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जनज्वार विशेष

जीवन में इतना बड़ा धोखा पाकर सन्न थी मैं

Janjwar Team
13 Nov 2017 6:54 PM GMT
जीवन में इतना बड़ा धोखा पाकर सन्न थी मैं
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अमित के दिमाग में क्या चल रहा था, उन्होंने मुझे क्यों धोखा दिया, यह अब भी सोचने की कोशिश करती हूं तो समझ में नहीं आता। क्या ये अमित की जातीय कुंठा थी या एक शहरी और उच्च जाति की ब्राह्मण लड़की को अपने जाल में फांसने का फितूर कि उसने मेरी जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया...

हाउसवाइफ कॉलम में इस बार निशा

निशा नाम है मेरा। निशा मतलब रात्रि। इसी रात्रि की तरह बीते मेरे जिंदगी के कुछ साल, अमित अंधकार ही बनकर आया था मेरे जीवन में। मैं दिल्ली में पली—बढ़ी हूं। यही पर मेरी स्कूलिंग और कॉलेज की पढ़ाई पूरी हुई। 7 साल पहले अमित से लव मैरिज हुई थी मेरी।

कॉलेज की पढ़ाई के बाद शौक के तौर पर एक कॉल सेंटर में नौकरी करनी शुरू कर दी थी। पिता की गारमेंट की दुकान थी, तो बचपन से कभी यह नहीं जान पाई थी कि जिंदगी में किसी चीज का अभाव भी होता है। जब मैं जो फरमाइश करती पिता पूरी कर देते थे।

मां उन्हें जरूर टोकती थी कि बेटी को सिर पर चढ़ाकर रख दिया है। शादी के बाद अगर गरीब ससुराल मिला तो क्या करोगे, बेटी का शौक तब कैसे पूरे करोगे। तीन भाई—बहनों में इकलौती बहन थी मैं। सबसे छोटी थी घर में तो सबकी लाडली भी थी।

कॉल सेंटर में नौकरी के दौरान ही सोशल साइट्स पर मैं काफी एक्टिव रहने लगी थी। इसी दौरान फेसबुक पर अमित से दोस्ती हुई। दोस्ती धीरे—धीरे प्यार में बदल गई। इधर घरवाले मेरी शादी के लिए रिश्ते ढूंढ़ने लगे।

अभी तक हमारा प्यार सोशल साइट पर ही चल रहा था। मैं और अमित कभी मिले नहीं थे। अमित ने मुझे बताया था कि एमबीए करने के बाद वो बैंग्लौर में एक मल्टीनेशनल कंपनी में एचआर में नौकरी करता है। हमारी सोशल साइट पर मुलाकात के 14 महीने बाद मैं और अमित पहली बार मिले थे। अमित ने मुझे बताया कि वह अपनी कंपनी के किसी काम से दिल्ली आने वाला है तो मुझसे भी मिलेगा।

बहुत खुश थी मैं उस दिन, जब अमित से पहली मुलाकात हुई। कनॉट प्लेस में हम लोग मिले, जबकि मेरा आॅफिस नोएडा में था। मिलने पर अमित ने ही मुझसे शादी की इच्छा जताई तो लगा कि मेरे मुंह की बात छीन ली हो। मैं भी तो खुद की पसंद का हमसफर चाहती थी जिंदगी में, जो मुझे समझे, प्यार करे। और अब तक अमित को सोशल साइट के जरिए जितना जान पाई थी, जितना उसने अपने बारे में बताया था मुझे लगता था कि वही मेरा परफेक्ट लाइफ पार्टनर है।

इधर मैं किसी न किसी बहाने मुझे देखने आने वाले लड़कों को रिजेक्ट कर रही थी। मां पापा से बार—बार मेरी नौकरी छुड़वाने की बात करती थी, कहती थी इस लड़की को पर लग गए हैं, किसी दिन नाक कटवाएगी तुम्हारी। अमित अब मुझसे मिलने जब—तब दिल्ली आने लगे थे। मुझे शंका भी हुई थी कि एक आखिर एक इंसान इतनी जल्दी जल्दी बैंग्लोर से दिल्ली के चक्कर कैसे काट सकता है, पर कहते हैं न प्यार अंधा होता है तो दिमाग चला ही नहीं, लगा मुझसे मिलने का लालच उन्हें बार—बार दिल्ली खींच लाता है। इसी बीच एक बार मैंने अमित से जब कहा कि वो मेरे घर आकर मां—पापा से शादी की बात करे तो उनके चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं।

अमित मुझसे बार—बार कहते कि हम लोग कोर्ट में शादी कर लेंगे, जबकि मैं मां—पिता को मनाकर शादी करना चाहती थी, मगर वो मेरे मां—पापा से मिलने को तैयार नहीं थे। किसी तरह अमित मां—पापा से मिलने को राजी हुए। मेरे पिता ने हमेशा से मुझमें और भाइयों में कोई अंतर नहीं किया, मगर यहां मामला शादी का था। अमित से शादी की मेरी जिद अपनी जगह थी पर पापा होने वाले ससुराल को लेकर संतुष्ट हो लेना चाहते थे।

मेरे घरवालों ने जब कहा कि शादी से पहले हम तुम्हारे मां—पिता और परिवार से मिलना चाहते हैं तो अमित बगलें झांकने लगे। कहने लगे कि वो किसी भी कीमत पर इस शादी के लिए राजी नहीं होंगे, पर मैं निशा से शादी करना चाहता हूं, खुश रखूंगा इसे ताउम्र और भी तरह—तरह के बहाने किए।

पर मैं अमित के प्यार में इस तरह अंधी थी कि पापा ने शक जाहिर किया कि ये लड़का आखिर अपने परिजनों से क्यों नहीं मिलवाना चाहता है, तो मैं पापा के ही विरोध में खड़ी हो गई। पापा भी जिद पर अड़े थे, क्योंकि वे मेरे भविष्य को लेकर आश्वस्त होना चाहते थे। किसी तरह पापा से अपनी जिद मनवाकर दिल्ली में ही अमित के साथ मैं शादी के बंधन में बंध गई।

अब चूंकि शादी हो गई थी, तो कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद अमित मुझे अपने घर मेरठ लेकर गए। शादी से पहले अमित ने बताया था कि उनका घर मेरठ के मुख्य शहर में है, मगर हम पहुंचे एक गांव में। दो कमरों के छोटे से घर में पहुंची में, जबकि अमित के मुताबिक उनकी कोठी थी। ससुराल पहुंचकर मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई। अमित ने वास्तविकता के ऐसे धरातल पर पटक दिया था, जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। मां—पापा को क्या बताउं यह भी समझ में नहीं आ रहा था।

पर ये तो सिर्फ शुरुआत थी मेरे लिए, अभी तो असली सच सामने आना बाकी था। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं। अमित से कुछ भी पूछने पर वो बातों को टालकर चिल्लाते हुए मुझे चुप कराने की कोशिश करते। जब मैं कहती कि मुझसे झूठ बोलकर शादी क्यों की तो कहते मैं तुमसे किसी भी कीमत पर शादी करना चाहता था, इसलिए ऐसा किया।

अमित सोशल साइट पर अपना सरनेम शर्मा लगाते थे और उन्होंने मुझे बताया भी यही था कि वो ब्राह्मण हैं, मगर यहां पहुंचने पर पता चला कि वो लोहार जाति से ताल्लुक रखते हैं। अमित ने झूठ का जाल रचा था मेरे आसपास। अमित ने न तो एमबीए की डिग्री ली थी, न ही वो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में एचआर में नौकरी करते थे, बंग्लौर तो शायद उन्होंने कभी देखा तक नहीं था। टैंट का छोटा—मोटा काम था अमित का, जिससे पूरे परिवार का गुजारा होता था।

अपने जीवन में इतना बड़ा धोखा पाकर मैं सन्न थी। मेरे पेट में एक नन्हीं जान शादी से पहले से पल रही थी, जिसका अमित नाजायज फायदा उठाते। कहते मुझसे शादी नहीं करती तो किसके मत्थे मढ़ती अपना पाप, चुपचाप पड़ी रहो यहां। असली रंग दिखाना शुरू कर दिया था अमित ने। मैं शॉक्ड थी कि कैसे लड़के को चुना है मैंने अपने लिए। सेक्स भी जबर्दस्ती करते थे मेरे साथ, नोचना—काटना तो जैसे एक आम बात थी, जिसके निशानों से भरा होता मेरा शरीर।

मुझे उसके बाद अमित ने दिल्ली भी नहीं आने दिया, मेरे घरवालों का फोन आता तो किसी न किसी बहाने टाल जाते या फिर मुश्किल से एकाध मिनट बात करने देते। जब एक बार पापा ने कहा कि वो मेरठ आए हुए हैं मुझसे मिलना चाहते हैं और उनका घर भी देखना चाहते हैं तो उन्होंने कहा कि वो मुझे लेकर घूमने निकले हैं। मेरा फोन भी अमित अपने पास रखने लगे, जिससे किसी को मैं सच न बता पाउं। मैं सन्न थी, मां—पापा को भी क्या सच बताती कि समाज से लड़कर मैंने अपने लिए चुना है, उसी ने जीवन का सबसे बड़ा धोखा दिया है।

शादी के 7 महीने बाद अमित के गांव में ही मेरा बेटा पैदा हो गया। बेटा पैदा होने के बाद मैं मां—पापा से पहली बार ढंग से बात कर पाई। खूब रोई थी उस दिन। अभी भी मां—पापा हकीकत से अंजान थे, उन्हें लगता था कि उनकी बेटी को अपने सपनों का संसार मिल गया है, और वो वहां राज कर रही है। अमित मां—पापा के संपर्क में जरूर रहते थे, जिससे वो उन्हें अहसास दिला सकें कि मैं उनके साथ बहुत खुश हूं।

अमित के दिमाग में क्या चल रहा था, उन्होंने मुझे क्यों धोखा दिया, यह अब भी सोचने की कोशिश करती हूं तो समझ में नहीं आता। बार—बार सोचती थी क्या ये अमित की जातीय कुंठा थी या एक शहरी और उच्च जाति की ब्राह्मण लड़की को अपने जाल में फांसने का फितूर कि उसने मेरी जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया। घर में अमित की भाभी जोकि आंगनबाड़ी में काम करती थी, उन्होंने जरूर मुझे हमेशा सहयोग दिया। उनसे मैं अपने दिल की बात कह पाती थी। मगर अमित उनसे भी मुझे ज्यादा बात नहीं करने देते थे।

ससुराल में अमित के भैया—भाभी के अलावा उनके दो बच्चे, बूढ़ी दादी, मां और पिता थे। दो छोटी बहनों की शादी पहले ही की जा चुकी थी। उनकी भाभी भी बहुत संघर्ष करने के बाद आंगनबाड़ी की नौकरी के लिए घरवालों को तैयार कर पाई थी। अब मैंने भी इसी को अपनी किस्मत मान लिया था। वहां के माहौल में ढलने की कोशिश करने लगी थी। मां—पिता से भी आखिर कौन सी शिकायत करती।

जिस सोशल साइट्स के कारण मेरी जिंदगी जहन्नुम बनी थी, उसे शादी के बाद हाथ तक नहीं लगाया था। अमित ने सारे पासवर्ड ले लिये थे मुझसे, वही मेरे नाम पर सोशल साइट्स पर मौजूद रहते, मेरे दोस्तों से संपर्क साधे रहते। अमित से घिन आने लगी थी मुझे, नहीं चाहती थी कि वो मेरे आसपास भी फटके।

अब मेरा बेटा ढाई साल का हो गया था। मुझे खुद से ज्यादा उसकी चिंता होने लगी। अब तक जिंदगी में इतना कुछ देख चुकी थी कि अब बदनामी का डर भी धीरे—धीरे दिमाग से जाने लगा। जेठानी की मदद से मैं उस घर से निकलकर वापस दिल्ली आ गई। यहां अपनी एक करीबी दोस्त जो कि किराए पर रहती थी और कॉल सेंटर में मेरे साथ काम करती थी उसके पास गई। क्योंकि मां—बाप को पूरे सच को बताने के लिए मैं खुद को तैयार कर रही थी। उसे पूरा सच बताया।

खूब हाथ—पैर मारने के बाद मुझे फिर से रोजगार मिल गया। नौकरी लगने के एक महीने के बाद मां—पापा के पास जाकर उन्हें अपनी जिंदगी की पूरी कहानी सुनाई तो उनका कलेजा ही मुंह को आ गया कि अमित ने कितना बड़ा धोखा दिया। किन हालातों में ये 3 साल गुजारकर लौटी हूं मैं। मां तो मुझी पर बरस पड़ीं। भाइयों का गुस्सा भी सातवें आसमान पर था, पर सभी मुझे दोष दे रहे थे।

अमित मुझे ढूंढ़ते हुए फिर मेरे मां—पिता के पास पहुंचे और इमोशनली ब्लैकमेल कर मां—बाप को राजी करने की कोशिश की कि मैं उनके साथ वापस लौट जाउं। धोखे से मैं इतनी चोटिल हो गई थी कि मैंने साफ—साफ कहा कि मैं तलाक चाहती हूं और अपने बेटे को उस जहन्नुम और झूठ—फरेब भरी दुनिया में नहीं पलने—बढ़ने दूंगी।

मां ने जरूर समाज का डर दिखा मुझे अमित के साथ वापस भेजने की कोशिश की, मगर जब मैंने उन्हें जाति से लेकर अमित के तमाम झूठ गिनाए तो वो भी पिघल गयीं, दूसरा वो मेरी जिद से भी वाकिफ थीं। मैं नहीं लौटी दुबारा अमित की झूठ की दुनिया में। अमित ने तो नहीं, मैंने दोबारा पढ़ाई कर जरूर एमबीए की डिग्री ली और आज मैं एक कंपनी में नौकरी करती हूं।

बेटा अब छह साल का हो गया है, स्कूल जाता है। कई बार पिता के बारे में पूछता है, तो कहती हूं नहीं हैं तेरे पिता। मगर चाहती हूं कि थोड़ा बड़ा हो जाए तो उसे अपनी जिंदगी का सच बताउं और उसके पिता का झूठ भी। जिससे कि वो एक अच्छा इंसान बने, कम से कम औरतों की इज्जत करना तो जाने ही। हां, शादी के नाम पर मुझे जरूर नफरत हो गई है अब। (फोटो प्रतीकात्मक)

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