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राजनीति

उत्तराखंड वन निगम को लूट रहीं एक ही ग्रुप की तीन कंपनियां

Janjwar Team
27 Sep 2017 8:54 AM GMT
उत्तराखंड वन निगम को लूट रहीं एक ही ग्रुप की तीन कंपनियां
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पारदर्शिता की नजर से तमाम विभागों में आउटसोर्सिगं के लिए निविदाएं आमंत्रित की जाती हैं। बावजूद इसके भ्रष्टाचार का दर्शन अब नये आयाम स्थापित करने लगा है। ‘उत्तराखण्ड वन विकास निगम’ हल्द्वानी में एक ऐसा ही मामला सामने आया है जिसकी पड़ताल के बाद सामने आई बातों से पता चलता है कि दीमकों का एक समूह 'उत्तराखण्ड वन विकास निगम' को पूरी तरह से अपनी चपेट में ले चुका हैं। इसकी पहली कड़ी में हम सिर्फ दीमकों का परिचय और गौला नदी में 'इलैक्ट्रानिक मापतोल कांटों' के बावत बात कर रहे हैं।

संजय रावत की रिपोर्ट

दीमकों के जिस समूह की बात हम कर रहे हैं, कोई और नहीं 'तीन फर्में' हैं जिन्हें एक आई.एफ.एस. अधिकारी जब्बार सिंह सुहाग (उत्तराखंड काडर) का संरक्षण प्राप्त बताया जा रहा है। इन्हीं तीनों फर्मों को वन विकास निगम के सारे कार्य नियम-मानकों की चादर ओढ़ाकर सौंपे जाते हैं।

चाहे गौला नदी में माप तोल कांटों का काम हो या कोसी, दाबका या नंधौर नदी में ठेका, इन्हीं तीनों फर्मों में से किसी एक को ही मिलेगा। इसके अलावा भी निगम के दूसरे कामों पर भी इन्हीं तीनों का कब्जा रहता है। चाहे वह सी.सी.टी.वी. कैमरों का ठेका हो, इंटरनेट कनेक्टिविटी का ठेका हो, आर.एफ.आई.डी. चिप का ठेका हो या गौला मजदूरों के लिए कथित रूप से की जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं के अलग-अलग ठेके हों। चाहे कोई काम हो, ठेका इन्हीं तीनों फर्मों में से एक को मिलेगा ही मिलेगा।

ऐसा क्यों है यह सबसे अहम सवाल है। दीमकों के जिस समूह की हम बात कर रहे हैं ये तीनो फर्में उसी एक समूह की हैं या यूं समझना आसान होगा कि दीमकों के इस एक समूह ने अलग-अलग नाम से तीन फर्में बनाई हैं, अब टेंडर तीनों में किसी एक फर्म को मिले, फायदा समूह के खाते ही तो आया।

फिलहाल हम बात करते हैं वन निगम के उस टेंडर की जिसके समय से पहले खुलने की वजह से इस समूह का पर्दाफाश हो सका है।

क्या था मामला
गौला नदी में इलैक्ट्रानिक मापतोल कांटे लगाये जाने के लिए 'उत्तराखण्ड वन विकास निगम' हर तीन साल में आउटसोर्सिंग के लिए निविदाएं आमंत्रित करता है। निविदा प्रणाली भी वही है, जैसे अन्य विभागों में होती है। फर्में दो तरह की बिट डालती हैं पहला तकनीकी बिट, और दूसरा वित्तीय बिट। बहरहाल जो टेंडर हुए हैं गौला नदी के 11 निकासी गेटों पर 33 माप तोल कांटों के लिए। जिसमें 18 सितम्बर को तकनीकी बीट खुली तो 11 फर्मों में से 7 फर्मो को अयोग्य घोषित कर दिया गया।

जिसकी खबर 19 सितंबर को चस्पां होनी थी, 18 सितम्बर की रात ही जान—बूझकर उसे चस्पां कर दिया गया। जिसके बाद हंगामा हो गया और अयोग्य करार दी गयी फर्में न्यायालय की शरण में चली गयीं, जिस पर सुनवाई/फैसला 5 अक्टूबर को होना तय है।

कहाँ से आई घपले की गंध
कुल 11 फर्मों की निविदा भागीदारी से शायद उक्त समूह सकते में आ गया और 'पूल' बनाने कि जुगत में लगा रहा। तब तक एक दूसरे के प्रपत्रों की जानकारी सबको हो चुकी थी, किसी के भी प्रपत्र निविदानुसार पूर्ण नहीं थे। थे भी तो तकनीकी बिट में बैठे अधिकारियों ने करनी तो अपने मन की ही थी। तो तयशुदा कार्यवाही के हिसाब से अधिकांश फर्मों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। हमारी टीम ने जब वर्ष 2004 से सिलसिलेवार पड़ताल की, तो पाया कि 3 फार्मों पर ही निगम बेशुमार मेहरबान रहा है। और ये मेहरबानी हुई है वर्ष 2007 से।

लाभान्वित होने वाली फर्में
वर्ष 2007 से एक ही समूह की जिन फर्मों पर निगम मेहरबान रहा वो फर्में हैं —
1- हल्द्वानी लालकुआ धर्मकांटा ओनर्स वेलफेयर सोसायटी
2- नन्धौर हल्द्वानी उज्जवल धर्मकांटा
3- आंचल धर्मकांटा समिति

समूह एक फर्में तीन
इलेक्ट्रॉनिक माप तोल कांटे लगने का चलन वर्ष 2004-05 में शुरू हुआ। तब जिस फर्म के साथ निगम का अनुबंध हुआ वो फर्म थी ‘हल्द्वानी लालकुआ धर्मकांटा ओनर्स वेलफेयर सोसायटी', इस फर्म ने जब धरातल पर काम किया तो पता चला कि मुनाफा कितना है और मुनाफे के रास्ते भी ढेरों हैं। निगम के अधिकारियों की मौन सहमति से फर्म को ज्ञान मिला की लगातार काम पाना है तो दो फर्में और बनाई जानी चाहिए। टेंडर किसे मिलेगा ये तो निगम के हाथ में ही होगा। चूँकि टेंडर में नियम शर्तें ही ऐसी होंगी, जिससे अमूक फर्म ही योग्य सबित होगी। ज्ञान ऐसा था कि 2 फर्में तो एक साथ ही रजिस्टर हुई है, जिनका क्रमशः रजिस्टर नंबर है 05307H और 053078 H,

अब देखते है किस फर्म में मालिकान कौन-कौन है। जिससे तय होगा कि तीनों फर्मों में एक ही समूह के लोग हैं-

1- ‘हल्द्वानी लालकुआ धर्मकांटा ओनर्स वेलफेयर सोसायटी’ के मालिकान -
अब्दुल माजिद पुत्र अब्दुल रहीम (संरक्षक)
सुरेन्द्र पाल सिंह पुत्र नानक सिंह(अध्यक्ष)
संजय सिंह धपोला पुत्र जेएस धपोला (वरिष्ठ उपाध्यक्ष)
मोहन सिंह पुत्र मदन सिंह (कनिष्ठ उपाध्यक्ष)
राकेश मोंगा पुत्र वेदप्रकाश (महामंत्री)
गिरीश चंद्र पुत्र गोपाल दत्त (उपसचिव)
एहती श्याम खान (कोषाध्यक्ष)
राजू जोशी पुत्र गोपाल दत्त जोशी (उपकोषाध्यक्ष)
गोविन्द बल्लभ भट्ट पुत्र प्रेमबल्लभ भट्ट (प्रचार मंत्री)
धन सिंह पुत्र मदन सिंह (संगठन मंत्री)
जाहिद अली पुत्र अब्दुल माजिद (सदस्य)
राजेन्द्र सिंह पुत्र हिम्मत सिंह (सदस्य)
वैभव सिंघल पुत्र अशोक सिंघल (सदस्य)

2- ‘नंधौर हल्द्वानी उज्जवल धर्मकांटा’ के मालिकान -
संजय सिंह धपोला पुत्र जगत सिंह(संरक्षक)
मोहन सिंह पुत्र मदन सिंह (अध्यक्ष)
सुरेन्द्र पाल सिंह पुत्र नानक सिंह(उपाध्यक्ष)
राजू जोशी पुत्र गोपाल जोशी (सचिव)
राजेन्द्र सिंह पुत्र हिम्मत सिंह (उपसचिव)
बलजीत कौर पत्नी हरजीत सिंह (कोषाध्यक्ष)
गिरीश चंद्र पुत्र गोपाल दत्त (संगठन मंत्री)
राकेश कुमार मोंगा पुत्र वेदप्रकाश (प्रचार मंत्री)
धन सिंह पुत्र मदन सिंह (सदस्य)
श्रीमती शिप्रा पत्नी दीपक कुमार(सदस्य)
समर जहां, अब्दुल माजिद (सदस्य)
इफ्तेदार खां पुत्र अब्दुल गफ्तार (सदस्य)

3- ‘आंचल धर्मकांटा समिति’ के मालिकान
रविन्द्रपाल सिंह पुत्र नानक सिंह (संरक्षक)
बलजीत कौर पत्नी हरजीत सिंह (अध्यक्ष)
संजीव कुमार पुत्र वेदप्रकाश (उपाध्यक्ष)
तारीक खान पुत्र इफ्तेदार खान (सचिव)
गोपाल दत्त पुत्र तारा दत्त (उपसचिव)
गोपाल दत्त पुत्र भोलादत्त (कोषाध्यक्ष)
अब्दुल कादिर पुत्र अब्दुल माजिद (संगठन मंत्री)
भूपेन्द्र सिंह पुत्र मोहन सिंह (सदस्य)
देवेन्द्र सिंह पुत्र जगत सिंह (सदस्य)
हिम्मत सिंह पुत्र बिशन सिंह (सदस्य)
वैभव सिंघल पुत्र अशोक सिंघल(सदस्य)
धन सिंह पुत्र मदन सिंह (सदस्य)

इन तीनों फर्मों के मालिकान के नामों से साफ हो जाता है कि एक ही समूह के सदस्य मिल-जुलकर निगम के तमाम काम लेते रहते हैं।

अब गौला नदी में पंजीकृत (सात हजार पांच सौ चालीस) वाहनों के मापतोल के लिए लगाये गये धर्मकांटों में मुनाफे का खेल कैसे होता है, ये रिपोर्ट की अगली कड़ी में साफ करेंगे।

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