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जनज्वार विशेष

जब नंधौर का टेंडर निरस्त तो किस आधार पर मिला गौला नदी का ठेका

Janjwar Team
16 Oct 2017 11:49 AM GMT
जब नंधौर का टेंडर निरस्त तो किस आधार पर मिला गौला नदी का ठेका
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डी.ओ.टी. की नजरों में ‘ओम गुरू टेडर्स’ की नहीं है कोई तकनीकी योग्यता और अनुभव...

पढ़िए संजय रावत की वन विभाग की अनियमितताओं और भ्रष्टाचार पर सिलसिलेवार लिखी गई रिपोर्टों की अगली कड़ी

ढेरों अनियमितताओं की अनदेखी करने वाले ‘वन विकास निगम’ के अधिकारी अब अंगड़ाई लेते नजर आने लगे हैं। नंधौर नदी में टेलीकाॅम टावर की एक निविदा खारिज कर अधिकारियों ने यह दिखाने की कोशिश की है कि वे निष्पक्ष कार्य प्रणाली में यकीन रखते हैं। पर सवाल अब भी वहीं के वही खड़े हैं कि ‘ओम गुरू ट्रेडर्स’ के टेण्डर जिस तकनीकी खामी के चलते खारिज हुए हैं तो क्या पूर्व के ठेकों में योग्यता न होने के बावजूद उन्हें कैसे काम दिया गया।

पिछली तीन रिपोर्टों में साफ कर चुके हैं कि किस तरह ‘वन विकास निगम’ जन चेतना के अभाव का फायदा उठा एक ही समूह की फर्मों को सारे ठेके देता आ रहा है। जिससे विभाग का फायदा न होकर उक्त फर्में और सम्बन्धित अधिकारियों की मौज-मस्ती लंबे समय से चली आ रही है, पर इस बार एक प्रतिद्वंदी फर्म ने विभाग को आईना दिखाया तो विभाग ने बैकफुट पर आकर टेण्डर निरस्त कर दिये।

ये था मामला
पिछले खनन वर्षों की तरह इस बार भी नंधौर नदी में टेलीकाॅम टावर लगाने के लिये टेण्डर आमंत्रित किये गये। सारी तैयारियां ‘ओम गुरू टेडर्स’ (निविदा शर्तों के हिसाब से) को देने की कर ली गयी थी। पर सारा खेल तब पलट गया जब एक प्रतिद्वंदी कंपनी ने तकनीकी कुशलता पर ही सवाल खड़े कर दिये। जो तकनीकी कुशलताएं ‘ओम गुरू टेडर्स’ के पास नहीं पायी गयी तो मजबूरन आनन-फानन में विभाग को टेण्डर निरस्त करने पड़े।

यूं निरस्त हुआ टेण्डर
नंधौर नदी में टेलीकाॅम टावर लगाने के लिए 10/11 सितम्बर को समाचार पत्रों के माध्यम से टेण्डर आमंत्रित किये गये। विभागीय जानकारी के मुताबिक कुल 10 टेण्डर फाॅर्म बिके जिसमें से 6 फर्माे ने प्रतिभाग किया। इसमें भी चार फर्में तो कुछ तकनीकी और वित्तीय योग्यता के अलग-अलग कारणों से अयोग्य करार दी गयीं। अब बची 2 फर्में पहली ‘ओम गुरू टेडर्स’ और दूसरी ‘मैसर्स अंजने इनफोमेटिक्स’।

‘अंजने इनफोमेटिक्स’ को बाहर का रास्ता इसलिए देखना पड़ा क्योंकि उसके वित्तीय प्रपत्रोें में एक बड़ी खामी यह थी। फर्म ने लाख सिक्योरिटी मनी (लागत) की जगह 10 हजार रूपये का चैक लगाया था। आखिर में बची ‘ओम गुरू टेडर्स’। ‘ओम गुरू टेडर्स’ के पास ये ठेका आसानी से चला जाता यदि ‘मैसर्स अंजने इंफोमेटिक्स’ ने उक्त फर्म की तकनीकी योग्यता पर सवाल ना खड़े किये होते।

क्यों हुआ ‘ओम गुरू टेडर्स’ का टेण्डर निरस्त
‘ओम गुरू टेडर्स’ के पास दरअसल तकनीकी योग्यता थी नहींए तो हर बार की तरह विभागीय मिलीभगत से ठेका नहीं मिल पाया। हुआ यूं कि तकनीकी योग्यता के लिये फर्म के पास डी.ओ.टी. (डिपार्टमेंट आॅफ टेली कम्यूनिकेशन) का अधिकृत प्रमाणपत्र होना अनिवार्य है। जो ‘ओम गुरू टेडर्स’ के पास नहीं था। यानी डी.ओ.टी. की नजरों में ‘ओम गुरू टेडर्स’ की कोई तकनीकी योग्यता और अनुभव है ही नहीं।

जब यह अनिवार्य योग्यता फर्म के पास थी ही नहीं तो एक ऐसी फर्म के साथ ‘ज्वाइंट वैंचर’ दिखाने की कोशिश की गयी, जो डी.ओ.टी. द्वारा अधिकृत थी। लेकिन ये तमाम नियम शर्तों का उल्लंघन था, जिसमें विभाग फंस सकता था और यही सबसे बड़ा आधार रहा टेण्डर निरस्त होने का।

गौला नदी में किस आधार पर मिला ठेका
जब टेंडर की शर्तों के हिसाब से डी.ओ.टी. का प्रमाणपत्र अनिवार्य है तो पूर्व में ‘ओम गुरू टेडर्स’ को किस आधार पर गौला नदी में ठेका दिया गया। अब यह अलग से पड़ताल का विषय है।

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