रीय पहचान ही खो जाती है, इसलिए हमें पृथक गोर्खालैंड चाहिए।

इसी को आधार बनाकर उन्होंने अपने को गोर्खा बताते हुए अपने लिए गोर्खालैंड की मांग शुरू की, ताकि उन्हें एक पहचान मिल सके। लोग उन्हें नेपाल का नागरिक न समझकर भारतीय नागरिक समझें, इसके लिए वे गोर्खालैंड की स्थापना को लेकर आंदोलनरत हैं। इसी पहचान के आधार पर दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र में रहने वालों में एकजुटता कायम है।

गोजमुमो की अगुवाई में 50 दिन पूर्ण होने पर निकली रैली निकालते हुए आंदोलनकारियों ने मांग की कि ममता सरकार पहाड़ पर बिना देरी किए इंटरनेट सेवा बहाल करे, साथ ही जो पुलिसबल यहां पर भेजा गया है उसे वापस बुलाए। अनिश्चितकालीन हड़ताल के चलते सरकार ने इंटरनेट सेवाओं से तो इस क्षेत्र को वंचित कर ही रखा है, पहाड़ में खाद्यान्न संकट भी गहराने लगा है।

गौरतलब है कि सरकार ने 50 दिन पूरे होने पर हिंसक घटनाओं के खतरे को भांपते हुए पर्याप्त मात्रा में यहां पुलिसबल तैनात किया हुआ था। बावजूद इसके रैली के दौरान कई जगहों पर पुलिस के साथ आंदोलनकारियों की झड़पें हुईं।

पृथक गोर्खालैंड की मांग को लेकर गोजमुमो की युवा शाखा व युवा मोर्चा के अनेक कार्यकर्ता 21 जुलाई से आमरण अनशन पर बैठे हुए थे। अनशन के 15 दिन हो चुके हैं, अनशनकर्ताओं की हालत दिन—ब—दिन बिगड़ती जा रही है। पृथक गोर्खालैंड की मांग करते हुए अनशनकर्ताओं ने पानी तक नहीं पिया है। कालिम्पोंग में अनशन कर रहे तीनों अनशनकारी बेहोशी की हालत में हैं। अजित रोका ने तो डॉक्टरों से शारीरिक जांच करवाने से तक इंकार कर दिया। राजू विश्वकर्मा और सागर दियाली की हालत भी बिगड़ रही है।

डॉक्टरों के मुताबिक पानी तक न पीने के कारण अनशनकारियों के शरीर के कई अंग ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। किडनी भी काफी हद तक क्षतिग्रस्त हो चुकी है। किसी भी समय उनके साथ कुछ भी हो सकता है। उनकी बिगड़ती हालत के मद्देनजर डॉक्टरों ने उन्हें शीघ्र अस्पताल में भर्ती करने को कहा है।

दूसरी तरफ अनशनकारी कहते हैं कि हमारी अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी रहेगी और हम गोरखालैंड के लिए जीवन तक कुर्बान करने को तैयार हैं। गौरतलब है कि है कि 50 दिन से जारी बेमियादी बंद के कारण इस पहाड़ी भूभाग के स्कूल-कॉलेज, सरकारी कार्यालय, होटल, बैंक, एटीएम, दुकान-बाजार सब बंद हैं। इससे पहले वर्ष 1986 में यहां लगातार 46 दिनों तक बंद हुआ था।

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