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पर्यावरण

ट्रैफिक के शोर का पड़ता है पक्षियों पर आजीवन प्रभाव, अध्ययन में हुआ खुलासा

Janjwar Desk
1 May 2024 4:34 PM GMT
ट्रैफिक के शोर का पड़ता है पक्षियों पर आजीवन प्रभाव, अध्ययन में हुआ खुलासा
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file photo

Study on Birds : हवाई अड्डों के पास रहने वाले पक्षी सामान्य से अधिक उग्र और आंशिक बहरे भी हो जाते हैं। वर्ष 2017 में अमेरिका के जॉर्ज मासों यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बताया था कि ट्रैफिक के शोर से पक्षियों के बोलने की आवृत्ति, स्तर और तीव्रता भी बदल जाती है। इससे उनका सामान्य जीवन और प्रजनन प्रभावित होता है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Traffic noise makes a life-long impact on birds. एक नए अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि शहरों में रहने वाले पक्षियों पर ट्रैफिक के शोर का आजीवन प्रभाव पड़ता है। पहले भी अनेक अध्ययन यह तथ्य उजागर करते रहे हैं, पर नए अध्ययन से पहली बार यह साबित हुआ है कि पैदा होने से पहले जब पक्षियों का विकास अंडे के अन्दर हो रहा होता है तब भी ट्रैफिक का शोर उनके विकास को प्रभावित करता है और यह असर अंडे से बाहर आने के बाद भी आजीवन उनके साथ रहता है।

ऑस्ट्रेलिया में शहरों में आम तौर पर बहुतायद में मिलने वाले “ज़ेबरा फिंच” नामक पक्षी पर किये गए अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है कि अंडे के भीतर रहने पर भी पक्षियों पर ट्रैफिक के शोर का असर होता है, अंडे से बाहर आने पर उनके चूजों से वयस्क पक्षी बनने तक, ताउम्र यह असर रहता है। इस अध्ययन को “साइंस” नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

इस अध्ययन में पक्षियों के कुछ अण्डों को लगभग 65 डेसिबल के ट्रैफिक शोर में लगातार 5 दिनों तक 4 घंटे के लिए रखा गया। इसके बाद अंडे से बाहर आने के बाद चूजों को 9 दिनों तक कुछ समय तक ट्रैफिक के शोर में रखा गया। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि परीक्षण के दौरान शोर का स्तर 65 डेसिबल ही रखा गया था, यह शोर ट्रैफिक के मध्यम बोझ का ही है, अधिक ट्रैफिक में यह शोर 68 से 70 डेसिबल तक पहुंचता है।

हमारे देश में तो सामान्य ट्रैफिक का शोर भी 70 डेसिबल से अधिक रहता है, क्योंकि यहाँ वाहन चालकों को अनावश्यक हॉर्न बजाते रहने की आदत है, जबकि अधिकतर विकसित देशों में वाहन चालक हॉर्न का उपयोग केवल आपात स्थिति में ही करते हैं। दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अण्डों को केवल 4 घंटों के लिए ही ट्रैफिक के शोर में रखा गया, जबकि शहरों के अधिकतर सड़कों और हाईवे पर दिन रात ट्रैफिक रहता है और इसका शोर भी।

अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि शोर में रखे जाने वाले अण्डों का आकार सामान्य अण्डों की तुलना में 19 प्रतिशत कम था, और इसमें भी बड़े आकार के अण्डों से चूजे निकले ही नहीं। सामान्य स्थिति में बड़े अण्डों से ही चूजों के पनपने की संभावना सबसे अधिक रहती है। अंडे से बाहर आने के बाद भी चूजों का व्यवहार सामान्य चूजों से कुछ अलग था, उनके विकास की गति सामान्य से धीमी थी, उनके रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की सांद्रता कम थी। यही नहीं, ट्रैफिक शोर में रहने वाले चूजों के क्रोमोजोम में भी कुछ बदलाव पाया गया।

इन चूजों का आकार भी सामान्य चूजों से लगभग 10 प्रतिशत कम था और वजन सामान्य से 15 प्रतिशत तक कम रहा। इन चूजों का लम्बे समय तक अध्ययन किया गया – और इनका विकास और प्रजनन क्षमता भी सामान्य पक्षियों से कम देखी गयी। ट्रैफिक के शोर का असर केवल चूजों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इन चूजों के वयस्क पक्षी बन जाने के बाद भी इनकी प्रजनन दर सामान्य से आधी देखी गयी।

इस अनुसंधान दल की एक सदस्य, माईलीन मरिएटे, जो ऑस्ट्रेलिया की डाकिन यूनिवर्सिटी में पक्षियों के व्यवहार की विशेषज्ञ हैं, ने कहा है कि अनुसंधान के इन नतीजों से हमारा दल भी आश्चर्य में है क्योंकि शोर के इस सीधे और दीर्घकालीन प्रभाव की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। अब तक वैज्ञानिक जगत में यही धारणा रही है कि अण्डों के भीतर शोर का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और शोर का प्रभाव पक्षियों में सुनने और उनके आपसी समन्वय और वार्तालाप से सम्बंधित रहता है। पर इस अध्ययन से स्पष्ट है कि शोर का प्रभाव अप्रत्यक्ष नहीं बल्कि प्रत्यक्ष है और शोर सीधा असर करता है और जीवनपर्यंत यह असर बना रहता है। इससे पहले के अध्ययन शोर से पक्षियों में तनाव और आपसी वार्तालाप में बाधा पर ही केन्द्रित थे।

नीदरलैंड के लेइडेन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक एंड्रू वोल्फेनडेन ने वर्ष 2019 में जर्नल ऑफ़ एनिमल इकोलॉजी में एक अध्ययन प्रकाशित कर बताया था कि हवाई अड्डों के पास रहने वाले पक्षी सामान्य से अधिक उग्र और आंशिक बहरे भी हो जाते हैं। वर्ष 2017 में अमेरिका के जॉर्ज मासों यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बताया था कि ट्रैफिक के शोर से पक्षियों के बोलने की आवृत्ति, स्तर और तीव्रता भी बदल जाती है। इससे उनका सामान्य जीवन और प्रजनन प्रभावित होता है।

पक्षियों पर अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पक्षियों के विलुप्तीकरण की दर जंतुओं के अन्य सभी वर्गों की अपेक्षा अधिक है। पर, मनुष्यों ने पूरी पृथ्वी पर कब्जा कर लिया है और दूसरे सभी जीव-जंतु लुप्त होते जा रहे हैं।

संदर्भ:

1. Alizee Millere et al, Pre- and postnatal noise directly impairs avian development, with fitness consequences, Science, Vol. 384 No. 6694 (2024) – science.org/doi/10.1126/science.ade5868

2. Andrew D Wolfenden et al, Aircraft noise exposure leads to song frequency decline and elevated aggression in wild Chiffchaffs, Journal of Animal Ecology (August 2019) – https:/doi.org/10.1111/1365-2656.13059

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