सड़क पर स्वच्छता अभियान के मेंटर हमारे प्रधानमंत्री के दिमाग में अगर कूड़ा भरे लोगों को ट्वीटर पर पसंद करते हैं तो इसमें हर्ज ही क्या है, किसी—किसी को दिमाग का कूड़ा पसंद हो सकता है, लेकिन सड़क का नहीं...
राग दरबारी
महिला पत्रकार लंकेश की हत्या के बाद से लगातार हर कोई उस निखिल दधीच की चर्चा किए जा रहा है जिसने अपने ट्वीटर पर मारी गयी पत्रकार को कुतिया और उसकी हत्या पर शोर मचाने वालों को पिल्ला कहा है।
पर यह भी बात बड़ी नहीं है, शोर इसलिए नहीं हो रहा कि उसने कुतिया क्यों कहा! बड़ी बात यह है कि कहने वाले को हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ट्वीटर पर फॉलो करते हैं और उसने इस बात को अपनी प्रोफाइल के परिचय में चमका रखा है।
पीएम द्वारा एक गंधेले व्यक्तित्व वाले इंसान को फॉलो करने को लेकर तरह—तरह के सवाल दागे जा रहे हैं। बहुतेरे व्यथित हैं कि ऐसा क्या है उस दधीच नाम के उस चमन चू में जो मोदी जैसा महान व्यक्त्वि उसको फॉलो करता है। जिस मोदी को करोड़ो फॉलो करते हैं, वह उस दधीच में क्या पाते हैं?
पत्रकार की हत्या के बाद से यह सवाल भारतीय लोकतंत्र में इतना मौजू बन गया है कि पिछले दो दिनों में दो ही नाम सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा सर्च हुए हैं। एक तो पत्रकार गौरी लंकेश का, जिनकी हत्या कर दी गयी और दूसरा इस चमन चू का जिसने मारी गयी पत्रकार और उसके प्रतिरोध में उठने वाले स्वरों को गालियों से नवाजा।
फिर भी इस सवाल का जवाब किसी को नहीं मिल पाया कि देश का प्रधानमंत्री एक लंपट और वैचारिक वहशी को क्यों फॉलो करता है? क्यों वह अपने आसपास ऐसे लोगों को बनाके रखता है जो वैचारिक मतभेदों को विचार से नहीं, हिंसा और नफरत से निपटाने की पैरोकारी करते हैं।
पर असल सवाल पसंद का है, जिस पर देशभर में बहस छिड़ी हुई है कि मोदी एक ऐसे नीच के फॉलोवर कैसे हो सकते हैं, जो हत्या पर मातम करने की बजाय मजाक बनाता है और हत्या पर खुशी जाहिर करता है।
ऐसे में इस सवाल का सिर्फ एक ही जवाब हो सकता है कि जिसको जो पसंद होता है वह वही करता है। भला यह क्या सवाल हुआ कि पीएम को वह गलीज आदमी क्यों पसंद है? कल को आप ये पूछ बैठें कि मोदी जी को प्रियंका चोपड़ा क्यों पसंद है, दीपिका क्यों नहीं, तो इसका क्या जवाब देंगे प्रधानमंत्री।
अरे भाई पसंद है तो है, इसमें इतना दिमाग क्यों लगाना। आपको भिंडी की जगह करैला क्यों पसंद है, इसका क्या जवाब हो सकता है। आप काले कुत्ते की जगह सफेद क्यों पालते हैं, इसका क्या जवाब होगा। यही न कि पसंद है। या इसका आप वैज्ञानिक कारण बताएंगे कि कुत्ते का सफेद रंग देख आपकी हड्डियों में विटामिन डी का वास होता है।
ठीक उसी तरह, प्रधानमंत्री जी को अगर वह गलीज और नीच आदमी पसंद है, जो एक महिला की मृत्यु पर सीना ठोंक के उसे गालियों से नवाज सकता है तो उसमें कौन सी मुद्दे की बात हो गई। भारतीय लोकतंत्र में सबको अपनी पसंद बनाने का अधिकार है। राइट टू प्राइवेसी एक्ट आने के बाद से तो इस पर कोई बहस रह भी नहीं गयी है।
खैर! आखिर में मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि पसंद बहुत व्यक्तिगत मसला होता है। इसलिए किसी की पसंद को लेकर सवाल करने की बजाय उस व्यक्ति की पसंद देख, खुद से सवाल पूछ अपनी पसंद बदल लेनी चाहिए।
आप भी आजाद हैं मोदी जी की पसंद देख अपनी पसंद बदलने को, लेकिन आप मोदी जी की पसंद पर सवाल खड़ा कर आप 'राइट टू प्राइवेसी एक्ट' का उल्लंघन न करें।