जनज्वार विशेष

तुम्हें आज राम भी कोस रहे हैं राष्ट्रभक्त’ गुंडो!

Janjwar Team
19 Aug 2017 12:44 PM GMT
तुम्हें आज राम भी कोस रहे हैं राष्ट्रभक्त’ गुंडो!
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हिमालय की एक पाती प्रधानमंत्री के नाम

राम की बात करने वाले और राम पर ही अपना राजनीतिक हित साधने वालो तुम्हें राम भी कोस रहा है। हजारों लोगों को उजाड़कर अपने को नदियों का पुत्र कहने का अधिकार तुम खो चुके हो। तुम नदियों के सौदागर हो...

चारु तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार

प्रिय प्रधानमंत्री जी,

आपने मुझे पहचान लिया होगा। मैं हिमालय हूं। आप और आपके कुनबे का दावा है कि तुम मेरे सबसे बड़े हितैषी हो। मेरी कोख से निकलने वाली नदियों के तुम लोग सबसे बड़े रक्षक हो। मेरी नदियों को तुम मां कहते हो।

तुम्हारे बहुत सारे भगवाधारी गंगा के नाम पर ही अपना कारोबार चलाते हैं। गंगा और नर्मदा पर आपने जब पिछले दिनों बात की तो मैं और लोगों की तरह तुम्हारे नर्मदा प्रेम से प्रभावित नहीं हुआ। मैं जानता था कि आपके कहने और करने में धरती आसमान का फर्क है। यह साबित भी हो गया।

अभी आपके चेले-चपाटे नर्मदा में आपकी पूजा-अर्चना के गीत गा ही रहे थे कि नर्मदा को बचाने वाले आंदोलनकारियों को जेल में डाल दिया। बहुत दिनों से सोच रहा था कि आपको एक पत्र लिखूं। पिछली बार जब आप पहाड़ आये थे तब लोकसभा चुनाव चल रहे थे। आपकी छवि गढ़ने के लिये करोड़ों खर्च किये जा रहे थे। आप पर ‘राष्ट्रभक्ति’ का ऐसा रैपर चढ़ाया गया कि आपकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव फतह कर लिया। बातें लंबी हो जायेंगी, इसलिये मैं इसे अपने तक ही सीमित रखता हूं।

प्रधानमंत्री जी, मुझे याद आ रहा है, लोकसभा चुनाव के दौरान जब आप पहाड़ आये तो यहां भी मेरे एक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक के नारे को चुरा लिया। यह नारा था- ‘पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आती।’ यह मुहावरा आपने कश्मीर में भी चिपका दिया।

आप और आपके भाषण लिखने वाले इतने व्यावहारिक भी नहीं थे कि उत्तराखंड राज्य के शिल्पी सुप्रसिद्ध भौतिकशास्त्री डाॅ. डीडी पंत का नाम ले लेते। डाॅ. पंत ने यह मुहावरा 1973 में तब दिया था जब वे कुमाऊं विश्वविद्यालय के पहले कुलपति बने। मैं यह बात इसलिये लिख रहा हूं क्योंकि जिस संदर्भ में उन्होंने यह बात कही थी आपका वह संदर्भ न तो हो सकता है और न ही आप उस संदर्भ को समझ सकते हो।

आपने पौड़ी और पिथौरागढ़ की सभाओं में ललकार कर मेरे पुत्रों से पूछा था- कौन है मुजफ्फरनगर का दोषी? पूछा था किसने किया महिलाओं का अपमान? कौन मुजफ्फरनगर के दोषियों के साथ? मेरे पुत्र आपके इन सवालों का जवाब उस समय भी दे सकते थे। जो दोषी थे उनके खिलाफ लड़े थे मेरे पुत्र। मरे थे मेरे पुत्र।

आपकी पार्टी उस समय भी मेरे पुत्रों की लाश पर राजनीति कर रही थी। मेरी बेटियों की बेइज्जती पर अपना राजनीतिक भविष्य देख रही थी। चलो आज मैं तुम्हें इसका जवाब दे देता हूं। पूछ लो अपने गृहमंत्री से जिन्होंने मुजफ्फरनगर कांड के मुख्य दोषी अनन्त कुमार सिंह को अपना सचिव बनाकर वर्षों बचाये रखा। पूछो अपने सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री से जिसने डायर बुआ सिंह को देहरादून में रेड कारपेट सम्मान दिया। राज्य अतिथि बनाया।

अब ये मत कह देना कि मेरी पार्टी और मेरे अग्रज अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्य बनाया। आपकी कृपा से हमें राज्य नहीं मिला है। किसी की दया पर हमें राज्य नहीं मिला है। हमने 42 शहादतें दी हैं। चार दशक तक संघर्ष किया है। आपने कहा था पहाड़ को बचाने का सवाल है। इसलिये मैं आज आपसे बहुत सारे सवाल लेकर आया हूं। आज मैं आहत हूं।

प्रधानमंत्री जी, अभी आपने पिथौरागढ़ में बन रहे पंचेश्वर बांध से मेरी छाती को चीरने की योजना बनाई है। गंगा को मां कहने वालो! नदियों को पवित्र बताने वालो! तुम्हारा मारक खेल अब तेज हो गया है। आपको एक बात और याद दिलानी है। आप राम के अनन्य भक्तों में हो। अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिये जो आंदोलन चला उसमें आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

सोमनाथ से अयोध्या के लिये जब लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली थी तो आप ही उनके सारथी थे। पिथौरागढ़ में जिस जगह आप बांध बना रहे हो उसे रामेश्वरम भी कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान राम ने यहां अपने पुरखों का तपर्ण किया था और यहां से मानसरोवर के लिये गये थे। उनकी खड़ाऊ के चिन्ह भी यहां हैं। यह मानसरोवर यात्रा का प्रमुख मार्ग है। राम की बात करने वाले और राम पर ही अपना राजनीतिक हित साधने वालो तुम्हें राम भी कोस रहा है। हजारों लोगों को उजाड़कर अपने को नदियों का पुत्र कहने का अधिकार तुम खो चुके हो। तुम नदियों के सौदागर हो।

सीमांत जनपद पिथौरागढ़ मेरी गोद में खेलता है। इसके आजू-बाजू में हैं अल्मोड़ा और चंपावत। यहां की एक बड़ी आबादी मेरे आंचल में बसती है। सदियों से। महाकाली, सरयू, रामगंगा और पनार जीवदायिनी हैं इस पूरे क्षेत्र की। देश और एशिया महाद्वीप के लिये महत्वपूर्ण। तुमने उस पर पंचेश्वर बांध बनाने की योजना बना डाली।

आपको तो मालूम ही होगा कि नेपाल और भारत की सीमा पर बनने वाले पंचेश्वर बांध का जनता विरोध कर रही है। यह बांध परियोजना भारत-नेपाल सीमा पर बहने वाली महाकाली नदी के पंचेश्वर घाट पर प्रस्तावित है। यह क्षेत्र उत्तराखंड के चंपावत जनपद और नेपाल के बैतड़ी जनपद के तल्ला सौराड़ क्षेत्र में पड़ता है।

यह दुनिया का दूसरा बड़ा बांध होगा। डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट के अनुसार इस बांध की ऊंचाई 311 मीटर और विद्युत उत्पादन क्षमता 4800 मेगावाट है। इसके अलावा पूर्णागिरी के पास इसके सहायक बांध के रूप में रूपाली बांध परियोजना भी बनेगी जिसकी क्षमता 240 मेगावाट होगी। इस बांध की ऊंचाई भी 92 मीटर है। पंचेश्वर बांध की झील 116 वर्ग किलोमीटर और कुल लंबाई 90 किलोमीटर होगी। इसमें छह टनल, दो पावर हाउस और चार टरवारइनें बनेंगी जिसकी क्षमता 1200 मेगावाट की है।

इस बांध को बनाने में 40 हजार करोड़ की लागत आयेगी। पंचेश्वर बांध की इस डिलेट प्रोजेक्ट रिपोर्ट ने भारत सरकार के उस नारे की भी पोल खोल दी जिसमें भविष्य में बड़े बांध न बनाये जाने की बात कही जा रही थी। पंचेश्वर बांध बनने से मध्य हिमालय के इस कच्चे पहाड़ में त्रासदी की नई कहानी लिखने के लिये पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी है।

प्रधानमंत्री जी, हिमालय को छेदने वाली तमाम परियोजनाओं के दुष्परिणामों से सबक न लेने का एक बड़ा उदाहरण पंचेश्वर बांध परियोजना है। पिछले एक दशक से हिमालय में दैत्याकार विकास के माॅडल ने जिस तरह मानवजनित आपदाओं को जन्म दिया है उसे अनदेखा करना बहुत महंगा पड़ सकता है।

भूगर्भीय खतरों और पर्यावरणीय असंतुलन के अनुभवों के बाद भी बनाये जा रहे इस बांध के खतरों से लोग भयभीत हैं। चार नदियों काली, सरयू, पनार और रामगंगा पर इसका सीध असर पड़ेगा। काली नदी में धारचूला तक, सरयू में सेराघाट तक, पनार में सिमखेत तथा रामगंगा में थल तक का तटीय क्षेत्र डूब जायेगा। इस कारण भारत के 134 गांवों के सात हजार से अधिक परिवारों और चालीस हजार से अधिक की जनसंख्या को विस्थापन का दंश झेलना पड़ेगा।

इसमें पिथौरागढ़ के 87, चंपावत के 26 और अल्मोड़ा के 21 गांव प्रभावित होंगे और 120 वर्ग मीटर जमीन जलमग्न हो जायेगी। नेपाल के साठ गांवों की बीस हजार से अधिक आबादी विस्थापित होगी और 14 वर्ग किलोमीटर जमीन पानी मे डूब जायेगी। यह एक मोटा अनुमान है पंचेश्वर बांध परियोजना का। इसके अलावा विस्थापन, पार्यावरणीय और भूगर्भीय खतरे अलग से हैं।

प्रधानमंत्री जी, मैंने इस पत्र में अभी पंचेश्वर का ही मामला उठाया है। हालांकि आपके और आपके पूरे राजनीतिक कुनबे ने पहाड़ को छेदने-बेचने-फोड़ने का पूरा इंतजाम कर दिया है। पिछले दिनों जब मेरे प्रहरियों ने तुम्हारे इस मारक खेल को रोकने के लिये चंपावत और पिथौरागढ़ में जनसुनाई में अपना विरोध दर्ज किया तो ‘राष्ट्रभक्त’ गुंडों की फौज ने उन पर हमला बोला।

काशी सिंह ऐरी जैसे वरिष्ठ नेता के साथ धक्का-मुक्की की। आपकी पार्टी ने इस जनविरोधी बांध के पक्ष में मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने अघोषित ऐलान किया है कि जो भी इस बांध के विरोध में बोलेगा उसे वे सत्ता की धौंस पर चुप करा देंगे।

मैं आपको इस बात से आगाह करना चाहता हूं कि पहले पहाड़ में विनाशकारी टिहरी बांध से तुमने एक बड़ी आबादी को बेघर किया। 125 गांव डुबाये। हमारे सांस्कृतिक शहर टिहरी को जलसमाधि दे दी। उसके बाद भागीरथी, भिलंगना, मंदाकिनी, अलकनंदा, बिरही, सरयू, रामगंगा, पिंडर पर जलविद्युत परियोजनाओं की ऐसी झड़ी लगाई कि आज सैकड़ों गांव विस्थापित हो चुके हैं। 356 गांव विस्थापन की राह पर खड़े हैं।

अब यह सिलसिला उत्तराखंड के दूसरे सिरे पर अर्थात पिथौरागढ़ में जारी है। आपने प्रदेश को एक ऐसा मुख्यमंत्री दिया है जिसे अभी अपना इतिहास-भूगोल भी पता नहीं है। पिछले दिनों उन्होंने पूरे प्रदेश में शराब पहुंचाने की मुहिम चलाई। सुप्रीम कोर्ट तक गये। जब महिलायें नहीं मानीं तो उन्होंने घर-घर शराब पहुंचाने के लिये मोबाइल गाड़ियों का इंतजाम भी कर दिया। ऊपर से धमकी यह कि वह ‘संघ’ से दीक्षित हैं।

जब पिछले दिनों पिथौरागढ़ में पंचेश्वर को लेकर जनसुनवाई हो रही थी तो आपके एक विधायक जो कई बार जीतते रहे हैं बांध परियोजना के प्रवक्ता बनकर खड़े हो गये। इन सब बातों से हिमालय के लोगों में भारी गुस्सा है। वे अब प्रतिकार के लिये आगे आ रहे है। मेरा कहना है कि हिमालय तभी बचेगा जब यहां के लोग बचेंगे।

प्रधानमंत्री जी, आपके मुख्यमंत्री पलायन आयोग बना रहे हैं। इन मूर्खों को बताओ कि एक तरफ तुम गांवों को डुबा रहे हो दूसरी तरफ पलायन रोकने की लफ्फाजी कर रहे हो। राज्य सरकार ने श्रीनगर का अस्पताल सेना के हवाले कर दिया है। मुख्यमंत्री ने अपने चुनाव क्षेत्र के दो अस्पताल हिमालयन इंस्टीट्यूट को दे दिये हैं।

हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल का कैंसर संस्थान भी किसी फाउंडेशन को देने की तैयारी में है। कई अस्पताल पीपीपी मोड पर चल रहे हैं। इस स्वतंत्रता दिवस पर बड़ी बेशर्मी के साथ उन्होंने कह भी दिया कि हम अस्पताल नहीं चला सकते। राज्य के 1800 विद्यालय बंद कर दिये हैं। इसलिये अब हिमालय से पलायन की बकवास बंद करो।

मैं आपको और चिट्ठी लिखूंगा। अभी आप अपनी देशभक्ति दिखाने और विदेश दौरों में व्यस्त हो। आपको शायद यह चिट्ठी पढ़ने का मौका न मिले। क्योंकि आपको अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय देना है। लेकिन जिस क्षेत्र में आप पंचेश्वर बांध बना रहे हो वहां के लोगों को आपकी तरह देशभक्ति का प्रचार करने की जरूरत नहीं है। जहां के लोगों को आप विकास और बिजली के नाम पर डुबाने का षडयंत्र रच रहे हो वे पैदाइशी राष्ट्रभक्त हैं।

यह कालू महर की जमीन है, जिसे अंग्रेजों ने 1857 के गदर में लोहाघाट में फांसी पर चढ़ा दिया था। कालू महर के दो साथियों आनंद सिंह फत्र्याल और बिशन सिंह करायत को अंग्रेजों ने सरेआम गोली से उड़ा दिया था। आपको याद दिला दें कि यहीं स्वामी विवेकानन्द ने मायावती आश्रम की स्थापना की थी। इसी क्षेत्र में गुरु नानक ने आध्यात्म और विश्व शांति की कामना की थी। इसी क्षेत्र को नारायणस्वामी ने अपनी तपस्थली बनाया था।

जिस क्षेत्र को आप डुबाने जा रहे हो वहां रहती थी जसुली सौक्याण, जिसने मानसरोवर यात्रा में अपने पैसे से ढाई सौ धर्मशालाओं का निर्माण कराया था। यह वही पनार की घाटी है जहां से कभी आजादी की ज्वाला निकली थी। यहीं सालम है जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया था। यही से रामसिंह धौनी थे जिन्होंने ‘जयहिन्द’ का नारा दिया था। ‘कुमाऊं रेजीमेंट’ के संस्थापक चंद्री चंद बसेड़ा इसी क्षेत्र के थे।

राष्ट्रीय गान की धुन बनाने वाले कैप्टन रामसिंह भी इसी क्षेत्र के मूल निवासी थे। लोक के चितेरे धूसिया दमाई और मोहन सिंह रीठागाड़ी भी यहीं के हैं। और भी बहुत सारी समृद्ध परंपरा है इस क्षेत्र की है जिसे आप अपनी नासमझी से समाप्त करने जा रहे हो। मैं आपसे अभी भी अपील कर रहा हूं कि हिमालय तभी बचेगा जब यहां रहने वाले लोग बचेंगे। आप इन लोगों को उजाड़ने की नीतियों को वापस लो।

आप ऐसे महाकाल को आमंत्रित कर रहे हो जो किसी बड़ी आपदा के साथ सर्वनाश कर सकता है। वर्ष 2013 में आई आपदा से आपने सबक नहीं लिया। कश्मीर और नेपाल के जलजले से भी आप लोगों को अकल नहीं आई। अपने उन पांच नासमझ सांसदों से पूछना जो इतने विनाश को दावत देने वाली परियोजना पर चुप्पी साधे हैं। उत्तराखंड की विधानसभा में आपके 56 गणेश गोबर बैठे हैं, जिन्हें अभी ये भी पता नहीं है कि पंचेश्वर है कहां।

अंत में कहना चाहूंगा कि मेरे दर्द को समझना। मेरी पीड़ा को समझना। अगर अपने दर्द बयां करने में कहीं भाषा तल्ख हो गयी हो तो उसे नजरअंदाज करना। यह भी समझना भी हिमालय जैसे धीर-गंभीर व्यक्तित्व की ऐसी भाषा का कोई कारण तो होगा। हिमालय के रूठने का मतलब है देश के सामने खतरे की घंटी।

हिमालय के इस अलार्म को आप समझेंगे। जनकवि हीरासिंह राणा के गीत मेरे चारों ओर आजकल हवा के झोंकों के साथ टकरा रहे हैं। मुझे झकझोर रहे हैं-

धैं द्यूणौ हिंवाल च्यलौ ठाड़ उठौ,
जगाओ मुछ्याल च्यलौ ठाड़ उठो।
अब उत्तराखण्ड का विकास तईं,
भौत ह्नैगे जग्वाल च्यलौ ठाड़ उठो।।

नौना-ठुला, दिदी-भुली उठौ अब,
उत्तराखण्डक भलाक् तई जुटौ सब।
शिव ज्यू का हिंवाल कणी द्यखौ धैं,
ह्यों हैगो रे लाल च्यलौ ठाड़ उठौ।।

शुभकामनाओं सहित!

आपका ही
हिमालय, पंचेश्वर, उत्तराखंड

(अनेक पत्र—पत्रिकाओं में संपादक रहे चारु तिवारी जनसरोकारों से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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