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शिक्षा

संपूर्णानंद विश्वविद्यालय में शिक्षक भर्ती घोटाला, छात्र ने किया उजागर

Janjwar Team
21 Oct 2017 3:30 PM GMT
संपूर्णानंद विश्वविद्यालय में शिक्षक भर्ती घोटाला, छात्र ने किया उजागर
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सोशल मीडिया पर फैली सनसनी, विश्वविद्यालय कर्मचारियों ने अयोग्य रिश्तेदारों की भर्ती कराने का ले लिया है ठेका, छात्र ने की योगी सरकार से अपील कि भर्ती प्रकिया कराएं ठीक

सर्वेश त्रिपाठी, संस्कृत शोध छात्र

बंधुओं...यह कोई आलेख नहीं पीड़ाभरी सूचना मात्र है!

एक तो संस्कृत के छात्र यूँ ही समाज में कौतुक का विषय होते हैं। लोग संस्कृत का नाम सुनते ही अपनी चम्मच जैसी आँखों को कटोरा जैसा बनाते हुए ऐसे देखते हैं जैसे हमने कोई शर्मनाक काम कर दिया हो। उसके तुरन्त बाद उनके अधरों पर एक प्रगतिशील-मुस्कान तैर जाती है जिसमें हमें रूढ़िवादी मान लेने के ज्ञान का आनन्द छुपा रहता है।

हद तो तब हो जाती है जब किसी रिश्तेदार के यहाँ या ट्रेन में हमें संस्कृत का जानकर लोग लपलपाता हुआ चौकोर मुंह गोल बनाते हुए और आँखों में कुबेर बन जाने की आशापूर्ण चमक लेकर लप्प से अपना पापी हाथ आगे कर देते हैं और भविष्यफल पूछने लगते हैं।

ख़ैर, हम संस्कृत के छात्र हैं हम अपने स्वात्म-बोध से लबरेज़ रहते हैं, हमें इन बातों से कष्ट नहीं होता बल्कि हम समाज की इस मूर्खता पर हँसते ही हैं; परन्तु आहत तब हो जाते हैं जब संस्कृत के विकास का दम्भ भरने वाली सरकार के शासन में ही संस्कृत के महानतम विश्वविद्यालय बनारस के "सम्पूर्णाणानंद संस्कृत विश्वविद्यालय" की बहुप्रतीक्षित "शिक्षक-भर्ती" में सारे नियम ताक पर रखकर अनियमिततायें की जाती हैं, चुनिंदा ख़ास लोगों को ही इंटरव्यू के कॉल-लेटर भेजे जाते हैं।

और आनन फानन में किसी तरह भी भर्ती प्रक्रिया सम्पन्न करा लेने की जल्दबाजी मची है, जबकि उसी भर्ती के ख़िलाफ़ वहां के छात्र,कर्मचारी,शिक्षक सब बैठे हों। ये कहाँ का लोकतंत्र है !!!

ध्यातव्य है कि - 'सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय' में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं प्रोफेसर के लगभग 75 पदों पर नियुक्ति के लिए आवेदन पिछले साल अक्टूबर महीने में मंगाया गया था।

आपको ज्ञात हो कि वर्तमान कुलपति महोदय यदुनाथ प्रसाद दूबे की नियुक्ति संबंधी शक्तियां 31 अक्टूबर या 1 नवम्बर 2017 को समाप्त हो रही हैं। आवेदन के लगभग एक साल बाद 16 अक्टूबर को 'कुछ चुनिन्दा' लोगों को मनमाने तरीके से कॉल लेटर भेजा गया है।

अगले हफ्ते तक 'कुछ और' लोगों को मिलने की उम्मीद भी है। कॉल लेटर मिलने के 3-4 दिन बाद ही सबका साक्षात्कार होना है। और साक्षात्कार के 3-4 दिन बाद ही कुलपति की नियुक्ति सम्बन्धी शक्तियां समाप्त होनी हैं।

मतलब यह कि 15 से 22 अक्टूबर तक कॉल लेटर मिलेगा, 22 से 29 अक्टूबर तक साक्षात्कार होगा, 30 अक्टूबर को परिणाम निकाल के नियुक्ति करा ली जाएगी। और 31 अक्टूबर या 1 नवम्बर को कुलपति की शक्तियां समाप्त हो जाएंगी।

शिक्षक के 75 पदों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया 10 से 15 दिनों में समाप्त हो जाएगी। समस्या यह है कि तीन साल के कार्यकाल कुछ नहीं किया गया। और कार्यकाल के आखिरी के 10 दिनों में कॉल लेटर भेजने से लेकर साक्षात्कार, परिणाम और नियुक्ति का क्या मतलब है?

इन नियुक्तियों में पूर्ण रूप से धाँधली हो रही है। आवेदन का प्रारूप UGC के मानकों के अनुरूप नहीं है, ऐसा विश्वविद्यालय के कुलसचिव का कहना है जिनको कुलपति ने अपने पद से हटाकर एक दूसरे व्यक्ति को अवैध रूप से कुलसचिव का दायित्व सौंप दिया है।

कॉल लेटर भेजने के लिए होने वाली स्क्रूटनी में किसी भी प्रकार की कोई पारदर्शिता नहीं है। क्योंकि इनके पास स्क्रुटनी करने का कोई आधार नहीं है। न तो आवेदकों की कोई लिस्ट विश्वविद्यालय की वेबसाइट पे है न ही कहीं किसी नोटिस बोर्ड पे चस्पा है। 'शॉर्टलिस्टेड' और 'रिजेक्टेड' अभ्यर्थियों की कोई लिस्ट कहीं नहीं है। न ही शॉर्टलिस्ट करने और रिजेक्ट करने का कोई आधार या वजह बताया गया है।

ये जान बूझकर कॉल लेटर इंटरव्यू के 1-2 दिन पहले या बाद में स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेज रहे हैं। ई-मेल जैसे सरल एवं उपयोगी माध्यम का उपयोग तक नहीं किया। किसी भी प्रकार की पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है। ई-मेल कर देने पर 'पोस्टल डिले' का बहाना नहीं कर पाएंगे। और हर अभ्यर्थी साक्षात्कार के लिए उपस्थित हो जाएगा। यह शिक्षण क्षेत्र में डिजिटल इण्डिया के सपने के साथ भद्दा मजाक है।

इन 75 विज्ञापित पदों पर नियुक्तियों में से लगभग 60 पदों पर उनकी नियुक्ति होने वाली है जो NET नहीं हैं, लेकिन 2009 से पहले जैसे तैसे पीएचडी कर चुके हैं, किसी प्रोफेसर के भाई हैं, बेटे हैं, दोस्त हैं या रिश्तेदार हैं। उन्हीं लोगों को चुनकर प्राथमिकता के साथ साक्षात्कार के 4-5 दिन पहले कॉल लेटर भेजा गया है।

अब ऐसी स्थिति में आम संस्कृत छात्र की यह दीवाली एक उदास दीवाली में बदल गयी है जिसका सारा जिम्मा माननीय राज्यपाल और सरकार का है। संस्कृत जगत से जबतक यह मठाधीशी और परिवारवाद की विषबेल नही दूर की जायेगी तब तक की हर दीवाली अंधियारे और हर होली फीकी होती जाएगी।

सम्पूर्णाणानंद विश्वविद्यालय यूँ ही जिस बदहाल स्थिति में है वह किसी से छुपा नहीं है अब यदि इसतके उत्साही और योग्य लोगों का चयन नहीं हुआ तो इसका धँसना तय है।
सरकार से गुजारिश है नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाये और चुनिंदा लोगों की बजाय हर योग्य और अर्हता पूरी करने वाले को काल लेटर भेजे। वरना यह संस्कृत के पतन की दिशा में ही किया गया काम होगा।

(सर्वेश त्रिपाठी बीएचयू से संस्कृत में पीएचडी कर रहे हैं।)

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