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राजनीति

कौन जीतेगा कर्नाटक जानिए उन पत्रकारों से जो रहे चुनाव मैदान में

Janjwar Team
14 May 2018 10:32 AM GMT
कौन जीतेगा कर्नाटक जानिए उन पत्रकारों से जो रहे चुनाव मैदान में
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चुनावी कवरेज करने वाले ज्यादातर पत्रकारों का मानना है किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की संभावना, किसको कितनी सीटें मिलेंगी, कहा नहीं जा सकता, मगर जेडीएस होगी किंगमेकर की भूमिका में...

कर्नाटक से मनोरमा की ग्राउंड रिपोर्ट

कर्नाटक विधानसभा के चुनाव के नतीजे कल शाम तक साफ हो जाएंगे लेकिन भविष्यवाणियों, कयासों का सिलसिला भी जारी है। ज्यादातर एग्जिट पोल के नतीजों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं नजर आ रहा है लेकिन लगभग सभी ने भाजपा को ज्यादा सीटें हासिल होने का अनुमान जताया है। सिर्फ आजतक और इंडिया टीवी के एग्जिट पोल में कांग्रेस को ज्यादा सीट मिलने की बात कही गई है।

कर्नाटक के लोकप्रिय चैनलों विजयवाणी, न्यूजएक्स ने भाजपा को ही ज्यादा सीटें हैं, केवल सुवर्णा के आकलन में कांग्रेस को 118 तक सीटें हासिल होने का अनुमान है।

दोनों दलों में से जिसे भी ज्यादा सीटें मिले, लेकिन स्पष्ट बहुमत नहीं होने पर सरकार बनाने में जेडीएस 'जनता दल सेक्युलर' की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होने वाली है।

इस बार राज्य में 72.13 फीसदी रिकार्ड मतदान दर्ज हुआ है 1952 के बाद से यह आंकड़ा अधिकतम है, पिछले चुनाव में 71.45 फीसदी मतदान हुआ था। इस बढ़े हुए आंकड़ों का भी अलग—अलग तरह से विश्लेषण हो रहा है, कुछ विशेषज्ञ इसे भाजपा के हक में मान रहे हैं तो कुछ ग्रामीण इलाकों में ज्यादा मतदान होने से इसे कांग्रेस के लिए फायदेमंद बता रहे हैं।

बहरहाल, नतीजों के भ्रम के अलावा कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 कई और कारणों से भी खास है, एक ओर जहां कांग्रेस के लिए कर्नाटक खड़े होने की जमीन है वहीं भाजपा के लिए हार का मतलब होगा आगे और हार के सिलसिले की शुरुआत, जबकि कर्नाटक भाजपा के लिए दक्षिण का प्रवेश द्वार रहा है।

सबसे पहले 2007 में 7 दिन के लिए यहां भाजपा की सरकार बनी थी और मुख्यमंत्री थे बी एस येदुरप्पा, फिर मई 2008 में भाजपा ने पूर्ण बहुमत के साथ येदुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनायी, भाजपा की पूरी कोशिश कर्नाटक के साथ आगे तमिलनाडु और केरल में अपना विस्तार है।

यह चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि इस बार यहां स्थानीय मुद्दों की कोई बात नहीं थी, मुकाबला सीधे—सीधे मोदी और सिद्धारमैया के बीच हुआ, कर्नाटक के पिच पर राष्ट्रीय राजनीति का मैच खेला गया है, न सत्ताविरोधी लहर थी, न समर्थन की। इसलिए कर्नाटक की मौजूदा राजनीति को बेहतर तरीके से समझने के लिए हमने राज्य के कई पत्रकारों की राय ली जो लंबे समय से यहां की राजनीति को देख, समझ, लिख और रिपोर्ट कर रहे हैं। साथ ही कुछ राजनीति से जुड़े लोगों की भी जो सोशल मीडिया पर लगातार इस विषय पर लिखते रहे हैं।

राजस्थान पत्रिका बेंगलुरु के रेजिडेंट एडिटर राजेन्द्र शेखर व्यास कहते हैं, मेरी राय एग्जिट पोल के नतीजों से थोड़ी अलग है, हालांकि मुकाबला बहुत सख्त है लेकिन मुझे लगता है कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी, लेकिन स्पष्ट बहुमत किसी को नहीं मिलेगा, सरकार बनाने के लिए दोनों दल को जोड़—तोड़ बिठाना ही पड़ेगा। 80 से 95 सीट भाजपा को आने पर संभव है जेडीएस भाजपा के संग जाना ठीक समझे और यदि कांग्रेस को 100 से ज्यादा सीटें मिली को ये तय है कि कांग्रेस सरकार बना लेगी, जेडीएस के बगैर भी।

व्यास आगे कहते हैं, वैसे भी सिद्धारमैया ने पार्टी हित में खुद के बजाए दलित मुख्यमंत्री बनाने की बात का विकल्प देकर भी पहले ही तीर निशाने पर चला दिया है, रणनीतिक तौर पर यह कांग्रेस के हित में बयान है। दरअसल, यह चुनाव बगैर मुद्दों के लड़ा गया,सिद्धारमैया पर पांच साल में भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा, येदुरप्पा भ्रष्टाचार के आरोप में मुख्यमंत्री पद से हटे थे इसलिए चुनाव मोदी बनाम सिद्धारमैया हो गया। मोदी के हर वार का जवाब मुख्यमंत्री ने दिया, जबकि येदुरप्पा को भाजपा शीर्ष नेतृत्व द्वारा फ्रीहैंड नहीं मिलना भाजपा के लिए ठीक नहीं हुआ, उन्हें ज्यादा महत्व मिलने से अंतत: भाजपा को ही फायदा होता।

एनडीटीवी, इंडियन एक्सप्रेस, रेडियो सिटी, गांव कनेक्शन से जुड़ी रहीं स्वतंत्र पत्रकार वासंती हरिप्रकाश जिन्होंने चुनाव के दौरान पूरे राज्य के 9 जिलों का दौरा किया और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पिकल जार पोल एक्सप्रेस नाम से अपनी ग्राउंड रिपोर्ट पेश की, कहती हैं मेरा मानना है कि चुनाव में सीटों की संख्या की भविष्यवाणी करना पत्रकारों का काम नहीं है, जीत—हार के बहुत से कारक होते हैं, किसी भी विधानसभा क्षेत्र में हम हर किसी से नहीं मिल सकते। कुछ ही लोगों से मिलेंगे बात करेंगे फिर वो पूरे क्षेत्र के लोगों की राय या मूड के प्रतिनिधि कैसे हो सकते हैं? ये काम सैफोलॉजिस्ट के लिए ही छोड़ देना चाहिए।

वासंती आगे कहती हैं, जहां तक अपनी यात्रा के दौरान मेरे अनुभवों की बात है तो मुझे महसूस हुआ हम मीडिया के लोगों में ही चुनाव को लेकर इतनी दिलचस्पी है जबकि ग्राउंड पर मैंने लोगों में उस तरह की कोई रुचि, ट्रेंड या लहर देखी ही नहीं, इसकी वजह शायद ये है कि चुनाव दर चुनाव बीत रहे हैं, लेकिन दूरदराज के लोगों के मसले वैसे के वैसे हैं, इसलिए मुझे उनमें पार्टियों को लेकर उदासीनता लगी। कांग्रेस आए, बीजेपी आए उससे हमारा क्या? इसके अलावा कर्नाटक के अलग—अलग क्षेत्र की समस्याएं बिल्कुल अलग हैं, मसलन उत्तर कर्नाटक के जिले बेंगलुरू से इतने अलग हैं कि कई बार मुझे लगा मैं अपने ही राज्य में हूं या कहीं और आ गयी हूं, ना बुनियादी ढ़ांचा, ना पानी और ना अन्य सुविधाएं।

इस दौरान मैं इसी क्षेत्र में कॉलेज के युवाओं से मिली उनके लिए नौकरी सबसे बड़ी जरूरत है, बहुत से लोगों का सवाल था हमें रोजगार के लिए बेंगलूरू ही क्यों जाना पड़े? दक्षिण कन्नडा में सांप्रदायिकता के सवाल बहुत मायने रखते हैं हम इनके बारे में केवल बात करतें हैं लेकिन इस इलाके के लोगों का रोज इनसे सामना होता है। मैंने पाया कि लोग इस बात से संतुष्ट थे कि पिछले चार—पांच साल में सामाजिक सौहार्द और शांति को भंग करने वाली कोई बड़ी घटना नहीं हुई, हम यहीं चाहतें हैं सरकारें विकास पर ध्यान केद्रित करें।

मठों के कई स्वामियों से भी बात की तो उन्होंने बताया लिंगायत धर्म को अलग किए जाने की मांग कोई आज की नहीं है, हम बहुत सालों से ये मांग कर रहे थे, केवल वीराशैवा को छोड़कर जो लिंगायतों में ब्राह्मण समझे जाते हैं और इस विभाजन की बात से नाखुश हैं। मैं नतीजों पर कोई राय नहीं दे सकती, लेकिन जिन बातों और मुद्दों का जिक्र किया वो सब जरूर असली हैं, हकीकत है, चुनावों को अभी संख्या और विश्लेषण से आगे लोगों, उनके मसलों पर फोकस होना बाकी है।

कर्नाटक से एनडीटीवी इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार नेहाल किदवई कहते हैं, कांग्रेस को बढ़त मिलेगी, सीटों की संख्या को लेकर कोई आकलन करना सही नहीं होगा, लेकिन ये जरूर कह सकता हूं कि यह चुनाव पूरी तरह से लहररहित और मुद्दारहित चुनाव था,ऐसे में मतदान का ट्रेंड जाति समीकरणों पर आकर टिक जाता है। कर्नाटक में फिलहाल जाति समीकरण भाजपा और जेडीएस के पक्ष में नहीं है। 18 प्रतिशत लिंगायतों में 5 प्रतिशत वीराशैवा हैं और बच गए 13 प्रतिशत में से 4.5 से 6 फीसदी दलित, ओबीसी व अनुसूचित जनजाति से आते हैं। इनसे संबंधित मठों ने सिद्धारमैया का समर्थन किया है। इस 6 प्रतिशत मतदाता में से 3 प्रतिशत भी अगर कांग्रेस के पक्ष में मतदान करते हैं तो कांग्रेस की सीटें 130 तक पहुंच सकती हैं।

न्यूज एक्स से जुड़े रहे और फिलहाल पॉलिसी पल्स और संडे गार्जियन के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार विजय ग्रोवर कहते हैं, मुझे लगता है यह जाति पर आधारित मुकाबला है इसे लिंगायत बनाम वोक्कालिंगा कह सकते हैं,देखें परिणाम क्या होता है लेकिन ये जरूर स्पष्ट हुआ कि या मुद्दाविहिन चुनाव था, इसे उत्तर भारत और दक्षिण भारतीय राजनीति के बीच हुआ परीक्षण भी कह सकते हैं, सीटों की सही संख्या के बारे में अनुमान मुश्किल है लेकिन जो भी देवगौड़ा और कुमारस्वामी को जीत लेगा, जीत उसी की होगी।

कुर्ग से प्रजावाणी के पत्रकार आदित्य के. की राय में, कुर्ग में भाजपा 2008 से लगातार जीतती रही है, इस साल भी यहां के दोनों सीटों पर भाजपा की ही जीत होगी,क्योंकि यहां हिंदू मुस्लिम फैक्टर स्थायी हो चुका है। 4 लाख चालीस हजार और दो सीटों वाले इस विधानसभा क्षेत्र में हिन्दुओं की संख्या ज्यादा है, जो धर्म के आधार पर वोट करना पसंद करती है। जहां तक पूरे कर्नाटक की बात है, मुझे किसी दल को बहुमत नहीं मिलने वाला। कांग्रेस, भाजपा दोनों दलों को 100 से कम सीटें मिलेंगी और जेडीएस को 30 40 तक। वैसे चुनाव में सत्ताविरोधी लहर भी नहीं दिखी कहीं। कांग्रेस ने बड़े—बड़े काम नहीं किए हैं जैसे रोड, बिल्डिंग और फ्लाईओवर नहीं बनाया, लेकिन योजनाओं से लोगों को व्यक्गित रूप से फायदा हुआ, मगर इससे भी जाति और धर्म का फैक्टर धुंधला नहीं हुआ है।

सामाजिक चिंतक, लेखक और लोकसत्ता पार्टी के नेता श्रीधर पाब्बिशेट्टी कहते हैं, यह बहुत जटिल चुनाव है और वोटर रोल्स की सटीकता को लेकर भी मेरे मन में संदेह है। जहां तक इस सरकार की बात है तो यह अपारदर्शी और गैरजिम्मेदार सरकार रही है, जिसने अपने फैसलों में जनता को शामिल नहीं किया है और न ही स्थानीय निकायों को सत्ता में भागीदारी को ही सुनिश्चित किया है।

कन्नडाप्रभा के चीफ रिपोर्टर गिरीश बाबू कहते हैं, स्पष्ट जनादेश नहीं मिलने वाला है लेकिन कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलेंगी। यह चुनाव बहुत सादा रहा। न तो कोई सत्ताविरोधी लहर थी और न ही सिद्धारमैया के खिलाफ, इसलिए किसी भी किस्म का आकलन सच में बहुत मुश्किल काम है।

विजय कर्नाटक के राजनीतिक संपादक गुरूमूर्ति की राय में यह चुनाव बहुत ही कड़े मुकाबले वाला है। कांग्रेस के लिए सत्ता में बने रहना बहुत मुश्किल है,ओल्ड मैसूर इलाके में इस बार कांग्रेस को जेडीएस के कारण कुछ सीटें खोनी पड़ सकती है और तटीय कर्नाटक में भी भाजपा उसे कड़ा टक्कर देगी। भाजपा को 105—115, कांग्रेस को 70—80 और जेडीएस को 40—45 के बीच सीटें मिल सकती हैं। दरअसल, यह चुनाव सिद्धारमैया और येदुरप्पा के बीच में था ही नहीं और न ही स्थानीय था, बल्कि मुकाबला नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी के बीच में हुआ है इसलिए इसे राष्ट्रीय चुनाव कहा ज्यादा गलत नहीं होगा।

बेंगलुरू में राजस्थान पत्रिका से जुड़े पत्रकार प्रियदर्शन शर्मा कहते हैं, राज्यभर के पत्रकारों की रिपोर्ट कहती है कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी। कांग्रेस और भाजपा के बीच अगर 10 सीटों का अंतर रहा, तो उस स्थिति में भाजपा और जेडीयू की सरकार बनेगी। विधानसभा से रिपोर्टिंग करने वाले दर्जनों पत्रकारों का अमूमन यही मानना है कि दोनों दल 85 से 95 के बीच रह सकते हैं और पुराने मैसूर और शेष राज्य में देवेगौड़ा आराम से 20 से 25 निकाल लेंगे।

स्पेशल प्रोजेक्ट्स वन इंडिया के संपादक अजय मोहन की राय में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली है 110—115 सीटों के साथ, क्योंकि भाजपा के पास जमीनी कार्यकर्ताओं की फौज है जबकि कांग्रेस ने चुनाव भाड़े के कार्यकर्ताओं के दम पर लड़ा है। आश्चर्यजनक है कि सत्ताधारी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस कुल 224 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े में असमर्थ रही, कांग्रेस को 70—80 सीटों पर जीत मिलेगी।

द बंगलोर के मेट्रो रिपोर्टर फिरोज टोटानवाला अंदेशा जताते हैं कि किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की संभावना है, किसको कितनी सीटें मिलेंगी, इसके बारे में कोई कयास नहीं लगाना चाहता। हां, इतना तय है कि जेडीएस किंगमेकर की भूमिका में होगी।

सामाजिक कार्यकता, चिंतक और स्वराज इंडिया कार्यकारिणी के सदस्य केपी सिंह को लगता है, त्रिशंकु विधानसभा होने जा रही है लेकिन कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा सीटें मिलेंगी। मेरे अनुमान के मुताबिक कांग्रेस को 105 सीटें, भाजपा को 90 और जेडीएस को 25 सीटें हासिल होनी चाहिए।

टीआरएस के मीडिया संयोजक, श्रवण रेड्डी कहते हैं, कांग्रेस को 90 से 100 सीटें हासिल हो सकती हैं, भाजपा को 70—80 और जेडीएस को 35—45 के बीच। वैसे कांग्रेस 105 से उपर जाने पर ही सरकार बनाने की कोशिश करेगी, लेकिन भाजपा 70—80 सीटों में ही कांगेस को रोकने और खुद की सरकार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली। कम से कम तमिलनाडु, बिहार, गोवा, अरूणाचल प्रदेश और असम का अनुभव तो यही कहता है।

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