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आंदोलन

कैजुअल कर्मचारियों को निकालने में लगा है आकाशवाणी

Janjwar Team
21 July 2017 9:18 AM GMT
कैजुअल कर्मचारियों को निकालने में लगा है आकाशवाणी
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जिन्होंने अथक मेहनत से आकाशवाणी का नाम चमकाया, उन्हीं कैज़ुअल उद्घोषकों और प्रस्तोताओं पर आकाशवाणी महानिदेशालय ने चाबुक चलाया

समीर गोस्वामी

नई दिल्ली। पिछले कई दशकों से आकाशवाणी में अनुबंध आधार पर कैज़ुअल कर्मी काम कर रहे हैं। आकाशवाणी की अनियमितता और भेदभाव की नीति ने इन्हें आंदोलन में उतरने पर मजबूर कर दिया है।

अपनी नियमितीकरण की मांग के लिये ये कर्मी तीन बार जंतर—मंतर पर भूख हड़ताल पर बैठ चुके हैं, जहां से सरकार के मंत्रियों ने इन्हें नियमितीकरण का आश्वासन देकर हड़ताल को समाप्त करवाया।

तत्कालीन प्रसारण मंत्री एम वेंकैया नायडू ने इन्हें नियमित करने का आश्वासन दिया था और प्रसार भारती के अधिकारियों को इस बात का मौखिक आदेश भी दिया था कि इन्हें तत्काल नियमित करने के लिये योजना बनाकर उसे मूर्त रूप दिया जाये, लेकिन अधिकारियों ने अपने ही मंत्री के आदेश को धता बता दिया।

प्रसार भारती के इस रवैये के कारण कैजुअल को मजबूरन न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा, जहां इन अनियमित कर्मियों से सम्बंधित याचिका लंबित है, और माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मामले पर अंतिम फैसले तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया है, ताकि इस बीच याचिकाकर्ताओं को विभाग द्वारा प्रताड़ित न किया जा सके। साथ ही जिन पदों पर बरसों से कार्यरत ये कर्मी नियमित किये जाने की मांग कर रहे हैं, उन पर नई भर्ती न की जा सके।

मगर माननीय न्यायालय के इस आदेश को धता बताते हुए पिछले कुछ माह से आकाशवाणी निदेशालय इन याचिकाकर्ताओं सहित सभी कैजुअल कर्मियों के प्रति दुर्भावना से ग्रसित होकर बदले की नीति अपनाते हुए बलात रूप से ऐसे काग़ज़ों पर हस्ताक्षर करवा रहा है, जिससे इन कैज़ुअल के नियमितीकरण के हक़ को मारा जा सके। हालांकि ये संविधान और मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है और ऐसे शपथ पत्र का न्यायालय में कोई महत्व नहीं होता जिसे ज़बरदस्ती या मजबूर करके लिखवाया गया हो।

इसी बीच प्रसार भारती ने न्यायालय के स्टे आदेश को दरकिनार रखकर एक आदेश री स्क्रीनिंग का निकाला है, जिसमें जबरदस्ती समस्त कैज़ुअल को असाईनी बनाया जा रहा है और एक से एक तजुर्बेदार कैज़ुअल का पुनर्परीक्षण किया जा रहा है, ये दलील देकर कि वक्त के साथ आवाज़ और प्रस्तुति में गिरावट आ जाती है। जब यही बात प्रसार भारती से स्थाई कलाकारों के लिये पूछी जाती है तो वो बगले झांकने लगते हैं।

प्रसार भारती के इस अवैध आदेश के विरोध में देशभर में 2000 से अधिक कर्मी हाईकोर्ट और कैट से स्टे ले चुके हैं, किन्तु इन स्टे ऑर्डर को दरकिनार कर बड़े पैमाने पर अवैध भर्तियाँ जारी हैं। उल्लेखनीय ये भी है कि अधिकाशं केन्द्रों पर आवश्यकता से अधिक कर्मी पहले ही मौजूद हैं।

संसद को गुमराह करते आकाशवाणी के आला अधिकारी

आकाशवाणी के अधिकारी संसद को भी गुमराह करने में माहिर हैं। देश की कई संसदीय समितियों ने इन अनियमित कर्मियों को नियमित करने की अनुशंसा करने के बावजूद उनकी अनुशंसाओं को कचरे के डिब्बे में डाल दिया है और बेतुकी बातों से संसदीय समितियों को गुमराह करने का प्रयास बार—बार किया जा रहा है।

सूत्रों की मानें तो कैज़ुअल कर्मियों को बाहर का रास्ता दिखाने के षड्यंत्र के साथ ही शीर्ष अधिकारी, आकाशवाणी में पिछले दरवाजे से भर्ती करने में लगे हुए हैं। नई भर्ती में चुपचाप वार्षिक या द्विवार्षिक आधार पर चहेतों को नियुक्त किया जा रहा है, जिनका मानदेय 20 हजार से 80 हजार महीना के बीच है।

प्रसार भारती के अंतर्गत दूरदर्शन में भी इसी प्रकार की नियुक्तियां की जा रही हैं, जहां बिना अनुमोदित पोस्ट के ये अभियान जारी है। इन भर्तियों में योग्यता और अनुभव को भी दरकिनार किया जा रहा है।


बेरोज़गारों के पेट पर लात मारकर पेंशन पाने वाले रिटायर लोगों को को दिया जा रहा है आर्थिक लाभ

प्रसार भारती और आकाशवाणी निदेशालय के अधिकारियों ने ऐसी जुगत बैठा ली है, जिसमें अधिकारी के रिटायर होने पर पद के अनुसार उन्हें या तो अडवाइजर या 700 रुपए की दिहाड़ी पर दोबारा अनुबंध आधार पर रखकर बेरोजगारों के पेट पर लात मारी जाती है। ऐसे अधिकारी अपनी पेंशन तो पा ही रहे हैं, आकाशवाणी से अतिरिक्त कमाई भी कर रहे हैं। जबकि एक बेरोज़गार के पेट पर लात मारी जाती है।

यहाँ मज़ेदार तथ्य ये है कि महानिदेशालय के अनुसार कैज़ुअल कर्मियों के 60 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद उनका अनुबंध आगे ये कहकर नहीं किया जाता कि इसके बाद कैज़ुअल रिटायर माने जायेंगे, जबकि दूसरी तरफ इसी विभाग से रिटायर लोगों के साथ अनुबंध किया जा रहा है।

प्रसार भारती के आला अधिकारी सिर्फ ऐसा नहीं है कि कैज़ुअल के प्रति दुर्भावना रखते हैं, बल्कि ये अधिकारी अपने आकाशवाणी और दूरदर्शन के नियमित कर्मियों के केरियर को कुचलने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। इन नियमित कर्मियों की ये स्थिति ये है कि अपने हक़ को पाने के लिये इन्हें भी अपने विभाग के विरुद्ध न्यायालय की शरण लेनी पड़ रही है।

अपने विभाग के प्रोग्राम प्रोडक्शन स्टाफ को प्रोमोशन देने की बजाय संस्थान के शीर्ष अधिकारी अन्य विभागों से डेपुटेशन पर उन लोगों को बुला लेते हैं, जिन्हें न रेडियो का ज्ञान है ना कार्यक्रम का, डेपोटेशन पर सेना विभाग, कृषि विभाग, अन्य मंत्रालयों के अधिकारी डी डी जी और ए डी जी जैसे प्रमुख पदों पर बैठे हैं। जो विभाग के वास्तविक कर्मियों की प्रमोशन और इंक्रीमेंट में बाधा हैं।

इसी वजह से पैक्स भर्ती हुए अधिकारी, पैक्स ही रिटायर हो रहे हैं। जबकि उन्हें टाइम स्केल के अनुसार, स्टेशन डायरेक्टर/ डीडीजी / एडीजी और उच्च शैक्षणिक और अनुभव योग्यता के अनुसार डीजी के पद तक पहुंच जाना चाहिये था।

आकाशवाणी और प्रसार भारती की ज्यादतियां अपने अनियामित उद्घोषकों और प्रस्तोताओं पर सतत रूप से चल रही हैं जिन का विरोध अखिल भारतीय स्तर पर जारी है। लोग विभिन्न न्यायालयों में गुहार लगा कर री स्क्रीनिंग, नए ऑडिशन पर रोक लगाने के लिये मजबूर है, पर निदेशालय के अधिकारी तानाशाही रवैया अपनाते हुये भरसक ये कोशिश कर रहे हैं कि या तो कैज़ुअल गुलामों की तरह काम करें या उन्हे आकाशवाणी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये।

आश्चर्य कि देश के जिन प्रधानमंत्री ने आकाशवाणी सरीखे विभाग को अपने कर्मक्षेत्र में मासिक रूप में शामिल किया हुआ है, उस विभाग के शीर्ष अधिकारी खोखली मानसिकता के स्वामी हैं।

किसी जमाने में देश का सबसे ज्यादा मर्यादित, सम्मानित और श्रेष्ठ विभाग आज इन अधिकारियों के तानाशाही रवैये के कारण पतन की ओर अग्रसर है। वैसे भी निजी एफएम चैनलों और टीवी के कारण आकाशवाणी गर्त में चला गया है।

आज जहाँ आकाशवाणी को आवश्यकता है कि अनुभवी उद्घोषकों और प्रस्तोताओं को सम्मान सहित अपने दामन में संभाल कर रखते हुए, उनसे आकाशवाणी पर ऐसे कार्यक्रम प्रसारित करवाये जायें, जिससे उसकी घटी हुई श्रोता संख्या को बढ़ाया जा सके।

मगर अनुभवी कलाकारों को बाहर निकालकर अनुभवहीन लोगों को लाकर अपने अविवेकपूर्ण निर्णयों और नियमों से, ये अधिकारी उसकी कब्र खोदकर उस पर मिट्टी डालने में लगे हैं।

(समीर गोस्वामी आॅल इंडिया रेडियो कैज़ुअल अनाउंसर एंड कंपेयर यूनियन के प्रवक्ता हैं।)

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