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शिक्षा

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में दलितों की ​पीएचडी पर लगा ग्रहण

Janjwar Team
3 Sep 2017 6:28 PM GMT
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में दलितों की ​पीएचडी पर लगा ग्रहण
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अन्य विश्वविद्यालयों से अलग नियम बनाकर हरियाणा का कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय प्रबंधन पीएचडी करने को उत्सुक दलित, आदिवासी और दिव्यांग छात्रों को हताश कर रहा है...

कुरुक्षेत्र से राजेश कापड़ो की रिपोर्ट

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने दलित छात्रों को उच्च शिक्षा से वंचित करने के लिए एक नया हथकंडा अपनाया है। केयू के इस नए मापदंड के अनुसार वे दलित छात्र पीएचडी नहीं कर सकेंगें, जिनके एमए या एमफिल की परीक्षा में 52.25 अंक नही हैं।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने यह नियम 2016-17 में बनाया था। यूजीसी के अधीन देशभर के सभी विश्वविद्यालयों व संबद्ध महाविद्यालयों में एससी/एसटी तथा अशक्त श्रेणियों के छात्रों को 5 प्रतिशत अंकों की छूट दी जाती है। इन श्रेणियों के छात्रों को यह लाभ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के अनुसार प्रदान किया जाता है।

यूजीसी मापदंडों के अनुसार सामान्य श्रेणी के छात्रों के लिए न्यूनतम 55 प्रतिशत तथा एससी/एसटी और अशक्त श्रेणी के लिए 5 प्रतिशत की छूट के बाद न्यूनतम 50 प्रतिशत अंक अनिवार्य है। हिमाचल विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वद्यिालय चंडीगढ़, दिल्ली विश्वविद्यालय सहित सभी अन्य विश्वविद्यालय भी यूजीसी के उपरोक्त मापदंडों अनुसार पीएचडी करवाते हैं।

यूजीसी ने एमफिल/पीएचडी की उपाधि प्रदान करने हेतू न्यूनतम मापदंड और प्रक्रिया विनियम 2016 द्वारा सभी विश्वविद्यालयों को दिशा-निर्देश दिए गए हैं कि इन मापदंडों के अनुसार ही छात्रों को पीएचडी करवाए तथा इन्हीं मापदंडों के अनुसार ही एससी/एसटी और अशक्त श्रेणियों के छात्रों को छूट प्रदान करें।

लेकिन कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का आध्यादेश Minimum Standards and Procedures for Award of Ph.D Degrees Regulations 2016 केवल यूजीसी के ही उपरोक्त विनियम की धज्जियां ही नहीं उड़ाता है, बल्कि भारतीय संविधान में दलितों और अशक्त व्यक्तियों को प्रदत विशेष अधिकारों का भी अपमान करता है।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय Minimum Standards and Procedures for Award of Ph.D Degrees Regulations 2016 के अनुसार पीएचडी के लिए न्यूनतम मापदंड यूजीसी की तर्ज पर 55 प्रतिशत और 50 प्रतिशत नहीं होगें, बल्कि केयू के नये आध्यादेश के उपबंध 2.1 और 2.1.1 के अनुसार 55 प्रतिशत और 52.25 प्रतिशत होगें। यह यूजीसी के विनियमों का सरासर उल्लंघन है।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने यह दलित विरोधी आध्यादेश हरियाणा सरकार के पत्र क्रमांक 22/129/2013-1GSIII, Dated 16.07.2014 के आदेश को लागू करने के लिए बनाया था। इस पत्र में हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की एक सिविल याचिका नं0 7084/2011 के हवाले से कहा था कि आरक्षित वर्गों को दी जाने वाली 5 प्रतिशत छूट की गणना पहले की सरकारों ने गलत ढंग से की थी। इस सिविल याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह गणना इस प्रकार की थी:

100 अंकों पर मिलने वाली छूट = 5 अंक
1 अंक पर मिलने वाली छूट = 5 ÷ 100
50 अंक पर मिलने वाली छूट = 5 ÷ 100×50 = 2.5 अंक

सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त फैसले के आधार पर 1964 के हरियाणा सरकार के अपने ही आदेश को पलटने के लिए हरियाणा सरकार ने यह आदेश पारित किया है। 1964 के सरकारी आदेश के अनुसार अनुसूचित जाति / जनजाति व अन्य अशक्त वर्गों को 5 प्रतिशत अंकों की छूट प्रदान की थी। इन वर्गों को यह छूट केवल अंकों के मामले में ही नहीं दी जाती बल्कि आयु सीमा में भी यह छूट दी जाती है।

(राजेश कापड़ो कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में एलएलएम के छात्र हैं।)

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