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संस्कृति

बर्फ की चादर अाैर डिजिटल सपने

Janjwar Team
11 Jan 2018 2:31 PM GMT
बर्फ की चादर अाैर डिजिटल सपने
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रवि रोदन की कविता 'बर्फ की चादर अाैर डिजिटल सपने'

हर रात
इस शहर में
जैसे कोई दबे पाँव
ठहर ठहर के चलता है
आैर ढक देता है
बर्फ की चादर से
सपनों के ढेर सारी किताबें
अाैर सुबह जब होती है
धूप अपने पल्लू पर बांधे
चश्मे से जिन्दगी को देख नहीं पाती।

बेघर लोग
बर्फ की चादर ओढने से पहले
ईश्वर से दुअा करते हैं
की भूख ओेर ठंड की मार से बचा लेना
जिन्हें वो छोड़ अाए हैं।

महाशय,
हम डिजिटल युग में जी रहे हैं
हमारी भूख डिजिटल
हमारी गरीबी डिजिटल
हमारा बहता लहू डिजिटल
हमारा बहता पसीना डिजिटल
डिजिटल
डिजिटल
डिजिटल।

सर्दी की हर रात
मौत अपनी बन्दूक में बारूद भर कर
जिन्दगी के पन्नों पर अपना नाम लिख देती है
खामोशियों के अल्फाज लिख देती हैं
महाशय,
उसकी सारी तस्वीरें
फोन के केमरे में बुदक कर बैठे हुए हैं
जब भी मन करे
अाइए
डिजिटल सपनों को देखें।

(दार्जिलिंग में रहने वाले रवि रोदन की कविता 'प्रधानमंत्री जी हत्यारे घूम रहे हैं!'काफी पढ़ी गई थी। यह कविता उन्होंने गोर्खालैण्ड की मांग में शहीद हुए आंदोलनकारियों को समर्पित की थी।)

Janjwar Team

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