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राजनीति

गुजरात चुनाव में भी भाजपा ने नहीं दिया किसी मुस्लिम को टिकट

Janjwar Team
29 Nov 2017 9:48 AM GMT
गुजरात चुनाव में भी भाजपा ने नहीं दिया किसी मुस्लिम को टिकट
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भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मुताबिक हर 5 में से 1 मुस्लिम उनकी पार्टी का वोटर है, पर 182 विधानसभा में से एक भी भाजपा का प्रत्याशी नहीं है...

अहमदाबाद, जनज्वार। गुजरात विधानसभा चुनाव में 20 सीटें मुस्लिम बहुल हैं, मगर इनमें से एक भी सीट पर भाजपा ने मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया है। वहीं कांग्रेस ने भी सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेलते हुए जाति पर ही जोर बरकरार रखा है और मात्र 6 मुस्लिमों को अपना प्रत्याशी बनाया है। इससे पहले भाजपा ने यूपी 2017 विधानसभा चुनावों में भी मुस्लिमों को प्रत्याशी नहीं बनाया था।

गुजरात चुनाव में मुकाबले की इन दोनों पार्टियों में मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा करने को लेकर यह राजनीतिक बेईमानी और सांप्रदायिक तुष्टीकरण तब है जबकि गुजरात की आबादी में मुस्लिमों की आबादी करीब 10 फीसदी है। वह 20 सीटों पर प्रत्याशी को जीताने की हालत में होते हैं। इनमें से चार सीटें सिर्फ अहमदाबाद जिले की हैं।

गुजरात में कुल 182 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 25 पर तो मुस्लिम निर्णायक भूमिका में होते हैं कि सीट किस पार्टी के खाते में जाएगी। पिछले चुनावों में जहां इन 25 सीटों में से 17 पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी, वहीं कांग्रेस के खाते में 8 सीटें गई थीं।
इसीलिए बीजेपी ने किसी भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया है।

राज्य के पिछले 37 सालों के इतिहास में पहली बार 1980 में सबसे अधिक 12 मुसलमान विधानसभा में चुने गए थे। इस बार जातीय कार्ड खेल रही भाजपा—कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए भी मुस्लिम इसलिए मुद्दा नहीं हैं क्योंकि पिछले विधानसभा 2012 में सिर्फ 2 मुस्लिम विधानसभा चुनाव जीत पाए थे। 2012 में भी कांग्रेस ने सिर्फ 7 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया था।

उसी अनुभव को कांग्रेस ने और जोर देकर इस बार के विधानसभा में भी लागू किया है। साफ्ट हिंदूवाद की पारंपरिक राह पर चलने वाली कांग्रेस के होने वाले अध्यक्ष राहुल गांधी गुजरात के चुनावी माहौल के बीच करीब आधा दर्जन मंदिरों को दर्शन कर चुके हैं, लेकिन उन्होंने मुस्लिम समुदाय को लेकर ऐसी कोई श्रद्धा नहीं दिखाई है। जाहिर है कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक परंपरा में गुजरात चुनावों के दबाव में बदलाव कर दिया है।

भाजपा और कांग्रेस के लिए वर्ष 1995 के विधानसभा चुनावों के बाद से ही मुस्लिम एजेंडे में शामिल नहीं रहे हैं। उसके बाद से उनका इस्तेमाल सिर्फ डराने के लिए होता रहा है। आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 10 फीसदी आबादी वाले मुस्लिम प्रत्याशियों को औसत सिर्फ 2.37 फीसदी वोट मिले, जबकि हिंदू प्रत्याशियों को इनके मुकाबले 6 गुना अधिक वोट मिले। इन आंकड़ों से साफ है कि मुस्लिम भी मुस्लिम प्रत्याशियों को पूरे तौर पर वोट नहीं देते।

यह हाल तब है जब खुद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मंचों से कहते हैं कि हर पांच में से एक मुस्लिम भाजपा का वोटर है। 2007 के चुनाव से पहले तक मुस्लिम सीटों पर कांग्रेस का खासा दखल था। ज्यादातर मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों से कांग्रेस जीत दर्ज करती थी, मगर 2012 में भाजपा को मुस्लिम सीटों पर मिली बंपर जीत के बाद कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली मुस्लिम सीटें भाजपा का वोट बैंक माना जाने लगा और कांग्रेस भी भाजपा की राह पर चलने को मजबूर हुई।

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