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सिक्योरिटी

हर साल जैविक धान बेचकर 22 लाख कमा रही हैं उत्तराखण्ड की सावित्री देवी

Janjwar Team
22 Jan 2018 7:58 PM GMT
हर साल जैविक धान बेचकर 22 लाख कमा रही हैं उत्तराखण्ड की सावित्री देवी
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जहां हर साल पहाड़ से लगातार पलायन बढ़ रहा है वहीं कोटाबाग की सावित्री देवी उभरी हैं बतौर मिसाल, उनकी मेहनत की बदौलत हर साल कोटाबाग से किया जा रहा है 400 क्विंटल धान का स्विटजरलैड को निर्यात...

हल्द्वानी से हरीश रावत और गिरीश चन्दोला की रिपोर्ट

जहां चाह वहा राह के मूलमंत्र को सच कर दिखाया है कोटाबाग की सावित्री देवी गर्जोला ने। आज जहां लोग अधिक अन्न उत्पादन के लिए खेती में तमाम तरह के रासायनिक खादों का उपयोग कर रहे हैं, वहीं सावित्री ने जैविक खेती को अपनाकर यह सिद्ध कर दिया है कि जैविक खेती से भी मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।

उन्होंने कोटाबाग के मनकठपुर गांव के महज डेढ एकड़ में फैले अपने खेतो में न केवल धान, गेहूं बल्कि अन्य कई तरह की फसलों को उत्पादित कर यह जतला दिया कि छोटी जोत से भी अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है। अपने बुलंद हौसले के जरिए उन्होंने स्वंय को तो स्थापित किया ही साथ ही वह जैविक खेती के क्षेत्र में उत्तराखण्ड को एक अलग पहचान दिलाने में कामयाब रही हैं।

सावित्री देवी आज 400 क्विंटल धान स्विटजरलैण्ड को निर्यात कर रही हैं। वह भी औने—पौने दाम पर नहीं, बल्कि सामान्य से पांच गुना अधिक दाम पर। उनकी छोटी सी शुरूआत का ही नतीजा है कि इस समय विकासखण्ड के करीब सात गांव जैविक पद्धति से खेती कर रहे हैं और छोटी जोत होने के बावजूद 400 क्विंटल धान 5500 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से सीधे यूरोप भेज रहे हैं।

सावित्री देवी बताती हैं कि सन 2000 में उन्होंने अपने खेतों से जैविक खेती की शुरूआत की थी। लेकिन इसी के साथ वे खेती के लिए लगातार प्रशिक्षण प्राप्त करती रही और आसपास के लोगों को भी जैविक खेती के लिए प्रेरित करती रही। देखते ही देखते आसपास के सात गांव इस अभियान से जुड़ गये। बाद में हरियाणा की एक कम्पनी कोहिनूर से अनुबन्ध किया गया और आज इसी कम्पनी के जरिए वे 400 क्विंटल से अधिक धान सीधे स्विटजरलैंड को भेज रही है।

बकौल सावित्री प्रदेश में जैविक खेती के प्रसार की प्रर्याप्त सम्भावनाएं हैं। छोटी जोत के बावजूद लाभ के प्रतिशत को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। वे बताती है कि जैविक खेती के प्रमाणीकरण के लिए तीन साल सतत खेती की आवश्यकता होती है, यही वजह है कि कई किसान इस खेती से नहीं जुड़ते। (प्रतीकात्मक फोटो)

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