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विमर्श

तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम मर्दों में छाई मुर्दानगी

Janjwar Team
23 Aug 2017 9:35 AM GMT
तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम मर्दों में छाई मुर्दानगी
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सामंती मिजाज वाले मुस्लिम मर्द तो हैं ही, लेकिन आजादी की मांग को सर्वाधिक बुलंद आवाज में उठाने वाले वामपंथियों और उनके समर्थकों का बहुतायत तीन तलाक और मुस्लिम महिलाओं की आजादी के मसले पर भयाक्रांत है...

राग दरबारी

अजीब देश हैं हम,

जो हिंदू मर्द सरकारी आंकड़ों में भी अपनी औरतों को सबसे ज्यादा प्रताड़ित करते हैं, वे तीन तलाक पर ढोल बजाकर खुश हो रहे हैं। वे अपने वाट्सअप, फेसबुक और ट्वीटर के माध्यम से आह्ललादित भाव से सबको बता रहे हैं, मानो यह मुस्लिम महिलाओं की जीत नहीं, हिंदू मर्दों की मुस्लिम मर्दों पर जीत हुई हो।

मुस्लिम मर्द भी इसको इसी रूप में ले रहे हैं। आप दर्जनों मुस्लिम मर्दों की फेसबुक वाल खंगाल व देखकर समझ सकते हैं कि डिफेंड मोड में पड़े मुस्लिम मर्द लगातार हिंदू मर्दों से पूछ रहे हैं कि तुमने अपने धर्म की महिलाओं के सभी हक मुकर्रर कर दिए, जो तीन तलाक पर आए अदालती फैसले पर तुर्रम बने फिर रहे हो।

पर इस पूरी बहस में कहीं एक बार भी मुस्लिम मर्दों की कट्टरपंथी या प्रगतिशील जमातें यह नहीं स्वीकार कर पा रही हैं कि यह फैसला सही है और वे तलाक पर आई इस नई व्यवस्था का तहेदिल से स्वागत करते हैं।

वह अपने घरों और पड़ोसियों के साथ हुई त्वरित तीन तलाक की ऐसी वारदातों का एक किस्सा तक नहीं शेयर कर रहे। वे मुस्लिम औरतों के उत्पीड़न के अनगितनत अनुभवों और किस्सों को समाज में बताने से ऐसे हेठी दिखा और छुपा रहे हैं, जैसे मुकदमों में मुलजिम वे खुद हों, अदालत ने उनको ही दोषी करार दिया हो।

संभव है इनसे अलग भी मुस्लिम नौजवानों की एक ऐसी जमात हो जो तीन तलाक पर आए अदालती फैसले से खुश हो, मगर वह बहुत मामूली है, जिसके मत का कोई सामूहिक महत्व नहीं बन पा रहा है।

वहीं हिंदू—मुस्लिम मर्दों के बीच तीन तलाक को लेकर औरतों के हक में आए फैसले पर बहस यों हो रही है मानो इस हक को अपने दम पर औरतों ने नहीं जीता है, गोया एक मर्द समुदाय ने दूसरे मर्द समुदाय से छीनकर औरतों के हाथ में रख दिया हो। कुछ उसी तरह जैसे औरतों को दूसरे सामान लाकर मर्द सदियों से देते आ रहे हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि तीन तलाक पर आए अदालती फैसले के बाद मुस्लिम मर्दों में मुर्दानगी पसरी है। सोशल मीडिया पर प्रगतिशील छवि वाले मुस्लिम भी चुप्पी साधे हुए हैं। इस चुप्पी में तथाकथित वामपंथी उनके सहोदर बने बैठे हैं। मुस्लिम कट्टरपंथी मर्द जमातों के साथ सहोदरी निभा रहे वामपंथी साफ शब्दों में नहीं कह पा रहे है कि यह औरतों के हक में आया एक न्यायपूर्ण फैसला है।

तथाकथित वामपंथी और मुस्लिम कट्टरपंथी तीन तलाक के संदर्भ में छपी सकारात्मक खबरों को लाइक और कमेंट करने से भी हिचक रहे हैं।

अलबत्ता ज्यादातर मुस्लिम मर्द यह सवाल करने में लगे हैं कि क्या हिंदुओं में तीन तलाक या स्त्री उत्पीड़न कम होता है? यानी औरतों के हक में आए 22 अगस्त के इस फैसले को मुस्लिम मर्द सेलिब्रेट करने की बजाए इस दुख में नहाए घूम रहे हैं कि क्या अन्य धर्मों में औरतों के साथ होने वाली गैरबराबरी खत्म हो गयी है।

यह तर्क कुछ वैसा ही है जैसे किसी अपराधी का पिता पुलिस के आने पर यह पूछे कि क्या दुनिया में सभी अपराधियों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जो मेरे बेटे की हो रही है। या कोई बलात्कारी यह कहे कि क्या दुनिया से बलात्कार का नामोनिशन मिट गया है जो मुझे इस अपराध में सजा मुकर्रर हो रही है। अगर बाकि बचे हैं तो मुझे ही सजायाफ्ता क्यों बनाया जा रहा है, यह तो शोषण है!!!

स्पष्ट है कि तीन तलाक पर आए अदालती फैसले से मुस्लिम मर्दों का बहुतायत आहत है और वह सामाजिक तौर पर इसे स्वीकारने को बिल्कुल भी तैयार नहीं है। जाहिर है सरकार और आधुनिक समाज के लिए यह एक नई चुनौती है।

मीडिया, सोशल मीडिया और राजनीति में अपने लिए न्याय, बराबरी और सम्मान की लगातार मांग करने वाले ज्यादातर मुस्लिम चुप्पी साध गए हैं। उनकी चुप्पी देख ऐसा लग रहा है मानो तीन तलाक ही मुस्लिम धर्म के महिलाओं की मुक्ति का रास्ता था, जिसे मोदी सरकार ने छीन लिया है। इसे मुस्लिम मर्दों का मांद में घुसना भी कह सकते हैं, जहां से उनकी कोई मिमियाहट तक सुनाई नहीं दे रही है।

ऐसे में इतना तो स्पष्ट है कि आधुनिक समाज का जो तबका और समुदाय अपनी आधी आबादी को मिले अधिकार पर मातम मनाएगा, उसके हक में आए फैसले को सांप्रदायिक करार देगा, वह किसी भी तरह अपने लिए न्याय नहीं हासिल कर पाएगा, चाहे उसके लिए वह सियासत में जो कीमत अदा करे।

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