Begin typing your search above and press return to search.
सिक्योरिटी

पेंशन के लिए 2 साल से विभाग के चक्कर काट रही अपाहिज लड़की

Janjwar Team
27 Oct 2017 2:13 PM GMT
पेंशन के लिए 2 साल से विभाग के चक्कर काट रही अपाहिज लड़की
x

देश के सर्वाधिक भ्रष्ट विभागों में शुमार रेलवे में अगर कोई भी काम कराना है तो बिना दक्षिणा काम का होना असंभव है। पेंशन जैसे वाजिब और त्वरित कार्रवाई लायक प्रकरणों को भी सालों तक केवल इसलिए लटकाकर रखा जाता है, क्योंकि लाभार्थी के पास कर्मचारियों की जेब गर्म करने के लिए पैसे नहीं हैं...

जनज्वार, देहरादून। दलाल केवल दलाल होता है। उसकी कोई जात, कोई मजहब नहीं होता। वो लाखों करोड़ों की जमीन के सौदे में भी मलाई खाएगा तो एक अदने से विधवा पेंशन तक में भी दलाली खाने से नहीं चूकेगा। घूसखोर हर विभाग में पैठे हुए हैं।

भारतीय रेलवे तो घूसखोरों का अड्डा बना हुआ है। देश के सर्वाधिक भ्रष्ट विभागों में शुमार रेलवे में अगर कोई भी काम कराना है तो बिना दक्षिणा उस काम का पूरा होना लगभग असंभव ही है। यहां तक कि पेंशन जैसे वाजिब और त्वरित कार्रवाई लायक प्रकरणों को भी सालों तक केवल इसलिए लटकाकर रखा जाता है, क्योंकि लाभार्थी के पास कर्मचारियों की जेब गर्म करने के लिए पैसे नहीं हैं।

भ्रष्टाचार यहां इस कदर पैठा हुआ है कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से लेकर उच्चाधिकारी तक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है।

मुरादाबाद स्थित मंडल रेलवे प्रबंधक (डीआरएम) कार्यालय में प्रवेश करते ही कर्मचारियों-अधिकारियों का बेहद गैर जिम्मेदाराना और संवेदनहीन व्यवहार देखकर लगता है कि अभी रेलवे विभाग में कई सुधारों की जरूरत है, जिसमें कर्मचारियों को अन्य कार्य सिखाने से पहले आम आदमी से इज्जत से, वृद्धों एवं विकलांगों से संवेदनशीलता के साथ पेश आने की समझ तो मुख्य रूप सिखाई ही जानी चाहिए।

रेलवे के इस भ्रष्ट सिस्टम से जूझ रही है देहरादून में रहने वाली एक दिव्यांग युवती गीता। दिव्यांग गीता बडोनी के पिता रेलवे में कार्यरत थे। उनकी मौत के बाद गीता की मां को पारिवारिक पेंशन मिलने लगी थी। 2015 में मां की ब्रेन हैमरेज के कारण स्वर्गवास हो गया।

रेलवे नियमों के मुताबिक रेलवे कर्मचारी की बेटी यदि अविवाहित है तो पारिवारिक पेंशन उस पुत्री को हस्तांतरित होती है, जिसके लिए बाकायदा आदेश हैं। दिसंबर 2015 में पेंशन हस्तांतरण के लिए डीआरएम कार्यालय में आवेदन पत्र देने के बाद आज तक दिव्यांग गीता की पेंशन नहीं लग पाई।

हाथों में कागजों का पुलिंदा थामे गीता विभागों के चक्कर काट—काटकर रुआंसी हो चुकी है। कहती है, पेंशन के लिए आवेदन जमा करने के बाद जब भी उसका भाई कार्यालय में पेंशन के बारे में पूछने गया तो अधिकारी कभी बहन की फोटो के बहाने तो कभी किसी कागज के अधूरे रह जाने के कारण पेंशन मामले को टरकाते रहे, जबकि हमारे दस्तावेज पूरे थे।

जून 2017 के अंत में इस संबंध में जानकारी पाने के लिए संबंधित विभाग में फोन करने पर जानकारी मिली कि चूंकि गीता की जन्मतिथि का प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं है, इस वजह से ही प्रकरण रुका हुआ है। जबकि पहले का इस कागज के न होने की बात नहीं कही गई और जन्मतिथि का प्रमाण दस्तावेजों के साथ ही दिया जा चुका था।

गौरतलब है कि गीता पेंशन की बाबत जब भी पहले विभागीय कार्यालय गई, किसी ने भी जन्मतिथि का प्रमाणपत्र उपलब्ध कराने की बाबत नहीं कहा। बल्कि कहा गया कि अब शीघ्र ही पेंशन लगने वाली है।

गीता आगे बताती है, हम जब जन्मतिथि के प्रमाण हेतु हाईस्कूल की अंकतालिका जमा करवाने पहुंचे, तब पता चला कि अब तक तो फाइल एक इंच भी आगे नहीं सरकी है। पूछने पर बताया गया कि चूंकि विकलांगता के प्रमाण पत्र भी संलग्न हैं, इसी कारण विलंब हो रहा है, क्योंकि इसके लिए सीएमओ द्वारा जांच की जाएगी।

आश्चर्यजनक है कि विभाग तर्क देता है कि विकलांग प्रमाणपत्र लगाने से कोई पात्र अपात्र हो गया। क्या अविवाहित होने के साथ ही विकलांग होने से पेंशन का अधिकार छिन जाता है। इसके बाद बताया गया कि स्थानीय पार्षद एवं रेलवे के किसी अन्य कर्मचारी से भी लिखित में देना होगा कि प्रार्थिनी अविवाहित है। यह वाकई एक जरूरी दस्तावेज था, जिसके बारे में शुरुआत में ही बता दिया जाना चाहिए था, लेकिन रेलवे के नकारा अधिकारियों ने बाद में बताया, ताकि इसकी आड़ में शोषण किया जा सके।

गीता विभाग के चक्कर लगा—लगाकर परेशान और हताश हो चुकी है। बार-बार देहरादून से मुरादाबाद आने-जाने में उसे किन-किन तकलीफों का सामना करना पड़ता होगा, यह कोई भी संवेदनशील व्यक्ति आसानी से समझ सकता है, परंतु जहां घूस ही भगवान हो वहां संवेदनशीलता की उम्मीद कैसे की जा सकती है।

गीता बडोनी कहती है वह अपने भाइयों के साथ रहती है और उसकी आय का कोई स्रोत नहीं है। मां के गुजर जाने के बाद वह खुद को बेहद अकेला महसूस करती है और पेंशन प्रकरण ने तो उसे तनाव में डाल दिया है। रूआंसी होकर गीता कहती है कि मैं शरीर से विकलांग हूं, उस पर से यह मानसिक तनाव। अगर मुझे इस तनाव के चलते कुछ हो जाता है तो क्या इसकी जवाबदेही रेलवे विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों की होगी।

यह तो एक गीता का प्रकरण है, ऐसे न जाने कितने ही प्रकरण होंगे, जो विभाग में धूल फांके रहे होंगे इसलिए नहीं कि वर्कलोड ज्यादा है, बल्कि इसलिए कि इन घूसखोर दलालों को अपनी गर्म जेब करने के अलावा कुछ नहीं दिखता।

Janjwar Team

Janjwar Team

    Next Story

    विविध