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जनज्वार विशेष

तीन तलाक की तीन बार शिकार हुई रामपुर की नुसरत

Janjwar Team
24 Aug 2017 4:07 PM GMT
तीन तलाक की तीन बार शिकार हुई रामपुर की नुसरत
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लाचार और समय की मारी नुसरत की कहानी उम्मीद देती है कि अंत से भी हो सकती है शुरुआत, और नुसरत के लिए यह एक शुरुआत ही तो थी...

अजय प्रकाश

उत्तर प्रदेश के रामपुर की नुसरत का तीसरा और आखिरी पति मुशर्रफ अली खान अलीगढ़ के एक कॉलेज में लाईब्रेरियन था, जिसने 2 साल पहले तीन बार तलाक बोलकर नुसरत को घर से निकाल दिया था।

नुसरत फिलहाल अपने हक की कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। वह 2 फरवरी को अपने गुजारे भत्ते का मुकदमा जीत चुकी हैं, लेकिन पति मुशर्रफ चौथी शादी के फिराक में लगा हुआ है। और उसने नुसरत की जीत के खिलाफ उपर की अदालत में अपील कर दी है, पर मुआवजा नहीं देने का तैयार नहीं है।

नुसरत कहती हैं, मैं खुश हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया है। यह फैसला न सिर्फ मेरे लिए खुशी की बात है, बल्कि दीन (धर्म) से जुड़ी उन हजारों बहनों के भी हक में है, जिनको दीन और कुरान के नाम पर बरगलाया और जलील किया जा रहा है। मुझे उम्मीद है तीन तलाक पर प्रतिबंध सिर्फ 6 महीने के लिए नहीं, बल्कि हमेशा के लिए अदालत और सरकार लगाएगी।

इस फैसले से उत्साहित नुसरत मांग करती हैं कि जैसे निकाह से पहले शादी के लिए लड़की की रजामंदी ली जाती है, उसी तरह तलाक से पहले औरत की रजामंदी का कानून भी बनना चाहिए।

तीन तलाक की तीन बार शिकार हुईं 42 वर्षीय नुसरत के मुताबिक, 'मेरी पहली शादी 20 साल पहले दिल्ली के अजहर खान से हुई। शादी के डेढ़ साल बाद हमारी एक बेटी हुई। अजहर की पिछले साल चिकनगुनिया से दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में मौत हो गयी। बीमारी के दौरान मैं तो नहीं पर बेटी उनसे मिलने गयी पर उनकी दूसरी बीवी और बच्चों ने मेरी बेटी को अस्पताल से भगा दिया।

अजहर ने नुसरत को कैसे तलाक दिया, यह बताते हुए वह रो पड़ती हैं। बताती हैं, 'पति को बेटी के होने से ऐतराज था। वह सउदी में रहते थे। बच्चे होने की बात सुनकर दिल्ली आए। उन्हें लगा था बेटा जनूंगी।

पर यह गारंटी मैं कैसे कर पाती, यह सब अल्लाह का करम है। बेटी होने के बाद से ही उन्होंने मुझे तरह—तरह से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। बेटी की ताने देकर मुझसे मारपीट करने लगे। बच्ची को उठाकर कई बार फेंका। और उनका इतने के बाद भी दिल शांत नहीं हुआ तो एक दिन उन्होंने मुझे मारपीट कर घर से मेरे अब्बू के साथ रामपुर भेज दिया।

कुछ दिन बीतने के बाद जब अम्मी मुझे भेजने के लिए दिल्ली फोन कीं तो अजहर ने बताया कि वह मुझे तलाक दे चुके हैं। अम्मी ने पूछा कैसे—कब तो उसने कहा, नुसरत को फोन दो और अजहर ने मुझे पहले गाली दी और फिर तीन बार तलाक बोलकर फोन काट दिया।

ऐसे हुआ मेरा पहला तलाक!

दिल्ली से रामपुर आने के बाद मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपना और बेटी का पेट पालती रही।

नुसरत के आगे के जीवन के बारे में कहती हैं, 'पहले तलाक के तीन—चार साल बाद 2005 में पिता ने मेरी दूसरी बार शादी कर दी। वह रामपुर में ही हुई। जिससे शादी हुई उसका नाम मजहर था। वह सरकारी नौकरी में थे। मैं शादी करके धूमधाम से मजहर के घर पहुंची। तीन दिन ही शादी के बीते थे कि मजहर की पहली बीवी आ गयी। कहने लगी हमारा कोई तलाक नहीं हुआ है, इसने तुमसे ऐसे ही शादी की है।

मैं इस घटना से अवाक रह गयी। मैं जानती थी कि मेरे और पिता के साथ धोखा हुआ दिया गया है। मजहर सरकारी नौकरी में था, वह जेल जाता पर उसकी पहली बीवी बहुत गिड़गिड़ाई। तीन बच्चे थे उसके इसी मर्द से, मैं तलाक के लिए तैयार हो गयी और फिर मैंने मान लिया मेरी यही जिंदगी है। अदालत में हुए समझौते में उसे मुझे मुआवजा देना था, पर उसने दुबारा कभी झांका ही नहीं।

इस तलाक के बाद वापस मैं फिर मायके आ गयी...

इस बीच मैं एक मुस्लिम बच्चियों के स्कूल में शिक्षिका हो गयी। नौकरी प्राइवेट ही थी, पर जीवन ठीक चल रहा था। इसके अलावा ट्यूशन भी पढ़ाती रही। इस तरह करीब 5 साल गुजरे। उसके बाद फिर मेरे पिता ने मेरी शादी के लिए जिद की। मां की आंख नहीं बची थी और पिता बूढ़े हो रहे थे, इसलिए मुझे लगा कि भाइयों के यहां कब तक पड़ी रहूंगी, मैंने हां कह दी।

2010 में नुसरत की तीसरी शादी हुई। नुसरत अबकी बोलने से पहले रो पड़ती हैं और कहती हैं, 'मुशर्रफ अलीगढ़ के एक कॉलेज में लाइब्रेरियन थे। लगा अबकी जिंदगी कट जाएगी। वह मुझसे लगभग दोगुनी उम्र के थे। शादी कर अलीगढ़ जाने पर पता चला कि मैं उनकी तीसरी बीवी हूं।

उनकी दो बीवियां मर चुकी हैं और उनसे 6 बच्चे हैं। दो बच्चे लगभग मेरी उम्र के थे। थोड़े दिन रहने के बाद पता चला कि दोनों बीवियों की मौत उसके जुल्मों के कारण हुई है। साथ रहते पता चला कि वह बेहद कंजूस और हिंसक हैं, उनके लिए आप जान दें तो तब भी रहम नाम की चीज नहीं दिखेगी।

मेरी शादी के दो महीने बाद ही मुशर्रफ लाइब्रेरियन पद से रिटायर हो गए। पेंशन में मेरा नाम पत्नी के तौर पर दर्ज हुआ। मैं कुल 5 साल मुशर्रफ के साथ रही। पत्नी होने का सारा फर्ज निभाया, लेकिन फर्ज के नाम पर वे पांच वर्षो में पमेरी पिटाई, गाली—गलौज ही अधिक कुछ नहीं कर सके।

मुशर्रफ का जुल्म सहने का कारण बताते हुए नुसरत कहती हैं, मैं दो बार पहले ही तलाकशुदा थी, इसलिए फिर से बदनामी का दाग नहीं लेना चाहती थी। अब बेटी भी बड़ी हो चुकी थी। लगातार मुशर्रफ द्वारा प्रताड़ित होती रही, पर उनका घर छोड़कर नहीं गयी। सोचा, अब कहां जाउंगी, देखती हूं कितना अत्याचार करते हैं, सोचा सब सह लूंगी पर अब मायके नहीं जाउंगी।

वैसे भी हर जगह से हारा हुआ इंसान और कहां जाता, दर्द को दवा बना लेने के अलावा क्या सोचता है,

पर मैं उन्हें जितना मक्कार समझ सकती थी, वह उससे अधिक शातिर निकले। मारपीट और उत्पीड़न की इंतहा से वह मुझे नहीं भगा पाए तो उन्होंने मुझे पीट—पाटकर अपने दो जवान बेटों के हाथों बस में बैठवाकर मायके रामपुर छुड़वा दिया।

उसके बाद से लगातार मैं उनके खिलाफ अदालत में लड़ रही हूं। सुप्रीम कोर्ट की वकील फरहा फैज हमारी उम्मीद बनीं। कहा लड़ो, जितोगी। सुप्रीम कोर्ट के मुकदमों में मेरा मामला भी है। फरहा दीदी मेरी ओर से भी पेश हुईं थीं।

उत्तर प्रदेश की रामपुर कचहरी में 2 फरवरी को अदालत ने मेरे पक्ष में फैसला दिया और 15 हजार का मुआवजा तय किया, पर अब तक मुझे मेरे पति ने एक रुपया भी नहीं दिया है। मेरे पति मुशर्रफ ने अदालत में दुबारा अपील लगा दी है कि उन्हें मुझे मुआवजा न देना पड़े।

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