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समाज

मेरे घर में डेढ़ महीने से टमाटर नहीं आया

Janjwar Team
9 Aug 2017 12:47 PM GMT
मेरे घर में डेढ़ महीने से टमाटर नहीं आया
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आजकल तुम मोदी जी पर कुछ तीर—कमान नहीं छोड़ रहे। देख रहे हो न मोदी जी को। रक्षाबंधन पर रोडवेज की बसों में महिलाओं का किराया यूपी में पहली बार योगी से मोदी ने बोलकर माफ कराया है...

राग दरबारी

राखी के दिन की बात है। मैंने अपनी बीवी से कहा, 'छोला आज अच्छा बना है।'

बीवी बोली, 'तुम्हें आज अच्छा लग रहा है, लेकिन मैंने तो टमाटर ही नहीं डाला है। इसके बिना ही तुम्हें अच्छा लग रहा है। वाह जी वाह!'

मैंने कहा, 'अरे! पर टमाटर क्यों नहीं लाई। आज तो त्योहार था। मुझसे बोल दी होती मैं काम से लौटते आते वक्त ही ले आता।'

बीवी, 'ओहो! तो तुम टमाटर खाओगे। तुम्हें पता भी है कितने रुपए हैं टमाटर। पूरे 100 रुपए किलो। जो बड़ा और चमकदार है वह 110 और 120 तक मिल रहे हैं। एक दिन थोड़ा घुला हुआ 80 था तो मैं ले आई थी, वह भी डेढ़ महीने पहले। अब नहीं लाती। जाड़ों में जब सस्ते होंगे तब लाउंगी, तब तक ऐसे ही चलेगा।'

बीवी का फरमान सुन मैं अभी खाना खाकर हाथ ही धो रहा था कि फूफा का फोन आ गया।

वे फोन पर रक्षाबंधन पर एक—दो वाक्य बोल आगे बढ़ गए और मुझसे पूछे, क्या नया ताजा चल रहा है।

मैंने कहा, 'कुछ नहीं सब वैसे ही है। आजकल बिजली बहुत कट रही है, खाने में पसीने से भर गया।'

फूफा, 'हां, जबतक अखिलेश यादव था तबतक तो 24 घंटे रहती थी, है कि नहीं।'

मैंने कहा, 'अरे ये बात नहीं है।'

फूफा, 'खैर छोड़ो। आजकल तुम मोदी जी पर कुछ तीर—कमान नहीं छोड़ रहे। देख रहे हो न मोदी जी को। रक्षाबंधन पर रोडवेज की बसों में महिलाओं का किराया यूपी में पहली बार योगी से मोदी ने बोलकर माफ कराया है।'

मैंने फूफा से कहा, 'यह काम तो काबिलेतारीफ है। मैंने भी आज बसों में देखा। पर यह सरकार किसी और बहाने जनता से दो का चार करके वसूल लेगी। इधर से दें या उधर से, पैसा तो जनता का ही है।'

मुझे लगा फूफा उलझ जाएंगे, वह मोदी को लेकर बहुत ईमोशनल हैं। तो मैंने बात आगे बढ़ाते पूछ लिया,

'और बताइए फूफा। भोजन—भात क्या बनाया था बुआ ने। पनीर—वनीर दबाया होगा। मलाई और खोआ डालकर जो बनता है वही वाला पनीर न। बहुते स्वादिष्ट बनाती हैं बुआ।'

फूफा, 'हा—हा, अरे नहीं। हर बार पनीर की सब्जी बनती ही थी। इस बार ठीक पनीर मिला नहीं समय से। लेकिन अबकी बैगन का भर्ता बनाया था। पहली बार किसी त्यौहार पर बैगन का भर्ता और पूड़ी खायी, पर बड़ा ही स्वादिष्ट लगा। आदमी को संतोष हो तो सब परम प्रिय ही लगता है।'

भर्ते का जिक्र आते ही मुझे बीवी का टमाटर प्रसंग याद का आ गया। मैंने तड़ से पूछ लिया, 'टमाटर के साथ या बिन टमाटर के।'

फूफा, 'हां—हां, सब पड़ा था। बड़ा ही ए—वन क्लास का बना था। अगली बार आओ तो अपनी बुआ से बनवाना।'

इसी बीच बुआ ने फूफा से फोन टपा लिया। नर—नमस्ते और हाल—चार के बाद बुआ बोलीं, 'ऐ बाबू। तुमसे का झूठ बोलना, टमाटर की जगह नींबू निचोड़ के काम चलाए हैं। टमाटर में आग लगी है। मंडी में चेहरा और साड़ी देखकर टमाटर पर हाथ लगाने देता है खटिक। बाकी सब्जी का भी वही हाल है, लेकिन टमाटर के बिना काम चल सकता है, दूसरी के बिना तो नहीं न।'

बुआ थोड़ा रुककर आगे बोलीं, 'बताओ कोई त्योहार पर बैगन खाता है, लेकिन जब बढ़िया बैगन ही 50—60 हो गया है, फिर आदमी पनीर—वनीर कैसे खाए। पनीर केवल लेने का नहीं है, उसमें भर्ती कितना लगता है। टमाटर, प्याज, गर्म मसाला, क्रीम और खोआ। 6 आदमी के परिवार में ये सब जोड़ लो तो 300 की तो एक टाइम की सब्जी हो जाएगी। तो तुम ई बताओ कि हम स्वादिष्ट व्यंजन बनाएं कि बच्चों की पढ़ाई, साबुन—तेल और कमरे का किराया देखें।'

मैं, 'हां, बुआ आप सही कह रही हैं। ये सब तो सोचना ही पड़ेगा।'

बुआ, 'देखो! हम तो शुरू से बोलते हैं खर्रा—खर्री और ई ईंटा पर चढ़कर बड़का बनते हैं। इसी से हमसे इनकी बनती नहीं, ठनती रहती है। बच्चों में का संस्कार जाएगा। वह सब भी कल को झूठ के पुआल पर लिंटर डालेंगे। तुम ही बताओ, झूठ बोल के कोई सेठ बनता है और नाम बदलके हाकिम।'

अच्छा सुनो! यह मोदी चालीसा सुनाए बिना बेचैन हुए जा रहे हैं। इतना कह, बुआ ने फूफा को फोन वापस थमा दिया।

फूफा, 'बाबू तुम्हारी बुआ भी तुम्हारी मां की तरह अधकपारी हैं। तुम्हारे पापा बिल्कुल सही कहते हैं, औरतों को क्या पता समाज का लोक—लिहाज। जहां देखा, वहीं शुरू हो गयीं। सच उगलने की इनको बहुत जल्दबाजी रहती है पर इन्हें क्या पता कि परिवार की साख बनाने में कितनी पीढ़ियां लग जाती हैं। मर्द को दस बात सोचनी होती है।'

पर फूफा, 'बुआ तो सही ही कह रहीं थीं। महंगाई बहुत हो गयी है। फिर असलियत को क्यों छुपाना। ये तो घर—घर की कहानी है। आजकल ज्यादातर लोगों के घरों में दो टाइम सब्जी नहीं बन पा रही।'

फूफा, 'तुम भी कभी—कभी बच्चों जैसी प्रतिक्रिया देते हो। यह कोई अच्छा संस्कार नहीं है। क्या सच बताने के नाम पर सभी को बताते फिरें कि इस बार महंगाई के कारण बैगन का भर्ता और पूड़ी बनी थी राखी पर। लोग क्या कहेंगे, औरों की निगाह में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी। घर का भेद खोलने से क्या लाभ। खाली हांड़ी कोई भरने तो आएगा नहीं।'

मैं, 'लेकिन फेसबुक पर मोदी और योगी का गलत गान करने से भी क्या फायदा होता है? आपकी फेसबुक पोस्ट भरी हुई हैं कि मोदी ने 40 देश की यात्रा की, देश को समृद्ध किया, देश खुशहाल है, अमेरिका ने स्वागत किया, गौबंदी कर दी, महान नोटबंदी और जीएसटी लागू कर देश को मजबूत किया, भ्रष्टाचार खत्म किया। पर फूफा सच क्या है....मेरे घर में डेढ़ महीने से टमाटर नहीं आया और आप पनीर की सब्जी बनाने में सक्षम नहीं हैं।'

वह बीच में कुछ बोलते इससे पहले मैंने कहना जारी रखा, 'इससे अच्छा आप यह लिखते कि महंगाई के कारण अबकी मेरे घर पर बैंगन का भर्ता और पूड़ी बनी तो समाज में एक संदेश जाता। आपके साथ और लोग भी अपना सच कबूल करते और बताते कि कैसे बढ़ती महंगाई के कारण एक आम मध्यवर्गीय परिवार में संतुलित भोजन मुश्किल होता जा रहा है। घर चलाना बॉर्डर पर लड़ने से कम मुश्किल नहीं लग रहा है।'

फूफा, 'मतलब अब फेसबुक पर हम अपने घर की बात लिख कर जगहंसाई कराएं। ये बताएं कि हमारे घर में सेब कब आया था, हमें याद नहीं। ये बताएं कि पता नहीं कब हम मियां—बीवी ने एक गिलास दूध पीया था। हम ये बताएं कि पैसे की कमी के कारण तुम्हारी बुआ की एक आंख डैमेज हो गयी। या ये बताएं कि पिछले 5 साल से प्रोग्राम बना रहे हैं बाल—बच्चों के साथ वैष्णो देवी जाने का, पर 10 हजार रुपए एक साथ नहीं जुट रहे कि जा सकें।'

उनकी बात सुनने के बाद मैंने फूफा से कहा, 'हां, तो इसमें क्या बुराई है। फेसबुक केवल इसलिए थोड़े नहीं है कि हम सब अपनी सच्चाई छुपाकर नौ मन वाले तेली बनें।'

बुआ ने अबकी फिर फोन उनसे ले लिया और बोलीं

'बेटा, तुम लोग नई पीढ़ी के हो, पता नहीं कितना बदले हो। लेकिन इनके पहले और ये लोग तो दरवाजे की चौकी पर बैठ झूठी शेखी बघारकर ही पूरा जीवन जीते रहे हैं। एक बिगहा खेत को दस बिगहा, क्लर्क बेटे को अधिकारी, प्राइवेट नौकरी को सरकारी, चपरासी को इंजीनियर, खाली डेहरी को अटी पड़ी और थाने के दीवान को कलेक्टर बताकर बड़े आदमी बनते रहे हैं। और आज मोदी के लिए भी वही कर रहे हैं। झूठी शेखी।'

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