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जनज्वार विशेष

'मैं कहता रहा नहीं काटी मैंने गाय, पर भीड़ मुझे मारती रही'

Janjwar Team
5 July 2017 11:27 AM GMT
मैं कहता रहा नहीं काटी मैंने गाय, पर भीड़ मुझे मारती रही
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मारपीट के साथ—साथ उस्मान के घर को आग के हवाले कर दिया। तो कुछ लोग उसकी गायों को लूटकर चलते बने....

उस्मान के गांव से लौटकर विषद कुमार की रिपोर्ट

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 270 किलोमीटर दूर है गिरिडीह जिले का देवरी थाना। जिसके तहत आता है बरवाबाद गांव। जो पिछले 28 जून की खबरों की सुर्खियों में इसलिए रहा कि एक भीड़ ने मुहम्मद उस्मान अंसारी की हत्या की कोशिश की, उसका घर जला डाला, उसके परिवार वालों को जला कर मारने का प्रयास किया, उसकी गायों को लूट लिया।

आज भी वहां पुलिस कैंप है, बावजूद गांव में सन्नाटा पसरा है। वैसे यह गांव हिंदू बहुल गांव हैं। 500 हिन्दू घरों एवं 15 घर मुसलमानों के बीच कहा जाय तो उस्मान ही उस गांव का अकेला मुसलमान है जिसके घर के बगल से सटा घर हिंदू का है। पड़ोसी बद्री मंडल जो इस घटना के बाद से ही गांव छोड़कर कहीं चला गया है। दोनों के घरों पर लिखा 786 तथा बना स्वास्तिक का निशान ही उनके धर्म को अलग करता है, वरना उनके अपनापन को देखकर कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं समझ पाता है कि दोनों अलग-अलग धर्म के हैं।

दोनों का घर मुख्य सड़क पर है। उस्मान अंसारी दूध का कारोबार करता था, उसके पास 14 गाएं थी, जो अब नहीं हैं। इस कारोबार में उसका बड़ा बेटा सलीम अंसारी मदद करता था। तीन बेटों में आलम एवं कलीम अपने ससुराल गिरीडीह व तिसरी में रहते हैं।

उस्मान अंसारी की एक जर्सी गाय जो कई दिनों से बीमार चल रही थी, कई पशु चिकित्सकों के इलाज के बाद भी 25 जून को गाय मर गई। अमूमन जैसा कि परंपरागत सामाजिक ताना-बाना है, गांव का एक दलित वर्ग मरी हुई गाय-बैलों को गांव से दूर कहीं ले जाकर फेंकता है और उसके चमड़े को निकालकर बेचता है। बदले में उसे कुछ पारिश्रमिक मिल जाता है

अतः उस्मान ने गांव के ही एक दलित को सूचना दी कि उसकी गाय मर गई है, उसे वह फेंक दे। उस दलित ने गाय फेंकने के बदले 2000 रुपए की मांग की। मोल-भाव के क्रम में उस्मान ने उसे 700 रुपए तक का आॅफर दिया, मगर वह 2000 रुपए के नीचे के सौदे पर राजी नहीं हुआ। अंततः उस्मान ने अपनी मरी हुई गाय को बेटे की मदद से अपने ही घर के सामने मैदान के पार एक बड़े नाले में फेंक दिया।

उल्लेखनीय है कि उस्मान अंसारी के घर के सामने वाला मैदान में एक मंगरा-हाट यानी हर मंगलवार के दिन बाजार लगता है। चूंकि 25 जून को रविवार था, 27 जून को मंगलवार के दिन जब उक्त मैदान में बाजार लगने की तैयारी होने लगी, तभी कुछ युवकों ने 60 वर्षीय उस्मान अंसारी को पकड़ लिया और कहने लगे तुमने गाय को काटकर फेंक दिया है।

उस्मान बार-बार कहता रहा कि वह मेरी गाय थी और बीमारी से मर गई थी। मगर युवकों ने हंगामा खड़ा कर दिया, भीड़ जमा हो गई। कुछ लोगों ने जाकर नाले में देखा तो गाय का सिर और दो पैर गायब थे। फिर क्या था भीड़ उस्मान पर पिल गई। लात—घूंसों से उसकी पिटाई शुरू हो गई। कुछ लोगों ने उसके घर में आग लगा दी तो कुछ लोगों ने उसकी बंधी गायों को खोल दिया, कुछ लोग उसकी गाय लूटकर लेकर चलते बने।

उस्मान की पत्नी हंगामा देख भागने लगी तो भीड़ ने उसकी भी पिटाई कर दी। भीड़ ने घर के भीतर मौजूद सलीम और उसकी पत्नी को बाहर से बंद कर दिया और आग लगा दी। लोग उस्मान को मरा हुआ समझ कर उसे छोड़ उसके घर की ओर मुड़े, इसी बीच किसी ने पुलिस को घटना की सूचना दी। पुलिस मौके पर पहुंची, भीड़ ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। पुलिस ने कई हवाई फायरिंग किये, तब जाकर भीड़ तितर-बितर हुई। पुलिस ने उस्मान और उसकी पत्नी को इलाज के लिए गिरिडीह भेजा। वहीं दरवाजा खोल सलीम व उसकी पत्नी को घर से बाहर निकाला। स्थिति पर नियंत्रण होते-होते तक उस्मान की दुनिया उजड़ गई। घटना के पांच दिन बाद भी क्षेत्र में सन्नाटा बुना हुआ है।

जब हम गिरिडीह, जमुआ, खड़गडीहा होते हुए उस्मान के गांव बरवाबाद पहुंचे तो पाया कि उस्मान का पड़ोसी बद्री मंडल के घर में पुलिस कैंप किये हुए है। घटनास्थल पर देवरी के प्रखंड विकास पदाधिकारी कुमार दिवेश द्विवेदी इंस्पेक्टर मनोज कुमार सहित पुलिस बल मौजूद है। अधिकारियों ने बताया कि उस्मान का इलाज आरएमसीएच रांची में चल रहा है और पत्नी आमना खातून का इलाज स्थानीय अस्पताल में चल रहा है। उसे पुलिस की सुरक्षा में रखा गया है। इंस्पेक्टर ने बताया कि मामले पर अब तक 13 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है।

जब हम मुआयना के क्रम में घर के पीछे की ओर गए तो हमने पाया कि दो गायें घर में भटक रही थीं, कभी जले हुए घर के भीतर तो कभी बाहर। शायद वे अपने मालिक की तलाश कर रही थीं और यह समझने का प्रयास कर रही थीं कि उनका आशियाना क्यों उजाड़ा गया।

जब हम देवरी थाना पहुंचे जो घटनास्थल से करीब 12 किमी दूर है, वहां हमें उस्मान की पत्नी से नहीं मिलने दिया गया। बहाने बनाये गये। कहा गया वह इलाज के लिए गयी है, जबकि थाने पर मौजूद उसी के गांव के कई लोगों ने बताया कि अभी-अभी उसकी मरहम पट्टी करके लाया गया है। हमारी समझ में यह नहीं आ सका कि आमना खातून से हमें क्यों नहीं मिलने दिया गया। कुछ तो गड़बड़-झाला है।

दूसरे दिन जब हम रांची के रिम्स में भर्ती उस्मान अंसारी से मिले तो उसने उपर्युक्त घटनाओं का जिक्र करते हुए बताया कि ‘मेरी गाय का सिर और पैर किसने काटे यह पता नहीं। मैं लोगों को यही बताने की कोशिश कर रहा था, मगर किसी ने मेरी बात नहीं सुनी और मुझ पर हमला कर दिया।’

उस्मान को बात करने में तकलीफ हो रही थी। अतः वह ठहर-ठहर कर बोल रहा था। पड़ोसी से संबंध के बारे में पूछे जाने पर उसने बताया कि ‘प्रायः संबंध अच्छे थे, लेकिन जैसा कि अमूमन होता है जब बर्तन एक जगह रहते हैं तो आपस में टकराते ही हैं। मगर उससे इस घटना को नहीं जोड़ा जा सकता।’ उसने बताया वह लगभग 10 साल से वहां रह रहा है उसके पास एक बीघा जमीन है और उसका दूध का ही मुख्य पेशा है।

वैसे उस्मान की सुरक्षा में छह जवान तैनात थे और उसे सुरक्षा के ख्याल से डेंगू वार्ड में रखा गया था। उसे स्लाइन चढ़ाया जा रहा था।

इस पूरे घटनाक्रम पर गौर करें तो यह साफ हो चला है कि उक्त घटना आपसी रंजिश का मामला नहीं है, बल्कि पूरे देश में जिस तरह से भीड़ को उकसाकर मुसलमानों के खिलाफ जो अभियान चलाया जा रहा है, यह भी उसी अभियान का हिस्सा है।

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