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सिक्योरिटी

जहां शांति है वहीं तरक्की है

Janjwar Team
23 Sep 2017 11:31 AM GMT
जहां शांति है वहीं तरक्की है
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हर औरत और मर्द एक-दूसरे से अलग है, उनमें अंतर है। यही अंतर टकराव का सबब बनता है। पैदाईश के साथ ही हर औरत ‘मिस डिफरेंट’ है और हर मर्द ‘मिस्टर डिफरेंट’ होता है...

मौलाना वहीदुद्दीन खां, प्रख्यात मुस्लिम स्काॅलर

मेरे आॅफिस के सामने एक बड़ा पेड़ है। इस पर एक बेल जैसा पेड़ ‘अमरबेल’ चढ़ा हुआ है, जिसे पारासाइट यानी परजीवी कहते हैं। उस पर बहुत सुंदर-सुंदर फूल खिले हुए हैं, लेकिन उसमें कांटा भी है। फूल के साथ कांटे का मंजर होता है। बहुत से पेड़ों में दिखाई देता है, जैसे गुलाब का पेड़ या कोई और भी।

प्रकृति में ऐसा क्यों है? सारी दुनिया में ऐसे पेड़ उगे हुए हैं जिनमें फूल के साथ कांटा होता है। वनस्पति विज्ञान बताता है कि पेड़ को फूल के साथ कांटे की कोई जरूरत नहीं है। फिर प्रकृति ने पेड़ में फूल के साथ कांटा क्यों पैदा किया? ये कांटा फूल लिए नहीं है। ये कांटा इसलिए है कि इंसान इसे देखें और सबक लें। इंसान समाज के अंदर दूसरों के साथ कैसे रहे, वो परिवार में कैसे रहे, अपने पड़ोसियों के साथ कैसे रहे, इसी को बताने के लिए प्रकृति ने फूल में कांटे बनाए हैं।

तमसरी के रूप में फूल और कांटे का ये संबंध बताता है कि इंसान को चाहिए कि वो इसी कल्चर का अपनाए, जिस तरह पेड़ कांटे के साथ फूल बनकर रहते हैं, ऐसे इंसान भी समाज में कांटे के साथ फूल बनकर रहे।

कांटे के साथ फूल बनकर रहने का मतलब क्या है? वो ये है कि समाज में, परिवार में भी बार-बार ऐसा होता है कि एक से दूसरे की कोई चीज बुरी लग जाती है, एक से दूसरे को कोई दुख पहुंच जाता है, एक को दूसरे के साथ ऐसा व्यवहार देखने को मिलता है, जिस पर वह भड़क उठे, घृणा करने लगे और कभी-कभी लड़ाई छेड़ दे। ऐसे पेड़ ‘चुप’ की जबान में बता रहे हैं कि ऐ इंसान तू भी इसी तरह रह। तू भी हमारा कल्चर अख्तियार कर।

पेड़ चुप की जबां में कह रहे हैं कि हमको देखो! पेड़ों के बाग हैं पर कोई लड़ाई नहीं होती। बड़े-बड़े जंगल हैं पर वहां कोई फर्स्ट वर्ल्ड वार और सेकेंड वर्ल्ड वार नहीं होती। धरती पर छोटे पेड़ हैं, बड़े पेड़ हैं, लेकिन उनमें छोटे-बड़े को लेकर कोई टकराव नहीं होता। यह पेड़ों का कल्चर है। दुुनिया के बाग और जंगल यही बता रहे हैं कि इंसान भी उसी तरह शांति के और मोहब्बत के साथ रहे।

यह बात सिर्फ शांति की नहीं है, बल्कि इसका गहरा ताल्लुक हर किस्म की तरक्की से भी है। इंसान की जिंदगी में जरूरी है कि तरक्कियां हों और तरक्की के लिए जरूरी है कि शांति हो। इंसान की जिंदगी में शिक्षा, आर्थिक विकास, पर्यटन आदि सबकुछ के लिए शांति की जरूरत है। दुनिया में लगभग दो सौ देश हैं। इन देशों की तरक्की के लिए शांति की जरूरत है। शांति हर तरक्की के जड़ में होती है।

हम देखते हैं कि पेड़ों की दुनिया में हरे-भरे बाग हैं, जंगल हैं, खेत हैं। ये खेत और बाग धरती का सुंदरता बढ़ाते हैं। उनसे इंसान को हजारों किस्म के फायदे मिलते हैं। यही फायदे इंसानी जिंदगी में आ जाएंगे, अगर इंसान भी पेड़ों और प्रकृति का यह कल्चर अपनाए, वो कांटों के साथ फूल बनकर रहे।

इंसानी समाज में जब भी कोई टकराव होता है, उसका एक निश्चित कारण होता है। हर औरत और मर्द एक-दूसरे से अलग है, उनमें अंतर है। यही अंतर टकराव का सबब बनता है। पैदाईश के साथ ही हर औरत ‘मिस डिफरेंट’ है और हर मर्द ‘मिस्टर डिफरेंट’ होता है।

इंसानी जिंदगी में यह फर्क बिना वजह नहीं होता। इसका बहुत बड़ा फायदा है। अंतर इसलिए है कि ताकि लोग आपस में इंटरैक्शन करें और फायदा उठाएं। अगर लोगों के अंदर यह अंतर न हो तो यह सब खत्म हो जाएगा। बगैर अंतर आपसी इटरैक्शन कैसे संभव है। अंतर और विभेद नहीं रहेगा तो इंसान सीखने का कल्चर कैसे बचा पाएगा। इस कल्चर को ‘म्यूचुअल लर्निंग’ का कल्चर कह सकते हैं।

दुनिया में बड़ी-बड़ी तरक्कियां हुई हैं। ज्ञान के मैदान में इंसान ने जो तरक्कियां की हैं, वह सब इसीलिए हो सकी हैं कि लोग अलग-अलग सलाहियत को लेकर पैदा हुए, उनमें ‘म्यूचुअल लर्निंग’ का कल्चर चला, लोगों ने एक-दसूरे से सीखा।

एक दूसरे से सीखकर तरक्की करने का जो यह कल्चर है, उसका कोई विकल्प नहीं है। ये कल्चर या तो इसी तरह चलेगा या तो चलेगा ही नहीं। जाहिर है इतने बड़े फायदे की यह बहुत छोटी प्राइस है कि इंसान कांटों के दरम्यान फूल बनकर रहे।

(प्रख्यात मुस्लिम स्काॅलर मौलाना वहीदुद्दीन खां का यह लेख दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ था।)

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