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राजनीति

जज लोया की मौत मामले की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज

Janjwar Team
19 April 2018 12:10 PM GMT
जज लोया की मौत मामले की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज
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सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा लोया की मौत हुई थी प्राकृतिक तुम कर रहे हो पीआईएल कानून का दुरुपयोग

दिल्ली, जनज्वार। जज लोया की संदिग्ध हालत में हुई मौत के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने आज हुई सुनवाई में एसआईटी जांच की मांग खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को ही डांट दिया कि तुम पीआईएल कानून का दुरुपयोग कर रहे हो, जबकि जज लोया की मौत प्राकृतिक हुई थी।

गौरतलब है कि मीडिया में जज लोया की मौत को लेकर तमाम संदेहास्पद खुलासे हो चुके हैं। इसीलिए जज लोया की स्वतंत्र जांच करवाये जाने को लेकर और एसआईटी जांच करवाये जाने को लेकर एक याचिका दायर की गई थी।

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सुप्रीम कोर्ट की जजों की पीठ ने कहा कि एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका में कोई दम नहीं है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की पीठ ने लोया की मौत पर एसआईटी जांच की याचिका दायर किए जाने पर कहा कि प्राकृतिक मौत को संदेहास्पद बता याचिकाकर्ता हम लोगों को बदनाम करना चाहता है। इस याचिका को भारी जुर्माने के साथ खारिज करने की जरूरत है।

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जज लोया की संदिग्ध मौत मसले पर कांग्रेसी नेता तहसीन पूनावाला, महाराष्ट्र के पत्रकार बीएस लोने, बांबे लॉयर्स एसोसिएशन सहित अन्य द्वारा विशेष जज बीएच लोया की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग वाली याचिकाएं दाखिल की गईं थीं।

इस मसले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट जजों की बेंच ने कहा हम जजों के बयान पर संदेह नहीं कर सकते। साथ ही कहा, राजनीतिक लड़ाई मैदान में की जानी चाहिए, कोर्ट में नहीं।

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, PIL का दुरुपयोग चिंता का विषय, जोकि न्यायपालिका पर सीधा हमला है। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताओं को लोकतंत्र के सदन में ही सुलझाया जाना चाहिए, न कि कोर्ट रूम में। PIL शरारतपूर्ण उद्देश्य से दाखिल की गई, यह आपराधिक अवमानना है। हम उन न्यायिक अधिकारियों के बयानों पर संदेह नहीं कर सकते, जो जज लोया के साथ थे।

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गौरतलब है कि जज बीएच लोया की मौत की स्वतंत्र जांच करवाने की दाखिल याचिका पर महाराष्ट्र सरकार ने भी खूब विरोध किया। महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को जजों को सरंक्षण देना चाहिए। ये आम पर्यावरण का मामला नहीं है, जिसकी जांच के आदेश या नोटिस जारी किया गया हो, ये हत्या का मामला है और क्या इस मामले में चार जजों से संदिग्ध की तरह पूछताछ की जाएगी। ऐसे में वो लोग क्या सोचेंगे, जिनके मामलों का फैसला इन जजों ने किया है।

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लोया की मौत 30 नवंबर 2014 की रात में हुई थी। कारवां पत्रिका ने जज लोया की मौत पर खोजी पत्रकारिता के बाद नवंबर 2017 की खबर के बाद यह मामला फिर गर्माया। इसके बाद 29 नवंबर को लोया के साथ मौजूद चार जजों ने अपने बयान दिए हैं जो उनकी मौत के वक्त साथ में थे। जज लोया हत्याकांड का खुलासा करने वाली पत्रिका कारवां ने सनसनीखेज दावा किया था कि नागपुर मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर मकरंद व्यावहारे ने राजनीतिक संबंधों को निभाने के लिए जज लोया की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में फेरबदल की गई थी।

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जज लोया की हत्या और संदिग्ध मौत का मसला इसलिए भी गहराया, क्योंकि सोहराबुद्दीन शेख मसले पर वो सुनवाई कर रहे थे। 2005 में सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर बी को गुजरात पुलिस ने हैदराबाद से अगवा किया था। आरोप था कि दोनों को फर्जी मुठभेड में मारा गया था। सोहराबुद्दीन के साथी तुलसीराम प्रजापति को भी 2006 में गुजरात पुलिस द्वारा मार डाला गया, जिसे सोहराबुद्दीन मुठभेड का गवाह माना जा रहा था।

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मुंबई हाईकोर्ट के जज लोया की उस समय मौत हो गयी जब वह गुजरात के सोहराबुदद्दीन शेख फर्जी इनकांउटर मामले की सुनवाई कर रहे थे और संभव था कि वह अगली सुनवाई पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को गिरफ्तार करने के आदेश दे सकते हैं। ऐसे में पूरी भाजपा अपने अध्यक्ष और प्रधानमंत्री मोदी के सबसे भरोसेमंद अमित शाह को बचाने के लिए झोंक दी गयी। ताकत इसलिए भी झोंकी कि अगर अमित शाह सोहराबुदद्दीन शेख मामले में नपते तो तत्कालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी पर आंच नहीं आती, यह असंभव था।

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