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विमर्श

इंसानों के लिए खतरनाक हो सकते हैं बुद्धिमान एलियन : स्टीफन हॉकिंग

Janjwar Team
15 March 2018 2:38 PM GMT
इंसानों के लिए खतरनाक हो सकते हैं बुद्धिमान एलियन : स्टीफन हॉकिंग
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स्टीफन हॉकिंग का कहना था कि परग्रही सभ्यताओं को हमें अपना सुराग नहीं देना चाहिए, क्योंकि वे अगर तकनीकी दृष्टि से हमसे कहीं अधिक उन्नत प्राणी हुए तो उनके कारण हमारा जीवन संकट में पड़ सकता है...

वरिष्ठ विज्ञान लेखक देवेन मेवाड़ी कुछ यूं अलविदा कह रहे हैं महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग को

हमारे समय के महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग आज (14 मार्च 2018) इस ग्रह से विदा हो गए हैं। ब्रह्मांड में कहीं और भी जीवन है या नहीं, इस बारे में उनका कहना था कि अगर हमारी इस पृथ्वी पर जीवन अपने आप पनपा तो ब्रह्मांड के उन अन्य ग्रहों में भी जीवन पनप सकता है, जहां जीवन के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां होंगी।

लेकिन पिछली लगभग आधी सदी के दौरान हमारी सारी कोशिशों के बावजूद अब तक कहीं जीवन का पता नहीं लग पाया है। फिर भी, अगर कहीं एलियन हैं तो हमें उनसे सावधान रहना चाहिए।

स्टीफन हॉकिंग का कहना था कि परग्रही सभ्यताओं को हमें अपना सुराग नहीं देना चाहिए, क्योंकि वे अगर तकनीकी दृष्टि से हमसे कहीं अधिक उन्नत प्राणी हुए तो उनके कारण हमारा जीवन संकट में पड़ सकता है। उन एलियन सभ्यताओं के बुद्धिमान जीव इतने उन्नत हो सकते हैं कि मुलाकात होने पर उनके लिए हमारा महत्व नगण्य ही होगा।

इसे यों समझ लीजिए कि जो महत्व पहली बार संपर्क होने पर अमेरिका के मूल निवासियों के लिए कोलंबस का था, वही महत्व हमारे लिए एलियनों का होगा। और, आप जानते ही हैं, कोलंबस के कदम पड़ने के बाद वहां क्या-कुछ हुआ।

असल में स्टीफन हॉकिंग को एक लघु फिल्म ‘स्टीफन हाकिंग्स फेवरेट प्लेसेज’ यानी ‘स्टीफन हाकिंग की पसंदीदा जगहें’ में उन्हें उनके काल्पनिक अंतरिक्ष यान ‘एस एस हॉकिंग’ से विशाल ब्रह्मांड की पांच चुनिंदा जगहों पर ले जाया गया, जिनमें से एक जगह थी ‘ग्लीसे 832 सी’ नामक बाह्य ग्रह। वह हमारी पृथ्वी से लगभग 16 प्रकाश वर्ष दूर है।

हॉकिंग ने अपने काल्पनिक यान में उस बहिग्रह की परिक्रमा करते हुए कहा था, “किसी दिन हमें ‘ग्लीसे 832सी’ जैसे किसी ग्रह से कोई सिगनल मिल सकता है, लेकिन हमें उसका जवाब देने से पहले सावधान हो जाना चाहिए। वे हमसे कहीं अधिक शक्तिशाली हो सकते हैं और उनके लिए हमारा मूल्य बैक्टीरिया से अधिक नहीं होगा।”

एलियनों से आगाह करने के बावजूद स्टीफन हॉकिंग ने 10-वर्षीय ‘द ब्रैकथ्रू लिसनिंग प्रोजेक्ट’ नामक एक महत्वाकांक्षी परियोजना को लांच किया था, जिसके तहत शक्तिशाली दूरबीनों से हमारी पृथ्वी के लगभग दस लाख नजदीकी सितारों का जीवन के चिह्नों के लिए गहन अध्ययन किया जाना है। इस परियोजना के लिए आर्थिक मदद रूस के अरबपति यूरी मिलनर ने दी थी।

इस परियोजना में पृथ्वी के नजदीकी तारे ‘अल्फा सेंटोरी’ तक बिस्कुट के आकार के कई अंतरिक्षयान भेजे जाएंगे। ये अंतरिक्षयान अगर प्रकाश की मात्र 20 प्रतिशत गति से भी गए तो बीस वर्षों में अल्फा सेंटोरी तक पहुंच जाएंगे और वहां उसकी परिक्रमा करते हुए फोटो लेने के साथ-साथ अन्य जानकारी भी जुटाएंगे।

हॉकिंग सोचते थे कि आगामी 20 वर्षों में तो वैज्ञानिकों को बुद्धिमान जीवों का पता लगने से रहा। लेकिन, यह भी सच है कि अंतरिक्ष में घूम रही केपलर दूरबीन ने अब तक 3,000 से अधिक बर्हिग्रहों का पता लगा लिया है। उसने जता दिया है कि हमारी अपनी आकाश गंगा में ही ऐसे अरबों ग्रह हो सकते हैं, जिनमें जीवन का अस्तित्व हो सकता है।

हॉकिंग का कहना था कि जितना ब्रह्मांड हम देख पा रहे हैं, उसी में हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी की तरह कम से कम 100 अरब मंदाकिनियां होंगी। इसका साफ मतलब है कि हम ब्रह्मांड में अकेले नहीं हैं। फिर भी हमें यही आशा करनी चाहिए कि बुद्धिमान एलियन हम तक न पहुंच पाएं क्योंकि उनसे मानव सभ्यता को भारी खतरा हो सकता है।

स्टीफन हॉकिंग के एक और बयान से दुनियाभर में बड़ी खलबली मची कि सृष्टि की रचना ईश्वर ने नहीं की, बल्कि उसका निर्माण भौतिकी या प्रकृति के बुनियादी नियमों से हुआ है। इस विषय पर लियोनार्ड म्लोदिनोव के साथ लिखी अपनी पुस्तक ‘द ग्रैंड डिजायन’ में उन्होंने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों का विशद् विवेचन किया है।

उन्होंने कहा, ‘एम-थ्योरी’ ब्रह्मांड की उत्पत्ति की गुत्थी सुलझा सकती है। यह अपने आप में कोई अलग सिद्धांत नहीं है बल्कि अनेक सिद्धांतों का मिला-जुला रूप है। शायद कोई नहीं जानता कि यह ‘एम’ क्या है? हो सकता है, इसका मतलब है ‘मास्टर’ (स्वामी), ‘मिरेकल’ (चमत्कार) या ‘मिस्ट्री’ (रहस्य)। या हो सकता है ये तीनों ही हों। यह कण-भौतिकी का सिद्धांत है जिसमें 11 आयाम के ब्रह्मांड की व्याख्या की गई है।

अपनी इस पुस्तक के अंतिम पैराग्राफ में उन्होंने कहा कि ‘एम थ्योरी’ वह ‘यूनीफाइड’ यानी सर्वमान्य सिद्धांत है, जिसे आइंस्टाइन अपने जीवन के अंतिम 30 वर्षों में पाने की लगातार कोशिश करते रहे। मानव यानी हम, जो स्वयं प्रकृति के आधारभूत कणों के पुतले मात्र हैं, प्रकृति के उन नियमों को समझने के इतना करीब आ चुके हैं जिनसे स्वयं हम और हमारा ब्रह्मांड नियंत्रित होता है, तो क्या यही कम बड़ी उपलब्धि है?

लेकिन, असली चमत्कार तो शायद तर्क का वह अमूर्त चिंतन है जो आश्चर्यजनक विभिन्नताओं से भरे विशाल ब्रह्मांड की व्याख्या करने वाला एक अपूर्व सिद्धांत गढ़ दे। और, अगर इस सिद्धांत की प्रेक्षणों से भी पुष्टि हो जाए तो यह 3,000 वर्ष से भी पहले से की जा रही खोज का सफल परिणाम होगा। तब हमें ‘ग्रैंड डिजायन’ की असलियत का पता लग जाएगा।

स्टीफन हॉकिंग की ‘ग्रैंड डिजायन’ पुस्तक पढ़ते समय मेरे कानों में तो ऋग्वेद का वह नासदीय सूत्र ही कानों में गूंजता रहा कि सृष्टि के आरंभ में न असत् था, न सत था। अंतरिक्ष और आकाश भी नहीं था। फिर कौन किसका आश्रय बना? यह किसके सुख के लिए बना? क्या तब गहन गंभीर जल था?

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